राज खन्ना की कलम से
(सुल्तानपुर )
दलित वोटों पर डोरे डालने की प्रियंका गांधी की कोशिश क्या एक बार फिर कांग्रेस और गांधी परिवार पर मायावती के हमलावर होने का कारण बनेगी? बुधवार को भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर से प्रियंका की भेंट के फौरन बाद मायावती की गठबंधन सहयोगी अखिलेश यादव के साथ बैठक इसके संकेत दे रही है।
मायावती कांग्रेस से गठबंधन से पहले ही इन्कार कर चुकी हैं।अपने बूते लड़ने की तैयारी में जुटी कांग्रेस वोटों के नए समीकरण साधने में जुटी हैं।पिछले कुछ दिनों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलितों बीच भीम आर्मी चीफ़ चंद्रशेखर की अच्छी पैठ बनी है।चंद्रशेखर को मायावती ठुकरा चुकी हैं। प्रियंका ने भेंट की पहल करके चंद्रशेखर का कद बढ़ा दिया है।मायावती को यह भेंट और संभावित गठबंधन खटक रहा है। वह पलटवार कर सकती हैं। हिसाब चुकता करने के लिए अमेठी-रायबरेली में अपने उम्मीदवार भी उतार सकती हैं।
सत्रह साल पहले प्रियंका की एक दलित के प्रति सहानुभूति मायावती को बेहद अखरी थी।2002 में वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं।प्रियंका ने खुद को अपनी मां सोनिया गांधी के तत्कालीन निर्वाचन क्षेत्र अमेठी तक सीमित कर रखा था।वहां के संग्रामपुर थाने के गाँव पुन्नपुर के दलित रामभजन का घर दबंगों ने ढहा दिया था।प्रियंका रामभजन के साथ थाने रपट दर्ज कराने पहुंच गईं। अखबारों की सुर्खियां बनीं।दलित मुख्यमंत्री की सत्ता में एक दलित की बेहाली से सरकार की किरकिरी हुई।मायावती को लगा कि उनके दलित वोट बैंक पर डोरे डाले जा रहे हैं।बसपा-कांग्रेस के बीच राम भजन को लेकर खींचतान हुई।अपने-अपने पाले में रखने की।बाजी कांग्रेस के पक्ष में गई।पार्टी कार्यकर्ताओं ने श्रमदान से राम भजन का मकान बनवाया।और भी मदद की।इस प्रकरण में मायावती ने अपने एक मंत्री की छुट्टी भी कर दी।बात वहीं नही थमी।मुख्यमंत्री के रूप में 11 दिसम्बर 2002 को अमेठी में बड़ी रैली की।अमेठी संसदीय क्षेत्र को छत्रपति शाहूजी महराजनगर नाम से अलग जिला बनाने की घोषणा की।इस जिले का मुख्यालय गौरीगंज को बनाया।2003 में उपचुनाव में बसपा ने इस संसदीय क्षेत्र की गौरीगंज विधान सभा सीट कांग्रेस से छीनी।मायावती की अलग जिले की अधिसूचना को मुलायम सिंह यादव की अगली सरकार ने 13 नवम्बर 2003 को रद्द कर दिया था।पर अपने अगले कार्यकाल में मायावती ने 2010 में एक बार फिर छत्रपति शाहू जी महराजनगर को अलग जिले के रूप में बहाल किया।अदालती लड़ाई में जिले की अधिसूचना रद्द हुई ।पर 1 जुलाई 2013 को अखिलेश यादव की अगुवाई वाली सपा सरकार ने इस जिले को फिर से बहाल कर दिया।सिर्फ मायावती सरकार द्वारा दिए नाम छत्रपति शाहूजी महराजनगर को खत्म करके उसे अमेठी का नाम दे दिया गया। अब अखिलेश-मायावती साथ हैैं।
यू पी में पस्त पड़ी कांग्रेस प्रियंका की अगुवाई में फिर से खड़े होने की कोशिश में है।उधर पिछले दो विधानसभा चुनाव की हार और 2014 के लोकसभा चुनाव में सफाये के बाद बसपा अपने वजूद के लिए जूझ रही है।इसके लिए सपा से अपने कडुवे रिश्तों तक को भुला उसका साथ कर लिया है। पिछले लोकसभा चुनाव की बुरी हार और 2017 के विधानसभा चुनाव की दुर्गति के साथ पारिवारिक विग्रह बीच सपा भी संकट में है। वापसी के लिए साथ हुए सपा-बसपा गठबंधन के लिए कांग्रेस का उभार खतरे की घंटी है। मायावती का दलित वोट बैंक इस गठबंधन की सबसे बड़ी पूंजी है।उसे बचाने के लिए मायावती यकीनन जूझेंगी।भाजपा के साथ कांग्रेस से भी।तब वह रायबरेली,अमेठी को भी क्यों छोड़ेंगी?
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