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मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा “हमे ऐसा चुनाव आयुक्त चाहिए जो पीएम के खिलाफ भी कार्यवाही कर सके,” अदालत ने तलब किया अरुण गोयल के नियुक्ति सम्बन्धी फाइल

तारिक खान

डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर बड़ा दखल देते हुए चुनाव आयुक्त के तौर पर अरूण गोयल की नियुक्ति संबंधी फाइल सरकार से मांगी है। दरअसल,  याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने संविधान पीठ को बताया था कि गुरुवार को उन्होंने ये मुद्दा उठाया था। इसके बाद सरकार ने एक सरकारी अफसर को वीआरएस देकर चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया। जबकि हमने इसे लेकर अर्जी दाखिल की थी।

अदालत ने इस पर कहा कि सुनवाई शुरू होने के तीन दिन के भीतर नियुक्ति हो गई। नियुक्ति के लेकर अर्जी दाखिल करने के बाद ये नियुक्ति की गई। हम जानना चाहते हैं कि नियुक्ति के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई। अगर ये नियुक्ति कानूनी है तो फिर क्या घबराने की जरूरत है। उचित होता अगर अदालत की सुनवाई के दौरान नियुक्ति ना होती। इस अधिकारी की नियुक्ति से संबंधित फाइलें पेश करें ताकि हम यह सुनिश्चित कर सकें कि कोई हंकी पैंकी नहीं हुआ।

इसके पहले संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस केएम जोसफ ने नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कोई भी सरकार अपने किसी हां जी, हां जी करने वाले या उन जैसे अधिकारी को ही निर्वाचन आयुक्त बनाना चाहती है। सरकार को मनचाहा मिल जाता है और अधिकारी को भविष्य की सुरक्षा। ये सब दोनों पक्षों को सही लगता है लेकिन ऐसे में बड़ा सवाल है कि गुणवत्ता का क्या होगा जिस पर गंभीर असर पड़ रहा है? उनकी कार्रवाई की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं। इस पद के साथ स्वायत्ता भी जुड़ी होती है।

जस्टिस जोसफ ने पूछा कि जब आप किसी को निर्वाचन आयुक्त बनाते हैं तभी सरकार को पता रहता है कि कौन कब और कब तक सीईसी बनेगा। जस्टिस अजय रस्तोगी ने भी टिप्पणी की कि सरकार ही तो निर्वाचन आयुक्त नियुक्त करती है, वही तो मुख्य आयुक्त बनते हैं। ऐसे में ये कैसे कह सकते हैं कि वह सरकार से स्वायत्त हैं।क्योंकि नियुक्ति की प्रक्रिया स्वायत्तता वाली नहीं है।एंट्री लेवल से ही स्वतंत्र प्रक्रिया होनी चाहिए।

जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा हमें एक सीईसी की आवश्यकता है जो पीएम के खिलाफ भी कार्रवाई कर सके। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि प्रधान मंत्री के खिलाफ कुछ आरोप हैं और सीईसी को कार्रवाई करनी है। लेकिन सीईसी कमजोर घुटने वाला है। वह एक्शन नहीं करता है। क्या यह सिस्टम का पूर्ण रूप से ब्रेकडाउन नहीं हैसीईसी को राजनीतिक प्रभाव से अछूता माना जाता है और स्वतंत्र होना चाहिए। ये ऐसे पहलू हैं जिन पर आपको ध्यान रखना चाहिए। हमें चयन के लिए एक स्वतंत्र निकाय की आवश्यकता है, न कि सिर्फ कैबिनेट की कमेटियों का कहना है कि बदलाव की सख्त जरूरत है। राजनेता भी छत से चिल्लाते हैं लेकिन कुछ नहीं होता।

आज हुई सुनवाई के दरमियान अदालत के सवालों का जवाब केंद्र सरकार ने दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आरोप पर कि 2007 के बाद से सभी सीईसी का कार्यकाल “छोटा” किया गया, अटॉर्नी जनरल आर0 वेंकटरमणी ने कहा कि हर बार नियुक्ति वरिष्ठता के आधार पर की जाती है। एक मामले को छोड़कर हमें चुनाव आयोग में व्यक्ति के पूरे कार्यकाल को देखने की जरूरत है न कि सिर्फ सीईसी के रूप में। 2-3 अलग-अलग उदाहरणों को छोड़कर पूरे बोर्ड में वह कार्यकाल 5 साल का रहा है। इसलिए मुद्दा यह है कि कार्यकाल की सुरक्षा को लेकर कोई समस्या नहीं है।

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