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गैंग्स ऑफ राजस्थान: आनंदपाल ने उसी जीवन गोदारा को मारा था जिसने सबसे लड़कर उसे घोड़ी चढ़ाया

के पी सोनी की कलम से आनन्द पाल पुरा इतिहास

जून की ये 27 तारीख़ है. साल है 2006. राजस्थान के डीडवाना (नागौर) कस्बे में बाजार खुले हुए हैं. मानसून दस्तक दे रहा है. सुबह से हल्की बूंदाबांदी हो रही है. दोपहर 2 बजे के करीब यहां के गोदारा मार्केट की दुकान ‘पाटीदार बूट हाउस’ पर चार लोग बैठकर चाय पी रहे हैं. तभी संदिग्ध लगने वाली दो गाड़ियां दुकान के सामने आकर रुकती हैं. कुल जमा छह लोग गाड़ियों से उतरते हैं. कोई कुछ समझ पाता है उससे पहले ये लोग हथियार निकालते हैं और गोलियां मारनी शुरू कर देते हैं.  हत्यारों के इस जत्थे में एक 6 फुट लंबा दढ़ियल नौजवान भी है. सबसे पहले वो अपनी 9 एमएम पिस्तौल का ट्रिगर खींचता है. बैरल से धुआं उगलती गोली सामने बैठे एक हट्टे-हट्टे आदमी के सीने की तरफ बढ़ने लगती है.  गोली इस आदमी का सीना छलनी करे उससे पहले, हम समय को रोकते हैं और अतीत में तेज़ी से लौटते हैं.

साल 1992 में. देश में राम मंदिर आंदोलन का वक़्त. नागौर की लाडनूं तहसील के गांव सांवराद में एक नौजवान की शादी होने जा रही है. गांव के लोग लड़के को पप्पू कहकर बुलाते हैं. वो रावणा राजपूत बिरादरी से है. इससे जुड़ा मिथक है कि सामंती काल में राजपूत पुरुष और गैर-राजपूत महिला की संतान को इस बिरादरी में रखा जाता था. राजपूतों में इस बिरादरी के प्रति एक हिकारत का भाव भी है. चूंकि पप्पू “प्योर” राजपूत नहीं है इसलिए बारात निकलने से पहले ही गांव के “असली” राजपूतों ने चेतावनी दे रखी है कि अगर दूल्हा घोड़ी पर चढ़ा तो अंजाम ठीक नहीं होगा, ‘क्योंकि घोड़ी सिर्फ “प्योर” राजपूत ही चढ़ता है.’ पप्पू ने इस नाज़ुक मौके पर अपने एक दोस्त को याद किया. नाम – जीवनराम गोदारा. गोदारा उस समय डीडवाना के बांगड़ कॉलेज में छात्र नेता हुआ करता था. गोदारा खुद बारात में पहुंचा और अपने रसूख़ का इस्तेमाल कर पप्पू को घोड़ी पर चढ़ाया और बड़ी शान से बारात निकाली. राजपूतों का ऐतराज अपनी जगह रह गया. इसके बाद दोनों की दोस्ती और गाढ़ी हो गई. अब हम फिर से गोदारा मार्केट की दुकान पाटीदार बूट हाउस लौटते हैं. अब गोली जिसके सीने की तरफ बढ़ रही थी, उस देह का नाम है – जीवनराम गोदारा. और हैरतअंगेज ढंग से, ट्रिगर खींचने वाले युवक का नाम है पप्पू. वही पप्पू जिसे जीवनराम ने घोड़ी चढ़ाया था. पप्पू, जिसे अब सब आनंदपाल सिंह के नाम से जानते हैं. वो आनंदपाल जो राजस्थान के माफिया इतिहास में उसके बाद मिथक बन गया.
उसने जीवनराम को क्यों मारा? दरअसल, ये मदन सिंह राठौड़ की हत्या का बदला था. बताते हैं कि कुछ ही महीने पहले फ़ौज के जवान मदन सिंह की हत्या जीवनराम ने कर दी थी. हत्या का तरीका बहुत वीभत्स था. उसके सिर पर पट्टी (पत्थर का लंबा टुकड़ा जिससे छत बनाई जाती है) मार-मारकर खत्म कर दिया गया था. इस हत्या ने जातीय रूप ले लिया था और सारा मामला राजपूत बनाम जाट में तब्दील हो गया. और आनंदपाल ने राजपूतों के ‘मान’ के लिए ये बदला लिया था.
वो चुनावी हार जिसने एक सीधे नौजवान का माफिया बनाया
सन 1997 की बात है. पढ़ाई-लिखाई में ठीक रहा आनंदपाल सिंह बीएड कर चुका था. पिता हुकुम सिंह चाहते थे कि वो सरकारी मास्टर बन जाए. आनंद की शादी को पांच साल हो गए थे. चुनांचे उसे लाडनूं में एक सीमेंट एजेंसी दिलवा दी गई. गरज यह थी कि प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के साथ-साथ रोजगार का कुछ स्थाई बंदोबस्त भी किया जा सके. आनंदपाल तब तक अपने लिए अलग राह चुन चुका था. उसका विचार राजनीति में जाने का था. 2000 में जिला पंचायत के चुनाव हुए. आनंदपाल ने पंचायत समिति का चुनाव लड़ा और जीत गया. इसके बाद पंचायत समिति के प्रधान का चुनाव होना था. आनंदपाल सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर पर्चा भर दिया. उसके सामने था कांग्रेस के कद्दावर नेता हरजी राम बुरड़क का बेटा जगनाथ बुरड़क.
ये चुनाव आनंदपाल महज दो वोट के अंतर से हार गया. लेकिन अनुभवी नेता रहे हरजीराम को समझ में आ गया कि यह नौजावन आगे खतरा बन सकता है. नवंबर 2000 में पंचायत समिति में साथी समितियों का चुनाव था. इस वक़्त आनंदपाल और हरजी राम के बीच तकरार काफी बढ़ गई. ऐसा बताया जाता है कि सबक सिखाने की गरज से हरजी ने आनंद के खिलाफ कई झूठे मुकदमे दायर करवा दिए. इन मुकदमों में उसे पुलिस टॉर्चर झेलना पड़ा और उसके कदम अपराध की दुनिया की ओर बढ़ गए.
मेल नर्स गोपाल फोगावट की हत्या और ‘गैंग्स ऑफ राजस्थान’
सीकर का श्री कल्याण कॉलेज स्थानीय राजनीति की पहली पाठशाला है. यहां पर वामपंथी संगठन एसएफआई का दबदबा रहा है. जाट समुदाय में इस संगठन की पकड़ काफी मजबूत रही है. 2003 में जब वसुंधरा राजे सरकार के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी तो यहां के छात्र नेता रह चुके नौजवानों को राजनीतिक शह मिलनी शुरू हुई और छात्र राजनीति का अपराधीकरण शुरू हुआ. कई छात्र नेता देखते ही देखते शराब और भू माफिया बन गए. ऐसे में एक नौजवान तेजी से उभरा. नाम था – गोपाल फोगावट.
गोपाल एसके कॉलेज में पढ़ चुका था और बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी का कार्यकर्ता हुआ करता था. वो उस समय शहर के एसके हॉस्पिटल में मेल नर्स हुआ करता था. इधर सीपीएम के छात्र संगठन के एसएफआई के कुछ छात्र भी गोपाल के करीब आकर अवैध शराब की तस्करी में जुट गए. 2003 में ऐसे कुछ छात्रों को सीपीएम ने संगठन से बाहर निकाल दिया. इसमें से एक छात्र था राजू ठेहट. राजू का ही एक सहयोगी और दोस्त हुआ करता था बलबीर बानूड़ा. 2004 में राजू ने पैसे के लेनदेन को लेकर बलबीर के साले विजयपाल की हत्या कर दी. इस घटना के बाद दोनों दोस्तों के बीच दुश्मनी की शुरुआत हो गई. राजू ठेहट को फोगावट का संरक्षण मिला हुआ था. बानूड़ा उसके सामने काफी कमजोर पड़ने लगा. उसने बगल के जिले नागौर में नए खड़े हो रहे माफिया आनंदपाल से हाथ मिला लिया. अब उन्हें मौके का इंतजार था, जो उन्हें मिला भी.
साल 2006, तारीख 5 अप्रैल. रामनवमी से एक दिन पहले की बात है. गोपाल फोगावट अपने गांव तासर बड़ी में किसी शादी में शामिल होने जा रहा था. इसके लिए उसने जिंदगी में पहली बार सूट सिलवाया था. वो हॉस्पिटल के पास ही सेवन स्टार टेलर्स पर अपना नया सूट लेने पहुंचा. जैसे ही वो सूट का ट्रायल लेने के लिए ट्रायल रूम में गया, बलबीर बानूड़ा और उसके साथी दुकान में घुस गए और गोलियां चलानी शुरू कर दीं. फोगावट को एक के बाद एक आठ गोलियां मारी गईं. उसके बाद बानूड़ा और उसके साथी फरार होने लगे. दुकान से बाहर निकलता हुआ बानूड़ा एक बार फिर से दुकान में लौटा. उसने देखा फोगावट में अब भी जान बाकी है. उसने एक-एक करके दो गोलियां सिर में दाग दी. इस वारदात में उसके साथ शामिल था आनंदपाल सिंह.
धीरे-धीरे इस गैंग ने शेखावाटी और मारवाड़ के बड़े हिस्से में शराब तस्करी और जमीन के अवैध कब्जे में अपनी धाक कायम कर ली. इसके बाद की कहानी में बस इतना ही कहा जा सकता है कि हमेशा एके 47 लेकर चलने वाले इस गैंगस्टर को पकड़ने के लिए राजस्थान पुलिस के 3000 जवान तैनात करने पड़े. इन जवानों को खास किस्म की ट्रेनिंग देनी पड़ी.
ये एनकाउंटर वसुंधरा सरकार को भारी पड़ सकता है
वसुंधरा राजे जब पहली बार सत्ता में आईं तो वो एक चीज से बुरी तरह जूझ रही थीं. हालांकि उनकी शादी राजस्थान के धौलपुर राजघराने में हुई थी लेकिन उस समय उनकी छवि बाहरी नेता के तौर पर ही रही. राजस्थान में राजपूतों की नेता की छवि बनाने में उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी. इस छवि को गढ़ने के दौरान पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह जसोल के साथ हुए टकराव के किस्से अब भी सियासी गलियारों में गूंज रहे हैं. आज राजपूत समुदाय वसुंधरा के पक्ष में खड़ा है. उनके सबसे विश्वस्त माने जाने वाले नेताओं में राजेंद्र सिंह राठौड़ और गजेंद्र सिंह खींवसर हैं. ये दोनों नेता राजपूत बिरादरी से आते हैं. आनंदपाल सिंह की राजपूत नौजवानों में बहुत लोकप्रिय छवि है. जाटों के खिलाफ संघर्ष का वो प्रतीक बन चुका है. इस एनकाउंटर के बाद वसुंधरा के सबसे भरोसे के वोट बैंक के खिसकने का खतरा हो गया है.
यह एनकाउंटर चुरू जिले में हुआ है जो राजेंद्र राठौड़ का गृह जिला है. चुनांचे राजपूत बिरादरी में पैदा हुए रोष का शिकार राठौड़ भी बन सकते हैं. राजपूतों का एक छोटा संगठन ‘श्री राजपूत करणी सेना’ है. इसके कर्ताधर्ता हैं लोकेंद्र सिंह कालवी जिनके पिता कल्याण सिंह कालवी राजपूतों के बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री रहे थे. दिवराला सती कांड के समय खुल कर सती प्रथा का सर्मथन करने वालों में भी कल्याण सिंह थे. करणी सेना तब चर्चा में आई जब जयपुर में इसके कुछ लोगों ने फिल्म डायरेक्टर संजय लीला भंसाली के साथ बदसलूकी की और उनकी फिल्म ‘पद्मावती’ की शूटिंग रोक देनी पड़ी. यह संगठन कई सालों से गैर-राजनीतिक है. संगठन लगातार आनंदपाल की रॉबिनहुड छवि गढ़ने में लगा हुआ है और उसे हीरो की तरह क्लेम करता आया है. इस घटना के बाद पैदा हुए गुस्से को भुनाने के लिए वो एकदम सही स्थिति में हैं. जल्द ही हम इस संगठन का उभार देख सकते हैं. राजस्थान विधान सभा चुनाव-2018 में अब ज्यादा समय नहीं बचा है. ऐसे में इस घटना का सियासी असर जरूर देखने को मिलेगा.
पश्चिमी राजस्थान में मदेरणा और मिर्धा परिवारों के सियासी पतन के बाद जाटों का नया नेतृत्व उभर रहा है. हनुमान बेनीवाल बदली परिस्थितियों में तेजी से उभर रहे नेता हैं. बेनीवाल 2009 तक बीजेपी में थे लेकिन बाद में बाग़ी हो गए. इसकी एक वजह बीजेपी से आनंदपाल के संबंध भी बताए गए थे. बेनीवाल ने आनंद पाल के मामले में लगातार सरकार को घेरे रखा. वो फिलहाल निर्दलीय विधायक हैं. आनंदपाल के एनकाउंटर के बाद एक संभावना बेनीवाल के भाजपा में वापसी की भी बनती है. पश्चिमी राजस्थान मोटे तौर पर जाट बेल्ट है. बेनीवाल किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए जरूरी साबित हो सकते हैं.
सियासी कयासबाजी अपनी जगह है लेकिन आनंदपाल सिंह का अंत हो चुका है. याद करने वाले अपनी-अपनी तरह से उसे याद करेंगे. जैसे कि वो अपराधी जो नौजवानों को अपराध की दुनिया में न आकर पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देने की नसीहत देता था. जो कहता था कि अपराध की दुनिया में बैक गियर नहीं लगता. जिसके फर्राटेदार गाड़ी चलाने और 150 पुशअप लगाने के किस्से मशहूर हैं. जिसके बदन में छह गोलियां धंसी हुई है और लाश के पास कथित तौर पर एके 47 के 192 खोखे मिले हैं.
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