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दालमंडी – गन्दगी के बाढ़ में बहता कारोबार, पार्षद सफाई के लिए हलकान, क्या ज़िम्मेदार कर रहे परेशान, आखिर कब जागेगा नगर निगम ?

तारिक आज़मी

वाराणसी। वाराणसी का दालमंडी क्षेत्र को आप पूर्वांचल का वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की उपाधि भी दे सकते है। छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी ज़रुरियात को केवल एक मार्किट में वाजिब कीमत पर पूरा कर सकने का जज्बा और हौसला रखने वाला क्षेत्र दालमंडी। एक पेन ड्राइव से लेकर पुरे शादी के सामानों तक की आवश्यकताओ को बड़े शोरूम से आधी कीमत पर आप यहाँ हासिल कर लेते है।

वही इस क्षेत्र की सभी सुविधाओं के बीच प्रशासनिक उदासीनता का शिकार भी ये क्षेत्र होता रहता है। यहाँ के पार्षद मोहम्मद सलीम की लाख कोशिशो के बावजूद प्रशासनिक स्तर पर इस क्षेत्र को नज़रंदाज़ करने के कारण कई ज़रूरी सुविधाओं से इलाका महरूम रह जाता है। इसका जीता जागता नमूना इस क्षेत्र की सफाई व्यवस्था है। यहाँ के पार्षद इस क्षेत्र के सीवर व्यवस्था को सुचारू करवाने के लिए काफी प्रयास कर चुके है।

प्रयास तो इतना हुआ कि कई बार प्रदर्शन भी करना पड़ा। मगर नतीजा सामने है। वही धाक के तीन पात की कहावत साबित हुई। पार्षद को सफाई व्यवस्था के नाम पर अगर कुछ उपलब्ध हुआ तो वह है मात्र आश्वासन। आश्वासन का सहारा लेकर विभाग ने अपना पल्ला तो झाड लिया मगर जनता के सवालो का सामना तो यहाँ के पार्षद को करना पड़ रहा है। ताज़ा मामला फिर से सीवर की खराबी का सामने आया है।

वैसे तो पुरे दालमंडी की सीवर व्यवस्था ख़राब हो चुकी है। जानकारों की माने तो सीवर की पूरी लाइन ही क्षेत्र की बदलना आवश्यक है। मगर फिर भी उदासीनता की हदे पार करता नगर निगम इस पर अपने विचार करने को तैयार ही नहीं है। अभी पिछले दस से भी अधिक दिनों से भवन संख्या दालमंडी के CK 43/154 गोविन्दपुरा के पास सीवर का पानी सडको पर बह रहा है। जिससे दुकानों के सामने कीचड और गन्दगी के अम्बार लगे हुवे है। ग्राहक इसी कीचड और गन्दगी से होकर गुज़रते है। नाक मुह बंद करके खुद के सामनो की खरीद के मकसद से आये ग्राहक दुकानों पर नही रुकते और आगे बढ़ जाते है।

इस गन्दगी से परेशान दूकानदार और क्षेत्रीय नागरिक अपनी समस्याओं को पार्षद से कहते दिखाई दे रहे है। पार्षद बड़े अधिकारियो से कहते दिखाई देते है। मगर अधिकारी है कि अपने अधिनस्थो को यहाँ की समस्याओं पर गौर करने के आदेश नही देते दीखते है। क्योकि अगर अधिकारी उनको आदेश देते तो कैसे अधीनस्थ काम न करते समझ से परे है। सवाल है कि आखिर नगर निगम कब जागेगा और अपनी ज़िम्मेदारी समझेगा।

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