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तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ – “सखी सईया तो खुबे कमात है, महंगाई डायन खाए जात है”, कडवा सच अगर हज़म नही तो न पढ़े इसको

तारिक़ आज़मी

वाराणसी। सुबह सुबह काका कमरा में आ धमके, हाथ में लाठिया लिए धमक दिहिन धडाम से। एकदम से नीद भाग गई और बईठ गए हम। तिलमिला तो मनवा रहा था कि काका के भी खुद सूझे है कही कोई अईसे किसी को जगाता है भला। पाहिले सोचा कि कछु बोले तब तक काका के चेहरा पर नज़र पड़ी। उदासी अईसे चंमक रही थी कि लगा काकी सुबहे सुबह हऊक दिहिन है। थोडा खुद को संभाला और थोड़ा काका को और पूछा का हो गया काका, काकी सुबहे सुबह हऊक दिहिन है का ?

बस फिर का था काका का टेपरिकार्डर चालू हो गया। खूब जमकर खरी खोटी सुनाये लगे। थोडा सम्भले तो बताये लगे अपनी वही पुरानी कहानी कि अपनी जवानी में 200 रुपया में एक साल का अनाज पूरा लावत रहे और चौचक दबा के साल भर तक खावत रहे। आज सब्जी लेने निकल पड़े तो पाऊच में सब्जी मिली है 200 रुपया की। हमका हंसी आई और हम कह दिया “का काका इतना सब्जी खाली लिए हो और दुई सौ रुपईया खर्चा कर डाले हो। कऊनो तुमका बेवक़ूफ़ बना दिहिन है।” फिर का था काका का टेप पुराना फिर से शुरू हो गया और फिर लगे बोले। ससुर के नाती आखरी बार सब्जी मंडी कब गए रहे बे। तो हम भी सोचने लगे काका तो पूछ सही रहे है कि आखिरी बार सब्जी कब लाये रहे हमका खुदे नही याद रहा। काका चाय पीकर काकी की डांट खाने जा चुके रहे और हम सोच में ही पड़े रहे।

आज फिर मैंने भी सोचा कि यार घर के काम बच्चे करते है चलो आज खुद सब्जी लेकर आते है। झोला उठाया और चल पड़े सब्जी लेने। रस्ते में मन हुआ कि वापसी में चिकन ले लेंगे और चिकन चिल्ली खाया जाएगा आज। चिल्ली के लिए शिमला मिर्च भी लेना है। सोच कर सब्जी मंडी पहुचा और सामने ही कल्लू की दूकान पर पहुच गया। कल्लू से एक दशक से अधिक समय से सब्जी लेता रहा हु। भली भांति परिचित होने के कारण उसके यहाँ सब्जी छटनी नही करना पड़ता है। वो खुद ही छांट के ताज़ी सब्जियां दे देता है।

मामूल के अनुसार कल्लू ने मुझको बैठने के लिए एक स्टूल दिया और चाय वाले को आवाज़ दे दिया। चाय की चाहत पूरी करने के बाद सब्जियों के मुताल्लिक बात होने लगी। कल्लू से कभी मैंने दाम नही पूछा था और सीधे जितना कहता उतना उसको दे देता था। मगर आज काका का फरमान था तो थोडा संकोच के साथ कल्लू से पूछा कि आलू क्या भाव दिया ? कल्लू का जवाब वही पुराना था “अरे भैया आपको दाम क्या पूछना है, हमेशा की तरह आपको सही दाम लगाऊंगा भैया, आज का सम्बन्ध थोड़ी है आपसे।” मैंने फिर भी दाम दरयाफ्त कर डाला तो बोला भईया नया आलू आपके यहाँ जायेगा क्योकि पुराना आलू मीठा हो चूका है, वो इस समय 50 रुपया किलो आपको पड़ेगा। रेट 55 का है। दाम सुनकर सब्जियों के होश फाख्ता हो चुके थे। थोडा आप भी जान ले।

भिन्डी जो इस समय नापसंद रहती है वो 60 रुपया किलो थी। प्याज ने कसम खाई हुई थी कि 90 से नीचे नही जाने वाली हु, परवल गुरु ने खुद का दाम 80 रख रखा था। जहा बैगन 40 के भाव में आराम फरमा रहा था तो वही तरोई जिसको नेनुआ भी कहते है ने खुद के दाम की हाफ सेंचुरी पूरी कर लिया था। मटर यानी छीमी की भीनी भीनी खुशबु ने मदहोश कर दिया था मगर तब तक दाम ने वापस होश में ला दिया दाम पुरे 160 रुपया था। दाम ने जब होश दिलाया तब तक कल्लू की बिल 750 रुपया हो चुकी थी। मैंने सोचा कि शायद शिमला मिर्च कुछ आराम दे और एक किलो का आदेश पारित कर दिया। बिल अब 850 हो चुकी थी। यानी शिमला मिर्च दाम का शतक लगा कर बल्ले हिला रही थी।

सब्जी का झोला भरा नही था और कल्लू ने कह दिया भईया आज बहुत कम सब्जी लिए है। मन तो कर रहा था कि पलट कर कह दू कि अबे अब मकान भी लिखवा ले मेरा, मगर बात उसकी भी ठीक थी कि अमूमन एक हफ्ते की सब्जी से भी कम सब्जी थी। रास्ता चलते आ रहा था कि चिकेन वाले की दूकान सामने पड़ गई। उसकी आवाज़ ने तन्द्रा तोड़ी और उस दूकान के तरफ बढ़ गया। सोचा चलो कम से कम चिकेन ही खाकर सब्जी को कुछ दिन मोहलत दे देता हु कि दाम कम कर ले। चिकेन वाले से दाम पूछने की गलती कर बैठा लगा कलेजा मुह को आ जायेगा। चिकेन भी अब 200 का भाव खुद का रख कर कुकड़ू कु कर रहा था। दाम ही पूछा था कि उसके यहाँ बज रहे टेप ने गाना बजा दिया, “सखी सईया तो खुबे कमात है, महगाई डायन खाए जात है।” ऐसा लगा गाने के बोल सुनकर मेरे चेहरा-ए-नुरानी पर जहा मुस्कराहट आ गई तो वही अपने चहरे पर मासूमियत रखकर दुकानदारी करने वाले जीशान मिया जोर से ठहाका मार कर हंस रहे थे।

जेब का मोबाइल अलग चिल्लाने लगा कि पहले मुझको उठाओ। फोन पर फरमाईश थी घर से कि चायपत्ती भी ले लेना। चाय वाले से चायपत्ती माँगा तो जो चायपत्ती वह पहले मुझको 220 रुपया किलो देता था, वह चायपत्ती अब 300 रुपया किलो हो चुकी थी। मैंने थोडा अचम्भा दिखाया तो बोला तारिक़ भाई आंटे का दाम भी सुन ले। कल तक 26 रुपया किलो वाला आंटा अब 30 में है और चावल जो आपके यहाँ 35 वाला जाता था वह अब 40 हो चूका है। तेल घी भी महंगा है। थोडा सोचे हम आप तो थोडा उन्नीस बीस से काम चला लेंगे मगर गरीब का क्या होगा ?

वो जो टेप था अब एकदम सही बोल रहा था गुरु, सखी सईया तो खुबे कमात है, महंगाई डायन खाये जात है। और महंगाई ने जी भर कर कमाई खाना शुरू कर दिया है। ऐसी परिस्थितियों से आप रोज़ रूबरू होते होंगे अगर खुद के घर के राशन और सब्जी के बिल देखते होंगे तो। अन्यथा होना शुरू कर दे। थाली में सजा सवार आने वाला भोजन अब कितना महंगा पड़ रहा है सोचे। रोज़गार के नाम पर जेब की कटौती के बाद ये भी एक बड़ी मार जेब पर है। महंगाई के कारणों की विवेचना तो नही कर रहा हु मगर महज़ दो माह पहले प्याज़ दस रुपया किलो थी। आज 90 में भी वो क्वालिटी नही है। सोचिये, जिसने दो माह पहले स्टोक किया था उसका दाम आज कितना हो चूका है। समझिये और फिर गाना गाईये कि सखी सईया तो खुबे कमात है महंगाई डायन खाए जात है।

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