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तारिक़ आज़मी की मोरबतियां : नगर आयुक्त साहब ये चाँद के बड़े-बड़े गड्ढे नहीं बल्कि कालीमहल की सड़क है, तनिक एक नज़र इधर भी

तारिक़ आज़मी

वैसे तो अमन-ओ-अमान और अल्हड़ मस्ती का शहर बनारस की ज्यादातर गलियां और सड़के बुरी तरह से जर्जर हो चुकी है। अगर आपको हमारी बातो पर यकीन नहीं आता है, तो आप खुद अपने घर के बाहर निकल कर देख लीजिये, सडको और गलियों के ये हालात हो चुके है कि गाड़ियाँ लेकर चलने पर उसके शाकर दांत चियारने देते है। हमरे काका की एक्टिवा का शाकर तो निकल कर सडकवे  पर डांस करने लगा। उ तो गनीमत रहा कि काका पुराना देसी घी खाए है, कही हम लोग जैसे डालडा का प्रोडक्ट होते तो शायद काका की हड्डियाँ डांस करने लगती।

सुबह-सुबह काका की आवाज़ से आँख खुली पता चला कि बाइक मकैनिक को काका सुतने की स्थिति में पहुँच चुके है। बड़ी मुश्किल से काका को रोका और पूछा “क्या हुआ काका, काहे घोडा पर सवार हो?” इतना सुनते ही काका हमारे खुद के ऊपर फायर हो बैठे। काका को किसी तरीके से समझा-बुझा के शांत करवाया, फिर काका ने अपनी आप-बीती सुनाई कि हमारी गाड़ी का बार-बार शाकर ख़राब हो जा रहा है। कलुवा (पड़ोस में रहने वाला गाड़ी मकैनिक) से जब मैंने कहा तो ससुरा बोला कि एक्टिवा बेच कर घोडा खरीद लो। हम काका के दर्द को समझ सकते है कि काका को अपनी एक्टिवा से कितनी मुहब्बत होगी। दरअसल, उनके साठवे जन्मदिन पर काकी की छोटी बहन यानि हमारे काका की चहेती साली साहिबा ने उन्हें गिफ्ट किया था, और काका अपनी साली की इस स्नेह में इतने भाव विहोर हो गये कि काकी से ज्यादा मुहब्बत उन्हें इस एक्टिवा से हो गयी। काका कहने लगे कि पुरे शहर की सड़के और गलियां ख़राब हो चुकी है। जगह-जगह गड्ढो के बीच में सड़क तलाशना पड़ता है, और तुम्हार बिरादरी (खबरनवीसो) को ये सब दिखाई नहीं देता है। हम काका की बात को समझ सकते है।

आप शहर की गलियों को देखे गलियों में लगे हुए चौकें अपना दांत निपोर रहे है। सड़को के परखचे उड़े हुए है। औरंगाबाद की सड़के कम और गड्ढे ज्यादा नज़र आते है। सबसे बुरा हाल तो कालीमहल रोड का है। सड़के तो गायब हो चुकी है वहां, हाँ गड्ढे जरुर है। अगर आपको जिमनास्ट और उछल-कूद नहीं आती है तो कृपया इस सड़क पर चलने की हिमाकत न कर बैठे। अन्यथा आपके कपड़े से लेकर के आपका हुलिया ख़राब हो सकता है। यहाँ की सडको को देख कर ऐसा लगता है कि हीरे जड़े हुवे थे और अँगरेज़ भागते समय हीरे नोच के लेकर चले गए। या ऐसे भी आप कह सकते है कि काली महल की सडको के गड्ढे अब चाँद पर बने गड्ढो को चैलेन्ज कर रहे है। हम तो चाँद पर गए नही है मगर वैज्ञानिक लोग जो कहते है हम मान लेते है।

काली महल की सडको को लेकर अब सोशल मीडिया पर मीम की भी बाढ़ आई हुई है। एक ने तो कमाल कर डाला। उसने काली महल की सड़क का फोटो छत से खीच कर डाला और लिखा कि “नासा के वैज्ञानिको ने कहा है कि चाँद पर इंसानों को टहलते हुवे देखा गया है। मगर वाराणसी के पीडब्ल्यूडी ने इसका खंडन करते हुवे कहा कि ये काली महल की सड़क है।” यहाँ इसका ज़िक्र सिर्फ इस कारण करता चल रहा हु कि प्रधानमन्त्री के संसदीय सीट वाराणसी की बदहाल व्यवस्था कही नगर निगम शासन को बदनाम करने के लिए तो नही कर रखे है। इस इलाके के पार्षद संजय सिंह डाक्टर के निधन के बाद से तो इस क्षेत्र का और भी बुरा हाल हो रखा है। सिर्फ सड़क के खड्डे ही नही बल्कि मूल भुत सुविधाओं से भी वंचित है। वही नगर निगम इस तरफ अपना ध्यान भी नही दे रहा है।

क्या कहते है नगर निगम के ज़िम्मेदार        

नगर निगम के जिम्मेदारो की बात करे तो नगर निगम के ज़िम्मेदार बस जल्द हो जायेगा, जैसे शब्दों से काम चला रहे है। काम पास हो चूका है, जल्द काम हो जायेगा। बस काम कभी भी लगने वाला है जैसे लफ्जों को अपने को इस समस्या से दूर कर ले रहे है। वही आम जनता इस नरकीय जीवन को जीने के लिए मजबूर है।

Tariq Azmi
Chief Editor
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