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बड़ा खुलासा – वाराणसी में ईज़ी मनी के चक्कर में नवजवानों को बर्बाद कर रही है ये मोबाइल लाटरी, पुलिस के पकड़ से दूर है इसका असली सरगना – भाग 1

तारिक़ आज़मी

वाराणसी। इजी मनी किसको बुरी लगती है। सभी चाहते है कि आराम से पैसे आते रहे। सब ऐश पैसो से मिलती रहती है। खासतौर पर अगर मनी ईजी हो तो और भी मौज हो जाती है। इसी ईजी मनी के चक्कर में मोबाइल लाटरी न जाने कितने घरो को बर्बाद कर चुकी है। मोबाइल लाटरी अभी भी घरो को बर्बाद करने की अपनी कवायद जारी रखे हुवे है। रातो रात अमीर बनने के सपने देखने वाले युवक और माध्यम वर्गीय परिवार के लोग रातो रात अमीर तो नही बन पाए आज तक। मगर ये ज़रूर है कि उनकी वजह से जो लाटरी खिलवाता है वो ज़रूर अमीर हो जाता है। जबकि खेलने वाला गरीबी और क़र्ज़ के दलदल में फंसता जाता है।

इस तरीके का रिजल्ट रात को सभी बड़े डीलर्स को दिया जाता है

वैसे तो लगभग एक दशक से अधिक समय से मोबाइल लाटरी अपना खेल जारी रखे है। पुलिस और लाटरी कारोबारी के बीच इस लुकाछिपी के खेल को खेला जा रहा है। कही पुलिस से हेल्लो हेल्लो करके तो कही पुलिस की शक्ल देख कर भाग जाने के साथ खेल जारी है। सूत्र बताते है कि कभी इस गैरकानूनी कारोबार का असली अड्डा सारनाथ थाना क्षेत्र का पञ्चकोसी इलाका हुआ करता था। पुरे शहर में इसका सञ्चालन वही से बैठे एक अजीबो गरीब नाम के युवक द्वारा करवाया जाता था। वहा से ये कारोबार काफी तरक्की किया। सूत्रों की माने तो उस युवक के द्वारा लाखो का अपने ऊपर लदा क़र्ज़ पाट दिया गया। जबकि जनता गरीब होती गई। वही सूत्रों का कहना है कि उस युवक के द्वारा अन्य शहरों में करोडो की संपत्ति भी बनाई गई और फिर गलत कारोबार को बंद कर दुसरे शहर का रुख कर लिया गया और कारोबार भी अब साफ सुथरा कर डाला।

ऐसी दिखती है मोबाइल लाटरी की साईट जिसको जियो लाटरी का नाम दिया गया है

दशक के बाद अब पारी 21वी सदी के दुसरे दशक की आ चुकी थी। इस नए दशक में नई नवेले रूप में जमकर इस लाटरी ने भी रूप बदला। इसको ऑनलाइन करने की कवायद हुई। खेल्वाने वाले भी बदल गए। सही मायनों में लाटरी जैसे अपराधिक कृत्य का भी डिजिटल वर्जन सामने आ चूका है। पहले ज़िम्मेदारी सीधे दिल्ली मुंबई के सटोरियों से बिहार के रहने वाले एक आधे टकले युवक ने संभाली। सूत्रों की माने तो पूरा नेटवर्क खड़ा किया। अपना मुख्य अड्डा चेतगंज थाना क्षेत्र के पानदरीबा-कालीमहल की गलियों को बनाया। काली महल रोड पर एक किराए का भौकाली मकान लिया रात गुज़ारने के लिए। खुद के कमर पर अवैध पिस्टल रखकर गलियों में अपनी चट्टी चलाई। लगभग दो सालो तक जमकर कारोबार को शहर के विभिन्न हिस्सों में फैलाया। चेतगंज से लेकर बेनिया, तो वही शिवाले से लेकर लंका तक इस टकले के नाम से मशहूर युवक का कारोबार चल रहा था, इसका सबसे बड़ा अड्डा शिवाले का एक पार्क था। सबको एक एक आईडी दिया। ईजी मनी तो हकीकत में इस बिहारी युवक की तैयार रहती थी। एक से एक चेले चापड़ पाले। सूत्रों की माने तो रोज़ रात में शराब की महफ़िलो के बीच इसके गुर्गे जमकर ऐश करते थे।

इसकी पहुच थानों चौकी तक हो गई। फिर कारोबार का हिस्सा कई जगह तकसीम करने वाला ये बिहारी अचानक पुलिस के रडार पर लगभग दो वर्ष पहले होली के दिन आया जब पानदरीबा पुलिस चौकी के ठीक पीछे इसने त्यौहार के समय पिस्टल लहराई। पुलिस भले इसको पकड़ नही पाई और घटना पुलिस के पास कानो कान होते हुवे पहुची। मगर ये युवक धीरे से बिहार निकल भागा। सूत्रों की माने तो इसने कारोबार को वही बेतिया से बैठ कर संचालित करते हुवे अपने चेले चापड़ो के बल पर कारोबार करता रहा। शराब का शौक़ीन आखिर में शराब में ही डूब गया और हराम का कमाया हुआ पैसा हराम में चला गया।

इसी दरमियान वाराणसी में एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने कार्यभार संभाल लिया। खुद एक एक कागज़ पर नज़र रखने वाले तेज़ तर्रार मगर सरल स्वाभाव के एसएसपी प्रभाकर चौधरी के आने के बाद जहा क्राइम कंट्रोल हुआ वही इस कारोबार पर पूरी तरीके से बंदिश खुद पुलिस ने लगवा डाली। सबसे बड़ा अड्डा पानदरीबा पुलिस चौकी के पास और शिवाला का बंद हो गया। जिससे कारोबार की रीढ़ टूट गई। सूत्रों की माने तो तत्कालीन एसएसपी प्रभाकर चौधरी के ट्रांसफर के बाद आये एसएसपी अमित पाठक के सामने सबसे बड़ा टास्क अपराध नियंत्रण रहा जिसमे वह सफल भी रहे। कई बड़े अपराधी जनपद छोड़ कर भाग खड़े हुवे। कई ने खुद की ज़मानत तुडवा कर जेल में जाना ही सही समझा। कुछ नही माने और अपराधो में लिप्त रहे तो परलोक के टिकट पर सीधे परलोक चले गए। अपराधियों के दिलो दिमाग में एसएसपी अमित पाठक का खौफ घर कर चूका है कि बख्शा नही जाना है। इस दरमियान छोटे अपराधो ने अपना सर उठाना शुरू कर दिया। जिसका सबसे बड़ा उदहारण आज की तारिख में मोबाइल लाटरी है।

क्रमशः भाग -2

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