आदिल अहमद
लंदन से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र रायुल यौम में ईरान और अमरीका के मध्य संबंधों के बारे में एक रोचक विश्लेषक प्रकाशित हुआ है और लेखक ने इन संबंधों का अलग नज़रिये से जायज़ा लिया है।
अगर हम ध्यान दें तो हमें यह मालूम होगा कि अमरीका और ईरान के संबंधों में तनाव, बुनियादी नहीं है बल्कि कुछ अस्थाई वजहों से है। मतलब ऐसा नहीं है कि दोनों में से किसी एक देश ने दूसरे के खिलाफ जनंसहार किया हो, या किसी देश ने दूसरे के इलाक़ों या भूमियों पर क़ब्ज़ा कर रखा हो। अलबत्ता सन 1953 में ईरान की प्रजातांत्रिक सरकार को ज़रूर अमरीका ने गिराया था और इसी तरह उसने ईरान के तबस में आप्रेशन की कोशिश की थी जो नाकाम हो गयी थी मगर इन दो घटनाओं अलावा अभी तक दोनों देशों में आमने – सामने टकराव नहीं हुआ है लेकिन पर्दे के पीछे रह कर अमरीका ने ईरान के खिलाफ बहुत कुछ किया है। उदाहरण स्वरूप अमरीका ने ईरान के खिलाफ सद्दाम सरकार की भरपूर मदद की थी, इसी तरह ईरान के खिलाफ लड़ने वाले संगठनों और दलों की भी हथियारों के अलावा आर्थिक मदद भी करता है और इसी तरह इलाके के कुछ देशों के साथ मिल कर ईरान के खिलाफ साज़िश करता रहता है लेकिन सीधा टकराव कभी नहीं हुआ। इसी लिए हम यह कह सकते हैं कि दोनों की दुश्मनी , बुनियादी नहीं है और यह जो अमरीका ईरान पर प्रतिबंध लगाता है और जिसकी वजह से दोनों देशों के संबंधों में अधिक कड़वाहट पैदा हुई है उनका संबंध भी एक दूसरे से दुश्मनी से नहीं है बल्कि अमरीका यह सब कुछ अपने कुछ दोस्तों के लिए करता है जिनमें सब से पहला नाम इस्राईल का है।
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