करिश्मा अग्रवाल
पं० रामाश्रय झा ‘रामरंग’ समिति” द्वारा आयोजित सप्त दिवसीय कार्यशाला के चतुर्थ दिवस आयोजक डॉ० रामशंकर जी के निर्देशन में डॉ०रुचि मिश्रा ने सत्र प्रारंभ गुरु पं० हेमंत पेंडसे के स्वागत एवं परिचय से किया। पं० हेमंत पेंडसे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रख्यात गायक तथा AIR के शीर्ष ग्रेड कलाकार हैं, साथ ही विभिन्न सम्मानो जैसे- जसराज गौरव पुरस्कार, चतुरसुर गायक पुरस्कार, माणिक वर्मा स्वर्णकार पुरस्कार आदि विशेष सम्मानो से सम्मानित है।
न्यास के लिए प्रत्येक स्वर-वाक्य में न्यास स्वर के महत्व को सूक्ष्मता से समझाया। किसी भी एक रात को लेकर आलाप-तान के साथ लय-ताल का निर्वहन करते हुए किस प्रकार अपनी गायकी को सुंदर ढंग से प्रस्तुत करें?, तार सप्तक में आवाज को कैसे और कितना खींचना है?, प्रस्तुति में माइक्रोफोन के साथ आवाज लगाने के क्या टेक्निक्स हैं? आदि विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं से विद्यार्थियों को अवगत कराया तथा प्रातः रियाज के लिए भैरव, तोड़ी, बिलावल आदि रागों को अधिक उपयुक्त बताया।
गायन में ताल की महत्ता को समझाते हुए राग भैरव (त्रिताल) में निबद्ध एक सरगम गीत, एक तराना तथा राग भैरव में ही निबद्ध पं० रामाश्रय झा ‘रामरंग’ जी द्वारा रचित एक ताल की बंदिश- “कहि मानिये पिहारवा…” को प्रस्तुत कर बंदिश में ताल के साथ सम के संवाद को बहुत ही सुंदर ढंग से समझाया।
गायन में ताल के संतुलन को बताते हुए हमारे दैनिक जीवन में प्रयुक्त उपकरणों का उदाहरण देते हुए, “जिस प्रकार हम गाड़ी चलाते हैं तो दूर से ही सिग्नल दिखने के बाद भी वही ब्रेक ना लगाते हुए, पहले हम धीरे-धीरे अपनी गति कम करते हैं, फिर गेयर बदलते हैं और बिलकुल जीरो लाइन पर आने के बाद सही अंदाज से ब्रेक लगाते हैं, तो जर्क नही लगता है, ठीक उसी प्रकार अपने गायन में भी ताल के साथ सम को सही अंदाज से लगाने के लिए प्रयासरत होना चाहिए।”
दूसरे उदाहरण के रूप में- “जिस प्रकार मोबाइल में घड़ी अपनी गति से चल रही होती है तथा पावर ऑफ होने के बाद भी ऑन करने पर वह सही समय बता रही होती है, अर्थात मोबाइल बंद होने पर भी वह घड़ी उसके अंदर चलता रहता है, ठीक उसी प्रकार हमारे अंदर ताल की गति चलती रहने के लिए अभ्यासरत होना चाहिए।
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