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देश को जीताकर खुद सो गए ब्रिगेडियर मो उस्मान

सुहेल अख्तर व सुशील कुमार

घोसी(मऊ) भारत की अाजादी के लिए कई वीर सपूताें ने अपनी जान न्याैछावर कर दी। लेकिन अाजादी के 70 सालाें बाद देश कहीं ना कहीं इन वीर सपूताें काे भूला प्रशासन भुला बैठा है। एेसा ही एक वीर सपूत मऊ जिले के घोसी क्षेत्र के बीबीपुर गांव में पैदा हुआ, जाे अाजादी के बाद भारत  की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाला पहला सिपाही बना। इतिहास में उन्हें आजाद भारत के सबसे पहले शहीद और नौशेरा के शेर ब्रेगेडियर उस्मान के नाम से जानता है।

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान के गांव बीबीपुर में उनके 70 वां शहादत दिवस पर कार्यक्रम आयोजित हुवा। जिसमें अब्बास अंसारी, अफजाल अंसारी, ओम प्रकाश चौहान, राजीव कुमार, संजय सागर, तय्यब पालकी, स्वामी आनन्द स्वरूप, राजेंद्र राम, मुरली मनोहर जायसवाल, बृजेश जायसवाल, सुहेल अहमद, सुरेंद्र राजकुमार, तथा संचालन सीता राम यादव और गांव व शहर से भारी संख्या में लोग उपस्थित हुए।

कूट-कूट कर भरी थी देशभक्ति
उनका जन्म बीबीपुर गांव में 15 जुलाई 1912 काे मुहम्मद फारुख के घर हुआ था। उस समय इस परिवार की गिनती इलाके के बडे जमींदार घरानों में होती थी। शानो-शौकत में पले बढ़े हाेने के बाबजूद उस्मान के सीने में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी। उनकी वीरता काे देखते हुए उस समय के अंग्रेज लेफ्टिनेन्ट ने उन्हे खान बहादूर के खिताब से नवाजा था।
पाक ने रखा था 50000 रुपए ईनाम
1947 को जब आजादी मिली तो देश मजहब के आधार पर बंट चुका था। विभाजन के समय ब्रेगेडियर उस्मान सैन्य अधिकारी थे और उस समय सैन्य अधिकारियों काे छूट थी कि वह पाकिस्तानी सेना में जाना चाहते हैं या फिर हिन्दुस्तान के साथ रहना चाहते हैं। पाकिस्तान जहां तमाम सैन्य अधिकारियों को बड़े ओहदे का लालच दिखाकर अपनी सेना में शामिल कर रहा था। वहीं, ब्रेगेडियर उस्मान ने अपने वतन काे छोड़कर पाकिस्तान जाने से इंकार कर दिया।, जिससे गुस्साएं पाकिस्तान ने उन्हें काफिर कहते हुए उन पर 50 हजार का ईनाम घोषित कर दिया।
पाक काे दिया था मुंहताेड़ जवाब
1947 में भारत की आजादी के बाद 1948 में पाकिस्तान ने फिर भारत से युद्ध करने का दुस्साहस किया और तकरीबन डेढ़ लाख की तादात में कबायली रूप धरे पाक सैनिक नियंत्रण रेखा संगड को पार करते हुए नौशेरा पहाडी तक आ पहूंचे। उस समय नौशेरा पहाड़ी का सुरक्षा जिम्मा राजपूत रेजिमेन्ट का था, लेकिन अतिसंवेदनशीलता देखते हुए पैराब्रिगेड के सैनिको ने ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में राजपूत रेजिमेंट के सहयोग से अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए पाक सैनिकों को नौशेरा पहाडी से खदेड दिया।
देश काे जीताकर खुद साे गया ये वीर
भारतीय सेना ने झंगड व नौशेरा पर कब्जा तो कर लिया, परंतु पाकिस्तानी सेना द्वारा बिछाई गई बारुदी सुरंगों में बिस्फोट व गोलाबारी में वीर सेनानायक ब्रेगेडियर उस्मान वीरगति काे प्राप्त हुए। तीन जुलाई 1948 को नौशेरा में पाकिस्तानी फौजो से लोहा लेते हुए वह शहीद हुए और तभी से उन्हें नौशेरा का शेर कहा जाता है। भारतीय सेना द्वारा इस वीर सपूत को महावीर चक्र मरणोपरान्त से सम्मानित किया गया।                      
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