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BHU चाय विक्रेता रामू हत्याकांड: कमिश्नर साहब, क्या इस गरीब चाय वाले की मौत का इन्साफ मिल पायेगा ? जाने दो साल बाद भी अनसुलझे हत्याकांड में अनसुलझे सवाल भाग -1

तारिक़ आज़मी

वाराणसी। वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस अपनी कामयाबी पर फक्र करती है। मगर कई ऐसे भी मामले है जिसमे खुद की पीठ थपथपाती हुई वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस अपनी नाकामी छिपाने के लिए भरपूर प्रयास करती है। नाकामी भी ऐसी कि दो साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी आज तक पुलिस हत्या जैसे जघन्य अपराध में खुलासा तो दूर रहा हत्या के कारण भी पता नही कर पाई है। हम बात कर रहे है बीएचयु में हुवे चाय विक्रेता बुज़ुर्ग रामु हत्याकाण्ड की। रामू की हत्या हुवे दो साल और तीन महीने पुरे गुज़र चुके है। मगर इस हत्याकांड की फाइल पुलिस रिकार्ड में अब धुल खा रही है। जबकि मृतक रामू की आत्मा को अपने गुनाहगारो से इन्साफ चाहिए होगा।

घटना स्थल पर ऐसे मिली थी रामू की लाश

क्या थी पूरी घटना

काशी हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में स्थित आयुर्वेद विभाग के सामने चाय की दुकान चलाने वाले राम जतन साहनी उर्फ रामू (65) की 24-9-2019 को देर रात किसी समय सोते हुवे ईट से सिर कूंच कर हत्या कर दी गई थी। घटना की जानकारी सुरक्षाकर्मियों ने पुलिस कंट्रोल रूम को अहल-ए-सुबह 6 बजे के करीब दिया था। सुचना पर पहुची पुलिस को घटना स्थल से ईंट बरामद हुई थी। जिसके ऊपर लगा खून इस बात की तस्दीक कर रहा था कि हत्या ईंट से सर कुचल कर किया गया था। मूल रूप से गोरखपुर के पांडेपार थाना बांसगांव के रहने वाले रामजतन 1973 से बीएचयू मानसिक अस्पताल के पास चाय की दुकान चलाते थे। 15 साल पहले मानसिक अस्पताल से दुकान को हटाकर यहां लाकर शिफ्ट किया था और रमना में मकान बनवाकर बड़े बेटे ओम प्रकाश और भतीजा दिलीप के साथ रहते थे। जबकि छोटा बेटा जयहिंद अपनी मां संतुरी देवी के साथ गांव पर रह कर खेती करता था। रामू पुरे परिसर में रामू काका के नाम से मशहूर थे। शायद ही विश्वविद्यालय से कोई ऐसा छात्र पास होकर गया होगा जिसने रामू काका की चाय नही पिया होगा। अपने स्वाभाव से रामू काका वसूल पसंद थे, मगर उनकी भाषा हमेशा मृदु रहती थी।

घटना स्थल से पुलिस को जाँच में शराब की दो खाली बोतले मिली थी। सामान बिखरे पड़े थे। मगर सूत्रों की माने तो मौके से एक तिनका भी गायब नही था। हाँ नमकीन की दो खाली रैपर पड़े थे, जो इस बात की तस्दीक कर रहे थे कि हत्यारों ने शराब यहाँ बैठ कर पिया होगा। मगर यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि कोई खाली गिलास नही मिला था। शायद ये एंगल भी बाद में पुलिस को गुमराह करने के लिए सेट किये गए थे। परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरे की क्षमता कम होने के कारण यह वारदात कैद नहीं हो पाई। विश्वविद्यालय के सुरक्षा पर भी बड़ा सवाल खड़ा हो रहा था। परिसर में सुरक्षा के लिए 620 सुरक्षा गार्ड तैनात थे, घटनास्थल के पास तैनात सुरक्षा गार्ड मुकेश कुमार रात में घटनास्थल से महज 100 मीटर की दूरी पर तैनात था, लेकिन उसको सुबह साढ़े सात बजे वारदात की जानकारी हुई थी। शक के दायरे में मुकेश कुमार भी था मगर पुलिस उससे पूछताछ नही कर पाई थी। यहाँ से पुलिस की कामयाबी नाकामी में तब्दील होती दिखाई दे रही थी।

अस्पष्ट था हत्या का कारण, पुलिस भी हुई थी गुमराह

रामू की हत्या का कारण स्पष्ट तो आज भी नही हो पाया। परिवार से संपन्न था। न कोई संपत्ति विवाद था और न हो किसी प्रकार की पारिवारिक कलह। यहाँ परिवार की कलह अथवा संपत्ति विवाद के कारण हत्या का मामला नही बन रहा था। अब रही लूट अथवा चोरी की वजह से हत्या जिसकी पहली नज़र में पुलिस ने आशंका जताई थी। तो इसको कुछ ही घंटो के बाद पुलिस ने भी खारिज कर दिया था।

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