बापूनन्दन मिश्र
रतनपुरा (मऊ)। पूर्वांचल में अपनी कीमत से आंसू निकालने वाली प्याज का साथ देने के लिए हरी सब्जिया भी सीना तान कर खडी हो गई है। ऐसा लगता है कि रसोई में सब्जियों ने नही पहुचने का इरादा कर रखा है। माध्यम वर्गीय घरो के किचेन में आलू ने अपनी बड़ी मजबूत पकड़ ऐसे बना रखा है कि लगभग रोज़ ही आलू की सब्जियों से खाने में स्वाद आ रहा है।
मौसम के हिसाब से ग्रामीण इलाकों में इन दिनों खूब हरी सब्जियां निकलती थी। यही नही सब्जियां सस्ती भी होती थी। लेकिन इस वर्ष खेतों में जलभराव के चलते सब्जियों का दाम आसमान छू रहा है। हालात कुछ इस प्रकार हो रहे है कि सब्जियों के नाम पर आलू से काम चलाया जा रहा है और गरीबो की पहुच से हरी सब्जिया बाहर होती जा रही है। एक मध्य परिवार के किचेन में अगर सही प्रकार से आम दिनों की तरह सब्जियों को पकाया जाए तो एक दिन की सब्जी 100 रूपये से पार की पड़ रही है। आम आदमी प्याज की मार झेलते झेलते हरी सब्जियों से भी दूर होता जा रहा है।
दक्षिणांचल में परवल की बेहतरीन खेती होती है। लेकिन इस बार तमसा के रौद्र रूप ने तटवर्ती सब्जियों की खेती को निगल लिया है। आलम यह है कि सब्जी बाजार में गोभी 100, सूरन 40, प्याज 50, भिंडी 40, परवल 120, बोडा 80, पालक 120, बैगन 80, धनिया 250, सोया 150 रुपया प्रति किलो की दर से बिक रही है। मध्यमवर्ग एवं गरीब तबके के लोगों को बाजार से सब्जी खरीद पाना मुश्किल हो गया है। गरीब तबका पांच दशक पीछे चला गया है। दाल रोटी खा कर के अपने पेट की क्षुधा शांत कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में नदी एवं ताल तटवर्ती खेती बेहाल है। इसलिए अगले महीने तक सब्जियों के दाम में कोई कमी होने की स्थिति नहीं बन पा रही है। बढ़ती महंगाई किसानों की चिंता का सबब बना हुआ है।
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