आतंकवाद के खिलाफ पहली और सबसे बड़ी जंग है मुहर्रम
मुहर्रम इस्लामी साल का पहला महीना होता है। इसे हिजरी भी कहा जाता है। यह एक मुस्लिम त्यौहार है। हिजरी सन की शुरूआत इसी महीने से होती है। इतना ही नहीं इस्लाम के चार पवित्र महीनों में इस महीने को भी शामिल किया जाता है। उक्त बातें 9 तारीख मोहर्रम की रात को केराकत बाजार जौनपुर में ताजिया रखने के पूर्व अपनी तकरीर में इमाम हुसैन के 72 साथियों को खिराजे अकीदत पेश करते हुए ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती विश्वविद्यालय लखनऊ के छात्र सैयद नबील हैदर ने कहा कि जो लोग इस्लाम के नाम पर मजलूमों का खून बहा रहे हैं वह मुसलमान नहीं बल्कि इस्लाम को बदनाम कर रहे है। साथ ही यह भी कहा कि इस्लाम इंसानियत की राह पर चलने की सीख देता है इस्लाम अमन शांति का पैगाम देता है।
उन्होंने कहा कि कुरान जो इस्लाम की बुनियाद है जिसे माने बिना कोई इस्लाम को मानने वाला हो ही नहीं सकता। क्या कुरान में कही दहशतगर्दी का जिक्र है। क्या कुरान के तीस पाहरे में कहीं यह लिखा है कि अल्लाह हू अकबर बोलो कुरान की आयत पूछो जो जवाब ना दे उसे गोली मार दो या उसकी हत्या कर दो। उन्होंने कहा हज़रत इमामे हुसेन ने इंसानियत को बचाने के लिए कर्बला में कुर्बानी दी थी।
शहीदे करबला हजरत इमाम अली मुकाम की याद में सड़कों पर उतरे शिया समुदाय के लोगों ने मातम मनाया। मुहर्रम की दसवीं तारीख पर शिया समुदाय ने परंपरा के मुताबिक मातमी जुलूस निकाला। इस मातमी जुलूस में शामिल कई लोग लहुलुहान हो गए। मातम मनाने में बड़ों के साथ बच्चे भी शामिल हुए। शिया समुदाय ने करबाला की लड़ाई का वह मंजर याद किया जिसमें हजरत इमाम अली मुकाम ने इंसानियत की खातिर और जुल्म के खिलाफ अपनी शहादत दी थी। यह मातमी जुलूस शहर के प्रमुख मार्गों से होता हुआ इमाम बाड़ा पहुंचा जहां इसका समापन हुआ। जुलूस में सैकड़ों की तादात में शिया अकीदतमंदों पर जन सैलाब उमड़ पड़ा था।
यजीद नामक जालिम बादशाह था जो इंसानियत का दुश्मन था. हजरत इमाम हुसैन ने जालिम बादशाह यजीद के विरुद्ध जंग का एलान कर दिया था। मोहम्मद-ए-मुस्तफा के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला नामक स्थान में परिवार व दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था। जिस महीने में हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था वह मुहर्रम का ही महीना था।
जिस दिन हुसैन को शहीद किया गया वह मुहर्रम के ही महीना था और उस दिन 10 तारीख थी। जिसके बाद इस्लाम धर्म के लोगों ने इस्लामी कैलेंडर का नया साल मनाना छोड़ दिया। बाद में मुहर्रम का महीना गम और दुख के महीने में बदल गया। मुहर्रम माह के दौरान शिया समुदाय के लोग 10 मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनते हैं। वहीं अगर बात करें मुस्लिम समाज के सुन्नी समुदाय के लोगों की तो वह 10 मुहर्रम के दिन तक रोज़ा रखते हैं। इस दौरान इमाम हुसैन के साथ जो लोग कर्बला में शहीद हुए थे उन्हें याद किया जाता है और इनकी आत्मा की शांति की दुआ की जाती है।आपको बता दें की मुहर्रम को कोई त्यौहार नहीं है बल्कि मातम मनाने का दिन है। जिस स्थान पर हुसैन को शहीद किया गया था वह इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा है। मुहर्रम महीने के 10वें दिन को आशुरा कहा जाता है।