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महिला सुरक्षा कानून का दुरूपयोग (भाग – 4) : पुरुषो में दहशत का दूसरा नाम है, कभी सीमा पाण्डेय, कभी तिवारी, त्रिपाठी, प्रीतो और प्रीती

शाहीन बनारसी

हमारे पिछले अंक में आपने पढ़ा कि किस प्रकार एक थानेदार ने सख्ती दिखाने की कोशिश किया तो खुद उसके ऊपर ही उस महिला ने बलात्कार का आरोप लगा डाला। ऐसे आरोपों के लगने के बाद इंसान की सामाजिक मान सम्मान को कितनी ठेस पहुचती है इसका अंदाजा किया जा सकता है। कितने मानसिक पीड़ा से गुज़ारना होता है इसका भी अंदाज़ा लगा सकते है। परिवार का कोई सदस्य ऐसे व्यक्ति की पीड़ा को समझने के लिए उसको देखता भी है तो ऐसा लगता है कि वह उसको शंका की दृष्टि से देखता है। इस पीड़ा को सहा था थानेदार जेपी पाण्डेय ने।

पढ़े भाग – 1

इस घटना के बाद से इसके नाम की ज़बरदस्त दहशत भी कायम हो चुकी थी। राजनैतिक बाहुबलियों का संरक्षण मिलने की बात होने लगी। सूत्र बताते है कि कुशहा के तत्कालीन बाहुबली ने थोडा संरक्षण भी दे दिया और इसके बाद इसने अपना रुख मिर्ज़ापुर कर लिया। अब केस के बाद से सीमा कुशीनगर की सीमा के बाहर चले जाना ही बेहतर समझी और चली गई। पहले कुशहा फिर जलालपुर हसौली जैसे इलाके में इसने खुद का निवास बनाया। इस दरमियान जमालपुर हसौली में इसके नाम का खूब परचम लहराया। रास्ता चलते कई लोग इसके प्रकोप का शिकार बने। इसका एक उदहारण राजेश दुबे की एक आँख भी है। दहशत तो इतनी कि पुरे गाँव में कोई भी इसके बारे में कुछ भी बोलता नही है। बस सभी हाथ जोड़ देते है। राजेश दुबे से मिलने का भी प्रयास किया मगर उसने भी कुछ कहने से साफ़ मना करते हुवे कहा कि बड़ी मुश्किल से इस मुसीबत का पीछा छुड़ा पाया हु। अब नही लेना चाहता और कोई मुसीबत।

पढ़े भाग 2

जमालपुर हसौली के एक बुज़ुर्ग ने सिर्फ दबी जबान में इतना ही कहा कि कई परिवार यहाँ का इस मामले में पुलिस की लाठी और महिला की सैंडल खा चूका है। कोई दुबारा मुसीबत नही मोल लेना चाहता है। बड़ी मुश्किलों के बाद हम इन सबसे निकले है। हमने स्थानीय थाने में भी पता करना चाहा रनियां गाँव के पास पड़ने वाले इस जमालपुर हसौली में कोई भी कुछ बोलने को तैयार नही है। हमने जब अदलहाट थाने पर इस सम्बन्ध में जानकारी हासिल करना चाहा तो सिर्फ इतना ही पता चल सका कि यहाँ कोई क्राइम तो रजिस्टर्ड नही हुआ था। मगर चर्चाये काफी आज भी है।

पढ़े भाग 3

बहरहाल, यहाँ से इसका सफ़र अदलपूरा का भी मिला जहा इसके नाम की चर्चाये आज भी है। बस कोई कुछ भी बोलने को तैयार नही है। किसी को मुसीबत दुबारा मोल लेने की ख्वाहिश नही दिखाई देती है। एक बुज़ुर्ग महिला ने मुझसे सिर्फ इतना कहा कि “दूर रहा बबुआ ओहसे, नाही त बड़ा मुसीबत गले पड़ जाई।” हम बुज़ुर्ग महिला की चिंता को समझ सकते है। यहाँ कई लोगो से हमने मुलाकात किया मगर किसी ने भी कुछ भी कहने से हमसे इंकार कर दिया। सभी सिर्फ एक शब्द कहते “जर्र्की के बदे कुच्छो न कहब। केहू न बोली, चल गयल ईहे बहुत ब।” हम इस चिंता को समझ सकते है। हम समझ सकते है कि आप किसी बाहुबली से लड़ सकते है मगर किसी महिला से नही। आखिर आपको हाथ खड़े करना ही पड़ेगा। हमारी बात पर यकीन न हो तो आप सोनिया चौकी पर पोस्टेड जयश्याम शुक्ला जो अभी आगरा के निकट फतेहपुर सीकरी में बतौर इस्पेक्टर पोस्टेड है से पूछ सकते है। यही नही तत्कालीन थानाध्यक्ष सिगरा सुरेन्द्र यादव जो अभी महोबा में पोस्टेड है के दिलो की हालात भी समझ सकते है।

महज़ एक आरोप ही तो था जिस पर एक 156(3) में मामला दर्ज हुआ था। तत्कालीन थानाध्यक्ष, क्षेत्राधिकारी सहित एसपी (सिटी) संतोष सिंह को नामज़द किया गया था। बेवजह केवल इन्साफ का साथ देना इन सबका गुनाह था और सभी पर गंभीर आरोप लगा कि घर में घुस कर मारपीट किया और धमकी वगैरह का। अदालत ने मामले में सुनवाई करते हुवे इस केस को ख़ारिज कर दिया था। मगर कोई इसके मुह नही लगना चाहता था और इसके खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नही हुई। जिसने इसका मनोबल बढ़ा दिया।

बहरहाल, हम वापस मुद्दे पर आते है। इसके बाद इसके निशाने पर आया जनपद मिर्ज़ापुर। छोटी मोटी तहरीर जो दर्ज ही नही हुई और थाने के बाहर अथवा थाने पर ही निपट गई अथवा निपटा दी गई की हम बात नही कर सकते है। साक्ष्यो के अभाव इस पर बात करने से इन्कार करते है। हम उन बड़े केस और उसकी वर्त्तमान स्थिति पर बात करते है जो चर्चित रहे। इसके निशाने पर कटरा कोतवाली थाना था। कटरा कोतवाली थाने पर वर्ष 2008 में और वर्ष 2010 में दो अलग अलग बलात्कार के मुक़दमे दर्ज करवाए। वर्ष 2008 के मुक़दमे में सामूहिक बलात्कार की घटना का आरोप कैलाश यादव, बब्बू यादव जो कैलाश यादव का जीजा है तथा स्थानीय ग्राम प्रधान पर लगाया था। जिसमे वर्ष 2010 में पक्षद्रोह किया तथा जुलाई माह में खत्म हुवे इस मामले के ठीक पहले जून 2010 में एक और छेड़खानी आदि के आरोपों को लगाते हुवे मुकदमा दर्ज करवाया कि उसके साथ बलात्कार का प्रयास हुआ है।

इन दोनों मुक़दमो के सम्बन्ध में हम आपको अगले अंक में बतायेगे। फिलहाल, सीमा हमको धमकी दे रही है। सीमा ने मुझको फोन करके झूठे रंगदारी के मुक़दमे में फंसा देने की धमकी दिया है। वही इस महिला को जानने वाले सभी सलाह देते है कि दूर रहे इस महिला से। शायद सीमा को मालूम नही कि मैं 24×7 कैमरों की निगरानी में रहती हु। मुझे जितनी बार भी काल किया हर एक काल की रिकार्डिंग सुरक्षित है। हर एक लम्हे की खुद की गतिविधि कैमरों की नज़र में है। ये समय वह नही जब किसी पर भी कोई आरोप लगा दिया जाए और वह बेक़सूर जेल चला जाए। ये पुलिस कमिश्नर ए सतीश गणेश की वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस है। ये मामले के तह तक जाती है। सबसे बड़ी बात कर नही तो डर नही। जुड़े रहे हमारे साथ, हम दिखाते रहेगे सच।

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