अंजनी राय
बलिया: लोकसभा का चुनाव में हर दल के कार्यकर्ता अपने नेताओं से पूछ रहे हैं कि पांच साल उन्हें उनके करीबी नेता क्यों नहीं याद किए। इस सवाल से सभी दलों के नामी नारायणों की परेशानी बढ़ गई है। ऐसे कार्यकर्ता सत्ता में भी हैं और विपक्ष में भी। उनकी माने तो लोकसभा, विधानसभा या त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हो अपने नेता को जिताने में कार्यकर्ता जी जान से लग जाते हैं।
चुनाव के बाद किसी एक की विजय होती है। विजयी दल के नेता अपने नामी कार्यकर्ताओं को तो कभी याद भी करते हैं, लेकिन जो विपक्ष में होते हैं उनके नेता तो अपने कार्यकर्ताओ से इस कदर मुंह मोड़ लेते हैं मानो चुनाव में उनके कार्यकर्ता ही उन्हें चुनाव हरा दिए हों। उनके नेता पांच साल तक गायब हो जाते हैं। अब जब लोकसभा चुनाव चुनाव आया है तो सभी अपने-अपने कार्यकर्ताओं को पूछने लगे हैं। इससे पहले वहीं नेताजी उनके फोन तक नहीं उठाते थे।
इसी मुद्दे को लेकर विधान सभा बैरिया में कार्यकर्ताओं संग आम जनता के स्वर भी कुछ इसी तरह के है। मतदाता व पार्टी कार्यकर्ता भी काफी जागरूक हो चुके हैं। इससे विभिन्न दलों के नेताओं के माथे पर भी बल पड़ने लगा है। चुनाव के सभी कार्यकर्ता भले की अपने दल के नेता का साथ दे दें। लेकिन अभी के समय में हर जगह ऐसी ही चर्चा है। दलगत कार्यकर्ता में अधिकांश की बातों में उपेक्षा का दर्द छिपा है।
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