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वाराणसी – पांचवे दिन भी जारी रहा डा. कुलपति तिवारी का अनशन, मेडिकल टीम ने किया स्वास्थ्य परीक्षण

मो० सलीम

 वाराणसी। काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डा. कुलपति तिवारी का अनशन पांचवें दिन भी जारी रहा। जैसे जैसे दिन बीतते जा रहे हैं वैसे वैसे प्रशासनिक अधिकारियों के महंत आवास पहुंचने का क्रम भी तेज होता जा रहा है। शनिवार को एसएचओ तथा सीओ दशाश्वमेघ सहित एसीएम द्वितीय टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पहुंचे और उनसे वार्ता किया।  इस दरमियान पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने डा. तिवारी से अनशन तोड़ने का आग्रह किया। एसीएम द्वितीय ने उनकी मांगों से वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को अवगत कराने का आश्वासन दिया।

बातचीत के दौरान डा. तिवारी के सामने यह प्रस्ताव भी रखा गया कि पूर्व मुख्य कार्यपालक अधिकारी विशाल सिंह के कार्यकाल में मंदिर के जिस कक्ष से मूर्तियां निकाल कर दूसरे पक्ष को दी गई थीं उसी कक्ष में वापस मंगा कर रख दी जा रही हैं। उसके बाद आगे का निर्णय बातचीत के माध्यम से कर लिया जाएगा।  किंतु डा. तिवारी रजत मूर्तियों की वापसी अथवा वापसी का लिखित आश्वासन मिलने तक अनशन नहीं तोड़ने की जिद पर अड़े रहे।

इससे पूर्व मध्याह्न में कबीरचौरा अस्पताल से डाक्टरों की टीम डा. कुलपति तिवारी की जांच करने उनके आवास पर पहुंची। डा० आर०पी० चतुर्वेदी के नेतृत्व में पहुंची मेडिकल टीम ने ब्लड प्रेशन और पल्स रेट नापने के बाद यूरिन और ब्लड के नमूने भी लिए। डा. कुलपति तिवारी के अनशन को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के भिन्न-भिन्न शहरों से नैतिक समर्थन का क्रम जारी है।

इस सम्बन्ध में डा. कुलपति तिवारी ने कहा कि श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी लोक परंपराओं के निर्वाह के लिए महंत परिवार विगत साढ़े तीन सौ वर्षों से भी अधिक समय से कृत संकल्प है। मंदिर की व्यवस्थाओं के अधिग्रहण की न्यायालय द्वारा दी गई व्यवस्था की आड़ में मंदिर का ही अधिग्रहण करने के बाद भी महंत परिवार लोक परंपराओं के पालन के लिए पूर्ण रूप से समर्पित रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी सोच के अनुरूप काशी विश्वनाथ धाम के निर्माण के लिए महंत परिवार ने अपने पैतृक आवास और मंदिरों को भी सहर्ष कॉरिडोर के लिए छोड़ दिया।

उन्होंने बताया कि गत वर्ष 22 जनवरी को मेरे पैतृक आवास का एक हिस्सा अचानक गिर जाने से बहुत सारा सामान मलबे में दब गया। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर की लोक परंपराओं के निर्वाह में भिन्न-भिन्न धार्मिक अवसरों पर पूजी जाने वाली बाबा विश्वनाथ की कई रजत मूर्तियों के साथ प्रयुक्त होने वाला चांदी का सिंहासन और चांदी का तामझाम भी उसी मलबे में दब गया। बाबा विश्वनाथ और माता पार्वती सहित कई प्राचीन रजत मूर्तियां बाल-बाल बच गई थीं। उनके महत्व और सुरक्षा की दृष्टि से विश्वनाथ मंदिर प्रबंधन ने उन मूर्तियों को मंदिर के एक कक्ष में रखवाया। ताला लगा कर तीन चाबियां तीन पक्ष के पास थीं। एक चाबी मेरे पास, दूसरी प्रबंधन के पास और तीसरी चाबी मेरे चचेरे भाई के पास। टेढ़ीनीम स्थित नए भवन में परिवार के साथ व्यवस्थित होने के बाद जब मैंने रजत मूर्तियों की मांग की तो पता चला उनमें से कई प्रतिमाएं बिना मेरी जानकारी के मंदिर प्रबंधन ने मेरे छोटे भाई को सौंप दी।

उन्होंने बताया कि यही नहीं पैतृक आवास के आधे-आधे का हिस्सेदार होने के बावजूद प्रशासन ने भवन के एवज में मेरे चचेरे भाई को एक करोड़ 80 लाख रुपए अधिक दे दिए। ऐसा किस आधार पर हुआ मैं अब तक नहीं समझ पाया हूं। उपरोक्त सारे प्रकरण की जानकारी मैंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ को तीन-तीन बार पत्र के माध्यम से प्रेषित की है। मैंने राष्ट्रपति को भी इस संबंध में अनुरोध पत्र प्रेषित किया था। राष्ट्रपति सचिवालय से मुख्यमंत्री कार्यालय को जून 2020 में ही पत्र लिख कर मामले के न्यायोचित निपटारा कराने और कार्यवाही से अवगत कराने के लिए पत्र भेजा गया। बावजूद इसके अब तक इस प्रकरण में मेरे साथ न्याय नहीं हो सका है। इस विकट परिस्थिति में श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी लोक परंपराओं के निर्वाह को यथावत जारी रखना मेरे लिए अत्यंत दुष्कर है। इसलिए न्याय की आस में मैंने गांधीवादी तरीके से विरोध दर्ज कराने का निर्णय किया है।

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