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आलू नें फिर पटका किसान को, बंपर पैदावार से आलू का भाव ज़मीन पर

शबाब ख़ान

वाराणसी : ठीक 20 साल पहले 1997 का वो समय याद है जब आलू की रिकार्ड तोड़ पैदावार हुई। मॉग के अपेक्षा सप्लाई इतनी ज्यादा हो गयी थी कि आलू का भाव 2 रूपए प्रति किलो तक आ गया था। कुछ किसानो नें समझदारी का परिचय देते हुए अपने आलू को कोल्ड स्टोरेज में रखना बेहतर समझा, किसान को लगा जब दाम बढ़ेगें तो स्टोरेज से निकालकर अच्छे दामों पर बेचेगें। यही स्टोरेज वाला आईडिया केवल दस-बीस  नही हजारो किसानो के दिमाग में एक साथ आ गया। नतीजन जिले के हर कोल्ड स्टोरेज के बाहर आलू लदे ट्रकों-ट्रैक्टरों की अंतहीन कतार लग गयी।

स्टोरेज का रेट डबल कर दिया गया तो भी सारे उपलब्ध स्टोरेज फुल हो गये। हालात इतने बदतर हो गये कि आलू गली मुहल्ले में ठेले पर 5 रूपए का 3 किलो बिकने लगा। सैकड़ो किसानो नें अपनी खून पसीने की पैदावार को हाईवे के किनारे ट्रकों से उतरवा कर फेक दिया। आखिर कब तक कोल्ड स्टोरेज के बाहर आलू लदा ट्रक खड़ा रहता, ट्रक का भाड़ा भी तो किसानो को ही चुकाना था। उस साल दर्जनों किसानों नें आत्महत्या की थी। याद दिलाता चलुँ कि उस समय देश के पीएम श्री अटल बिहारी वाजपयी थे।

आज बीस साल बाद समय का चक्र घूमकर फिर वही पर आ गया है। इस वर्ष भी आलू की बंपर पैदावार हुई है, और इस बार भी यूपी और केंद्र की बागडोर बीजेपी के पास है। तो, बंपर पैदावार के कारण आलू के दामो में जारी गिरावट का दौर किसानों के अरमानों पर पानी फेर रहा है। अच्छे मुनाफे की आस में किसानों द्वारा आलू की बंपर पैदावार ने ‘सब्जियों के राजा’ के भाव को जमीन दिखा दिया है।
इलाहाबाद के आलू उत्पादक किसानों ने इस साल इस उम्मीद के साथ आलू की फसल की पैदावार की थी कि उन्हें अच्छे दाम मिलेंगे मगर मांग की अपेक्षा बढी आपूर्ति ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया है। आलू के मौजूदा भाव से बिक्री करने पर केवल स्टोरेज का भाड़ा निकालना भी मुश्किल हो रहा है। किसान इस उम्मीद से आलू की निकासी नहीं कर पा रहा है कि आगे उसे अच्छा भाव मिले लेकिन यह मुश्किल लगता हुआ दिख रहा है। 30 जून तक कोल्ड स्टोरेजो से मात्र 12 फीसदी ही आलू निकासी हुई है।
किसानों का कहना है कि नोटबंदी के बाद से ही आलू के रेट में एकदम से गिरावट आ गई थी मगर उन्होंने इस उम्मीद के साथ नई फसल लेकर तैयार की है कि एक दो माह में नोटबंदी का असर कम हो जाएगा। इसके बाद उसे आलू के अच्छे रेट ना मिले पर लागत और अन्य खर्चा तो निकल ही आएंगे लेकिन उसकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। फसल आने पर आलू के भाव 300 से 350 सौ रुपए प्रति कुंटल रहे हैं। मजबूरन किसानों को आलू शीतगृह में रखना पड़ा। इस समय भी बाजार भाव 300 से 400 प्रति कुंटल है। यानि खुदरा में 3 से 4 रूपए किलो।
मौसम की मेहरबानी से इस बार अच्छी पैदावार हुई है लेकिन यही किसानों के लिए मुसीबत बन गई है। बुआई के वक्त 2300-2400 रुपये प्रति कुंटल आलू खरीदकर बोने वाले किसानों को अब 300-400 रुपये प्रति कुंटल का रेट मिल रहा है, इसमें खुदाई का पैसा किसानों को देना होगा। इससे किसान और कारोबारी दोनों परेशान हैं।दिल्ली की आजादपुर मंडी के आलू कारेबारी कहते है, ‘किसानों के लिए आलू की खुदाई का खर्चा निकलना मुश्किल हो रहा है। जब मंडी में 300-500 का रेट है तो किसान के खेत में क्या हाल होगा। 1997 की तरह आलू सड़कों पर फेंका जाएगा।’
प्रतापगढ़ जिले के सुनारिया ब्लॉक के अंधियारी गांव में करीब 4000 बीघा आलू बोया है। गांव के किसान राममोहन के पास के पास 70-80 बीघा आलू है। वो बताते हैं, “मेरे पास करीब 1500 कुंटल आलू तैयार है, लेकिन सब स्टोर में रखूंगा। अभी बेचा तो खर्चा नहीं निकलेगा। कारोबारी 6 से 7 हजार रुपये बीघा खेत ले रहे हैं (30-35 हजार प्रति एकड़) जबकि खाद-पानी बीज का खर्चा ही कम से कम 5-6 हजार प्रति बीघे का आता है।” राममोहन उन किसानों में शामिल हैं, जिन्हें नवंबर में नोटबंदी के बाद आलू के खरीदार नहीं मिले थे और 180-200 रुपये कुंटल में बेचना पड़ा था। “अगर यही हालात रहे तो 1997 की तरह किसान बर्बाद हो जाएगा। आलू सड़कों पर नजर आएगा।” स्टोर में भी रखा तो 200 रुपए को तो खर्चा ही आना है।
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