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जिस रिटायर्ड सूबेदार मोहम्मद सनाउल्लाह ने भारतीय सेना में किया 30 साल नौकरी, पाया राष्ट्रपति अवार्ड, लडे मुल्क के लिए जंग, उनको ही विदेशी ट्राइब्यूनल ने घोषित किया विदेशी नागरिक

आफताब फारुकी

नई दिल्ली। भारतीय सेना में 30 साल तक नौकरी करने वाले मोहम्मद सनाउल्लाह जिनको राष्ट्रपति पदक तक मिला और कारगिल सहित कई जंग में उन्होंने अपनी शिरकत कर जान पर खेल भारत का मान बचाया उसी पूर्व सैनिक को विदेशी ट्राइब्यूनल ने विदेशी नागरिक घोषित कर डिटेंशन सेंटर भेज दिया। यह वाकया कही और नही बल्कि अपने ही मुल्क के असम में गुज़रा है। इस घटना ने मोहम्मद सनाउल्लाह के परिजनों को काफी परेशान कर रखा है। इस मामले को अब गुवाहाटी हाई कोर्ट के समक्ष उठाने की तैयारी परिजन कर रहे हैं।

बताते चले कि साल 2017 में भारतीय सेना के इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर्स विंग में बतौर सूबेदार रिटायर्ड हुए मोहम्मद सनाउल्लाह का नाम असम में अपडेट की जा रही राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में शामिल नहीं किया गया है। 52 साल के सनाउल्लाह को इसी महीने 23 मई को कामरूप (ग्रामीण) स्थित विदेशी ट्रिब्यूनल यानी एफटी कोर्ट नंबर 2 के ज़रिए विदेशी घोषित किया गया था। वही गुवाहाटी हाई कोर्ट में पूर्व सूबेदार का मामला लड़ने की तैयारी कर रहे वकील अमन वादूद ने मीडिया से बात करते हुवे कहा है कि साल 2008-09 में सनाउल्लाह की नागरिकता को लेकर एक जांच की गई थी उस समय वे मणिपुर में तैनात थे। इस कथित जांच के दौरान उनके अंगूठे का छाप लिया गया था और उन्हें एक अवैध प्रवासी मज़दूर बताया गया।

उन्होंने कहा कि उसके बाद जब एनआरसी बनाई गई तो उसमें उनका नाम नहीं आया। फिर उन्हें मालूम चला कि विदेशी ट्राइब्यूनल में उनके खिलाफ एक मामला दर्ज किया गया है। इसके बाद ट्राइब्यूनल में कई सुनवाई हुई और उन्होंने अपनी नागरिकता से जुड़े कई दस्तावेज़ दाखिल भी किए लेकिन ट्राइब्यूनल ने उन दस्तावेजों का मानने से इनकार कर दिया। जब पूरा मुल्क चुनावो में भाजपा की जीत अपने घर के टीवी सेट पर देख रहा था तो उस दौरान एफटी ने 23 मई को उन्हें विदेशी घोषित कर दिया।

बताते चले कि मोहम्मद सनाउल्लाह ने ट्राइब्यूनल में अपनी गवाही में कहा था कि उन्होंने भारतीय सेना में काम करते हुए जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में अपनी सेवा दी थी। सबसे अचम्भे वाली बात यहाँ ये है कि सनाउल्लाह वर्तमान में असम पुलिस की बॉर्डर शाखा में एक सब-इंस्पेक्टर के रूप में काम कर रहे थे। राज्य में अवैध प्रवासियों का पता लगाने के काम में जुटी उसी बॉर्डर पुलिस ने बीते मंगलवार 30 मई को सनाउल्लाह को गिरफ्तार कर लिया। इस बात की पुष्टि कामरूप जिले के एडिशनल एसपी संजीब सैकिया ने भी किया है। उन्होंने सनाउल्लाह को हिरासत में लिए जाने की पुष्टि की है। पुलिस अधिकारी कहा है कि एफटी ने उन्हें विदेशी घोषित किया है और पुलिस कानून के तहत कार्रवाई कर रही हैं। सनाउल्लाह को फिलहाल ग्वालपाड़ा के एक डिटेंशन केंद्र में रखा गया है।

सनाउल्लाह के परिजनों का कहना है कि जो व्यक्ति 30 साल तक सेना में रहा हो और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ करगिल युद्ध लड़ा हो उसे कोई विदेशी नागरिक कैसे घोषित कर सकता है ? 2015 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के साथ लड़ते हुए सनाउल्लाह को पैर में गोली लगी थी। हमने कभी नहीं सोचा कि उनको विदेशी घोषित कर डिटेंशन में बंद कर दिया जाएगा। उनके पास भारतीय नागरिकता से जुड़े सारे दस्तावेज़ हैं लेकिन उनके मुसलमान होने के कारण सरकार ने उनके साथ ऐसा किया है। एफटी कोर्ट में सनाउल्लाह का मामला देखने वाले वकिल साहिदुल इस्लाम का दावा है कि उनके परिवार के पास नागरिकता के कई दस्तावेज़ मौजूद हैं। वकिल के अनुसार सनाउल्लाह के पास 1966, 1970 और 1977 तक मतदाता सूची में सदस्यों के नाम है। इसके अलावा अपने स्वयं के मैट्रिकुलेशन प्रमाण पत्र और पिता के भूमि दस्तावेज़ भी हैं।

क्या है मामला

मामला दरअसल ये है कि पिछले साल सनाउल्लाह को एफटी ने नोटिस भेजा था और वे पहली बार 25 सितंबर 2018 को ट्राइब्यूनल में पेश भी हुए थे। ट्राइब्यूनल से नोटिस मिलने के बाद बीते साल सनाउल्लाह ने मीडिया को एक बयान भी दिया था जिसमे उन्होंने कहा था कि फौज में भर्ती के वक़्त गहरी छानबीन की जाती है, लेकिन अब इतने साल बाद उनकी नागरिकता पर किसी तरह का कोई शक क्यों पैदा किया जा रहा है? सेना में भर्ती के समय नागरिकता सर्टिफिकेट और दूसरे दस्तावेज़ मांगे जाते हैं। सेना उसे राज्य प्रशासन को भेजकर उसका रीवेरिफिकेशन करवाती है। ऐसे में ये सवाल तो उठने ही नहीं चाहिए।

असम में सनाउल्लाह का यह इकलौता मामला नहीं है। इसके अलावा पूरे राज्य में ऐसे कई सैनिक और पूर्व सैनिकों के मामले सामने आए हैं जिन्हें अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने को कहा गया है। असम में विदेशी नागरिकों के मामलों की सुनवाई के लिए इस समय सौ ट्रिब्यूनल चल रहे हैं। इस व्यवस्था के तहत एफटी में नियुक्त सदस्य विदेशी अधिनियम,1946 के अंतर्गत यह देखता है कि जिस व्यक्ति पर मामला है वो इस कानून के भीतर एक विदेशी है या नहीं है। हालांकि इन एफटी के कामकाज को लेकर काफी सवाल भी उठते रहे हैं। अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए गठित इन विदेशी ट्राइब्यूनल के आदेश के बाद ऐसे ही क़रीब 900 लोग ‘विदेशी’ ठहराए जाने के बाद हिरासत में हैं। इनमें से लगभग सभी लोग बंगाली भाषी मुसलमान या हिंदू हैं। हालांकि गुवाहाटी हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद कई लोगों को राहत भी मिली है।

वही दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने सेवानृवित्त सैनिक को डिटेंशन केंद्र भेजने की घटना को निराशाजनक बताया। कोर्ट ने एनआरसी के समन्वयकर्ता प्रतीक हजेला से मामले की पूरी जांच करने और प्रक्रिया का पालन करने को कहा है। कोर्ट ने ये भी कहा है कि एनआरसी में जो भी व्यक्ति पंजीकृत होना चाहता है उसकी पूरी बात सुनी जाए और ये प्रक्रिया 31 जुलाई तक पूरी की जानी चाहिए। भारत के चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की अध्यक्षता वाली अवकाश पीठ ने स्पष्ट किया कि न्यायिक अनुभव वाले आईएएस अधिकारी इस ट्राइब्यूनल के प्रमुख हो सकते हैं। कोर्ट ने माना कि 31 जुलाई तक एनआरसी की प्रक्रिया पूरी करने की आखिरी तारीख़ है और इसे बढ़ाया नहीं जा सकता, लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं है कि इसमें लोगों की बातों को पूरी तरह सुना ना जाए और उन्हें मौके नहीं देना चाहिए।

खैर मामले के हाईलाइट होने के बाद से ऍफ़टी ने अभी तक कोई बयान नही दिया है। प्रकरण में एनआरसी के कार्यप्रणाली पर ही काफी सवाल उठाये जा रहे है। मामला तुल पकड़ता दिखाई दे रहा है। वही दूसरी तरफ सनाउल्लाह के परिजन हाई कोर्ट का रुख कर रहे है।

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