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अंतरराष्ट्रीय महिला मानवाधिकार रक्षक दिवस के अवसर पर एशियन ब्रिज इंडिया और ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान ने आयोजित की जागरूकता एवं सशक्तिकरण कार्यशाला

शाहीन बनारसी

वाराणसी: आज आराजीलाईन स्थित बेनीपुर ग्राम के शाधिका कार्यालय में नेतृत्वकारी भूमिका में रहने वाली संघर्षशील महिलाओं के बीच एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। अंतरराष्ट्रीय महिला मानवाधिकार रक्षक दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यशाला का आयोजन एशियन ब्रिज इण्डिया और ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान ने किया। ज्ञातव्य है की 2006 से प्रत्येक 29 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय महिला मानवाधिकार रक्षक दिवस मनाया जाता है। 16 दिवसीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़े के अंतर्गत आज के इस आयोजन में ग्रामीण क्षेत्र में सशक्त हस्तक्षेप दर्ज करा रही महिला नेतृत्वकर्त्रियो का चयन किया गया। महिला नेतृत्व उदाहरण के लिए प्रधान, वार्ड सदस्य, एएनएम, शिक्षिका, आशा कार्यकर्त्री और सामाजिक कार्यकर्त्रियां शामिल रहीं।

कार्यशाला में दख़ल संगठन की शालिनी ने बताया कि महिलाओं को कुछ जरूरी कानूनी अधिकार प्राप्त हैं। इनके बारे में हम सबको जानना चाहिए:- समान मेहनताना का अधिकार, कार्यस्थल पर उत्पीड़न से सुरक्षा का अधिकार, घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार, मुफ्त कानूनी मदद का अधिकार, रात में महिला को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकती हैं आदि 11 अधिकार महिलाओं के लिए बड़े काम के हैं। इनके विषय में विस्तार से बतलाते हुए जरूरत पड़ने पर आगे आकर उपयोग करने में किसी प्रकार की झिझक नहीं होनी चाहिए।

कृषि विज्ञान केंद्र की वैज्ञानिक ने आगे बताया कि महिला मानवाधिकार रक्षक (WHRDs) वे महिलाएं हैं जो मानवाधिकारों की रक्षा करती हैं। ये महिलाएं अधिकार, कामुकता और लैंगिक मुद्दों पर नेतृत्वकारी और रक्षक की भूमिका में होती हैं। ऐसी सामाजिक शक्तियों के काम और उनके सामने आने वाली चुनौतियों को 2013 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के प्रस्ताव द्वारा मान्यता दी गई है। ये प्रस्ताव महिला मानवाधिकार रक्षकों के लिए विशिष्ट सुरक्षा की मांग भी करता है।

स्वाथ्य विभाग से आई सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि महिलाओं को स्वास्थ्य अधिकार मिलने के बावजूद स्वास्थ समस्या झेल रही माहिलों के बारे में जानकारी दी। परियोजना समन्वयक नीति ने कहा कि महिला मानवाधिकार रक्षक संस्थागत भेदभाव और असमानता से जुड़ी अन्य बाधाओं का भी सामना करते हैं। इनकी दिक्कतों का प्रमुख कारण दिखता है कि वे पितृसत्तात्मक शक्ति और सामाजिक मानदंडों को चुनौती देते हैं। उन्हें घर और समुदाय में लिंग आधारित हिंसा का सामना करने का अधिक जोखिम रहता है। सेक्सिस्ट, महिला विरोधी, होमोफोबिक, ट्रांस-फ़ोबिक झगड़ों की जद में आने के खतरों के साथ साथ कलंक, लांछन और संसाधनों में हिस्सेदारी या हक़ से वंचित रखा जाना बेहद आम है।

अन्य मानवाधिकार रक्षकों की तरह, महिला मानवाधिकार रक्षक भी बदलाव के विरोधियो के हमलों का लक्ष्य हो सकती हैं। क्योंकि ये मानवाधिकारों की मांग करती हैं, इसलिए ये पुरानी सोच के नुमाइंदो के लिए चुनौती होती हैं। ये रक्षक अपने समुदायों के भीतर भेदभाव, धमकी और हिंसा जैसे हमलों का सामना करते हैं। कई दफा महिला मानवाधिकार रक्षकों को इस आधार पर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है कि वे खुद किस लैंगिक पहचान से हैं अथवा किन विशिष्ट अधिकारों मांगो की वो बात करती है? आप देखेंगे की कई बार उन्हें सिर्फ इसलिए निशाना बनाया जाता है क्योंकि वे महिलाएं हैं या फिर एलजीबीटीआई लोग हैं।

महिला मानवाधिकार रक्षक हममे से कोई भी हो सकती है, जो भी यंहा अपने समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ती है, वो महिला मानवाधिकार रक्षक है। एक महिला जो अत्याचार के खिलाफ वकालत करती है, एक LGBTQI अधिकार प्रचारक, एक सेक्स वर्कर्स के अधिकार के लिए लड़ने वाली या फिर सामूहिक, या यौन और प्रजनन अधिकारों के लिए लड़ने वाला पुरुष भी हो सकता है।

एशियन ब्रिज इंडिया के अध्यक्ष मूसा आज़मी ने मानवाधिकार कैसे बना इसके इतिहास को बताते हुए प्रेरणा देने के उद्देश्य से कार्यशाला सहभागियों को कुछ महिला नेतृत्वकारीयों के विषय में जानकारी दी। इन अविश्वसनीय महिलाओं के काम को स्वीकार करें जो समान अधिकारों के लिए लड़ती हैं! जैसे- गौरी लंकेश- 5 सितंबर 2017 को राजराजेश्वरी नगर में उनके घर के बाहर उनकी हत्या कर दी गई थी। उनकी मृत्यु के समय, गौरी को दक्षिणपंथी हिंदू अतिवाद की आलोचक के रूप में जाना जाता था। उन्हें दक्षिणपंथी हिंदू उग्रवाद के खिलाफ बोलने, महिलाओं के अधिकारों के लिए अभियान चलाने और जाति आधारित भेदभाव का विरोध करने के लिए अन्ना पोलितकोवस्काया पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

इरोम शर्मिला- इरोम शर्मिला, जिन्हें मणिपुर की लौह महिला के रूप में भी जाना जाता है, सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम के खिलाफ लड़ने वाली एक मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। इस अधिनियम के परिणामस्वरूप होने वाले अत्याचारों के विरोध में वह लगभग 16 साल की लंबी भूख हड़ताल पर चली गईं। सोनी सोरी आदिवासी अधिकारों, विशेषकर आदिवासी महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली एक मानवाधिकार रक्षक हैं। उसने माओवादी और सरकारी बलों के बीच संघर्ष के परिणामस्वरूप मानवाधिकारों के उल्लंघन का पर्दाफाश किया है। ऐसी ही सुधा भारद्वाज, ग्रेस बानू बिलकिस बानो जैसी तमाम महिलाऐं अधिकारों की लड़ाई लड़ती आ रही हैं।

कार्यशाला का संचालन सरिता ने किया। धन्यवाद ज्ञापन ज्योति ने किया। बेनीपु, नागेपूर,गणेशपुर और कल्लीपुर से 4 आशा, 4 संगिनी 1 CHO, 2 शिक्षिका और 4 सामाजिक कार्यकर्त्ता प्रमुख लोग उपस्थित रहे। जान्हवी दत्त, शबनम, करण, दीपक, जगदीश और विजय कार्यक्रम में कुल 40 लोगों की भागीदारी रही।

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