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बड़ा खुलासा – वाराणसी में ईज़ी मनी के चक्कर में नवजवानों को बर्बाद कर रही है ये मोबाइल लाटरी, पुलिस के पकड़ से दूर है इसका असली सरगना – भाग 2

तारिक आज़मी

वाराणसी। एक बार फिर से ईजी मनी की चाहत रखने वाले अब मोबाइल लाटरी के मकडजाल में फंसे जा रहे है। हमको मालूम है कि इस खबर के बाद कुछ वक्त के लिए बड़े अड्डे बंद हो जायेगे। शायद हफ्ता दस दिन के लिए सटोरियों इसको गुपचुप तरीके से लुका छिपी के साथ चलाये। मगर उसके बाद इस आसान रास्ते से पैसे कमाने की चाहत लोगो को वापस इस कारोबार में ले आएगी। कहा जाता है कि आसान रास्तो से गुज़र जाइये जनाब, सच बोलने वाले तो सलीबो पर चढ़े है कि तर्ज पर हमको भी थोड़े वक्त दिक्कत हो सकती है। क्योकि लाटरी के सटोरियों की अपराधिक पकड़ बड़ी तगड़ी होती है।

बहरहाल, मुद्दे पर ही कायम रहते है. वर्त्तमान में मोबाइल लाटरी एक हाईटेक तरीके का जुआ हो चूका है। इसके लिए एक विशेष साईट बनवाया गया है। सूत्र और इलेक्ट्रानिक माध्यम से प्राप्त आकडे बताते है कि ब्लॉगस्पॉट पर बनी इस साईट का सञ्चालन एक ऐसा युवक करता है जिस पर पहले भी अपराधिक मामले रह चुके है। सूत्रों की माने तो सिगरा थाना क्षेत्र के तेज़ तर्रार दरोगाओ में से एक रोडवेज चौकी इंचार्ज मिर्ज़ा रिजवान बेग ने एक चेन स्नेचिंग के रैकेट का खुलासा किया था। इस खुलासे का मुख्य सरगना मोबाइल लाटरी में बिहारी के नाम से मशहूर बेतिया निवासी युवक का दाहिना हाथ युवक था। पुलिस पकड़ से भागे इस युवक को पुलिस पकड़ नही पाई और पैसो के बल पर इसने हाई कोर्ट से शायद अरेस्ट स्टे ले लिया था।

ऐसी दिखती है मोबाइल लाटरी की साईट जिसको जियो लाटरी का नाम दिया गया है

अब चेन स्नेचिंग के कारोबार में इसको जो खतरा दिखाई दिया तो इसने इस लाटरी के कारोबार को शुरू किया और अपने गुरु बिहारी बाबु का भी गुरु बन गया। अब बिहारी बाबु ब्याज पर पैसे बाटने लगा और ये युवक सरगना बनकर लाटरी का सिंडिकेट चलाने लगा है।  जियो लाटरी नाम से साईट का निर्माण करवा कर ब्लाग स्पॉट पर कथित रिजल्ट जारी होने लगा है। आप इस शब्द जियो लाटरी पर क्लिक करके साईट देख सकते है। स्क्रीन शॉट भी लगा रखा है। रिलायंस के नाम को पूरी तरीके से भुनाने की पूरी जुगत लगाईं गई है। सूत्र बताते है कि कारोबार में सफेदपोशो का संरक्षण भी हासिल है। कथित पत्रकार को थाने सेट करने का काम सौपने की भी जानकारी सूत्र दे रहे है।

कहा से हो रही संचालित

इस जियो लाटरी का सिंडिकेट चलवाने के लिये इस युवक ने अपना मुख्य अड्डा औरंगाबाद, भेलूपुर और शिवाले के अलावा दशाश्वमेघ की गलियां बनाया हुआ है। गलियों में इसके लड़के टिकट की बुकिंग लेते दिखाई दे जाते है। शिवाले की मछली मार्किट सबसे बड़ा इस अवैध कारोबार का अड्डा बना हुआ है। लोहता थाना क्षेत्र के धमरिया स्थित तलैया में वैसे तो जुआ भयानक रूप से होता रहता है। मगर अब ये जियो लाटरी मोबाइल लाटरी का अड्डा बन रहा है।

इस तरीके का रिजल्ट रात को सभी बड़े डीलर्स को दिया जाता है

सबसे बड़ी बात तो ये है कि इस जियो लाटरी यानी मोबाइल लाटरी का संचालक जो कल तक पुलिस को देख कर भागता था अब सेटिंग गेटिंग के लिए खुद पुलिस वालो के आसपास जाने से नही कतराता है। सूत्र बताते है कि अस्सी इलाका इसका सबसे पसंदीदा इलाका है। भेलूपुर पानी टंकी के पास एक कमरे में घटो लेट कर अपने चेले चापड़ो से कारोबार का कलेक्शन करवाते हुवे इसको अक्सर देखा जा सकता है। सूत्रों की माने तो इसकी सेटिंग गेटिंग में कुछ सफेदपोश भी है। थाने चौकी पर कथित समाजसेवा के नाम पर अपना परचम लहराने वाले लोगो के साथ इसकी अच्छी पैठ है।

बड़ा सवाल क्यों नही कर पाती पुलिस कार्यवाही

अब अगर इस मामले में पुलिस के किसी ज़िम्मेदार से बात करे तो उसका एक ही जवाब होता है कि ऐसे लोगो को पकड़ने के बाद सबूत कुछ नही होता है तो फिर दाखिल करने और चार्जशीट बनाने में दिक्कत रहती है। ऐसे लोगो को पकड़ने के बाद उनके खिलाफ कुछ मिलता नही है। ऐसे कई जवाब आपको मिल जायेगे। मगर बड़ी कार्यवाही के नाम पर सिफर ही रहता है। अब देखना होगा कि शहर बनारस को अपराध से मुक्ति दिलवाने वाले एसएसपी जिनको पत्रकार जगत ने काफी सराहा भी है इस काले कारोबार पर कैसे और कब अंकुश लगते है।

कहा कहा चल रहा है अड्डा

सूत्रों की माने तो वैसे तो शहर के लगभग हर एक इलाके में इस लाटरी का अड्डा है। मगर इसका मुख्य अड्डा औरंगाबाद पानी टंकी के आसपास चाय या पान के खोमचो पर बैठ कर, पानदरीबा पुलिस चौकी के ठीक पीछे सकरी गलियों में, शिवाला में मछली मार्किट तो पुरे शहर का सबसे बड़ा अड्डा है। वही जैतपुरा का बड़ी बाज़ार दूसरा बड़ा अड्डा है। आदमपुर क्षेत्र की गलियों में भी इस खेल को घरो की चारदीवारी के अन्दर खेल्वाया जाता है।

क्या होता है तरीका

अब इसके लिए सटोरिये कोई टिकट अथवा पर्ची नही देते है। फोन से फोन पर कारोबार होता रहता है। नम्बर जीरो से लेकर 9 तक के फोन पर नोट होते है। उसके बाद रिजल्ट आने के बाद उसका रिज़ल्ट भी फोन पर बताया जाता है। गूगल-पे से लेकर paytm तक के माध्यम अथवा कैश में इसका भुगतान होता है। खेलने वाले को एक मुश्त रकम जमा करनी होती है। जो हार-जीत के माध्यम से घटती अथवा बढती रहती है। भुगतान करने के लिए रात के अंधेरो का प्रयोग होता रहता है।

गुमनाम गलियों और गुमनाम नाम से होता है कारोबार

इस कारोबार का सबसे बड़ा मंत्र गुमनामी है। अगर पुलिस को सुन्गुनी लग भी गई तो गुमनामी में ही तलाश होती रहती है और लाटरी संचालको को इसकी जानकारी हो जाती है। उदहारण के तौर पर एक नाम है पप्पु पड़ाव और दूसरा है पोपा। हमारे सूत्र बताते है कि शहर भर में घूम घूम कर ये दोनों लाटरी खिलवाते है। लगभग 3 हज़ार टिकट रोज़ की एक एक बंदे की बिक्री है। तीन हज़ार टिकट की बिक्री का मतलब कम से कम कमीशन का रोज़ का 6 हज़ार रुपया। अब अगर पुलिस ये दोनों नामो को तलाशने निकलती है तो हर एक मोहल्ले में दस से बीस पप्पू मिल जायेगे। नतीजा वापस सिफर आ जायेगा। ऐसा ही नाम इस काले कारोबारों का रहता है। पप्पू, मुन्ना, बाबु, कल्लू जैसे नाम तो हर मोहल्ले में दस से बीस मिल जायेगे। इस दस बीस की भीड़ में असली काला कारोबारी गुम हो जाता है।

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