Varanasi

बनारस व्यापार मंडल में एक और खरमंडल: क्षेत्र के कारोबारियों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुनाव के सम्बन्ध में किया शिकायत, कहा व्यापारियों के दोहन हेतु हुआ चुनाव, कार्यवाही करे चुनाव करवाने वालो पर

शाहीन बनारसी

वाराणसी: पूर्वांचल की सबसे बड़ी मंडी दालमंडी-नई सड़क-सराय आदि इलाको को मिलाकर एक संस्था वर्ष 2004 में उदित हुई थी जिसका नाम था बनारस व्यापार मंडल। तत्कालीन अध्यक्ष स्व0 जियाउद्दीन ने इस संस्था को पंजीकृत करवा कर व्यापारी हितो के रक्षार्थ बीड़ा उठाया था। जब तक मरहूम जियाउद्दीन साहब हयात में थे तब तक संस्था को जैसे तैसे चला रहे थे। उनके इन्तेकाल के बाद कई इलाके के लोग इस संस्था बनारस व्यापार मंडल पर अपना अधिपत्य ज़माने के लिए ऐसा लग रहा है जैसे दौड़ पड़े हो। जियाउद्दीन मरहूम ने पत्रावली संख्या थी P-29599, रजिस्ट्रेशन नम्बर था 743/2004-05 जो दिनांक 6/10/2004 को पंजीकृत करवाया मगर इस संस्था का कभी रिनिवल नही हुआ था।

जियाउद्दीन साहब का इन्तेकाल क्या हुआ लोग इस पुरानी संस्था को अपने सरपरस्ती में लेने के लिए लाइन लगा बैठे थे। इसके दो कारण मुख्य थे, पहला प्रशासनिक भौकाल और दूसरा था सियासी भौकाला। पहला प्रशासनिक भौकाल ऐसे जम गया कि 2500 कारोबारियों का हम प्रतिनिधित्व कर रहे है। दूसरा सियासी भौकाल इस वजह से बना कि सियासत में दिखा सके कि इस 2500 दुकानदारों का असली आका मैं ही हु। 2500 दुकानदार मतलब 25 हज़ार कुल वोट के असली मालिक हम है। इस तरह सियासी भौकाल; बन गया।

इस चुनाव के बाद हमने इस संगठन का बाइलाज जब हमने पढ़ा तो यह तस्वीर एकदम साफ़ हो गई कि सिर्फ सियासी और प्रशासनिक भौकाल बनाने के लिए ऐसे हो हल्ला के साथ चुनाव हुआ है।  बाइलाज में साफ़ साफ़ लिखा है कि चुनाव में मतदान का अधिकार केवल उनको होगा जिनके पास विशिष्ठ सदस्यता रसीदहोगी। अब ये विशिष्ठ सदस्य क्या है इसका भी साफ़ साफ़ ब्यौरा इस बाइलाज में लिखा हुआ है। बाइलाज में साफ़ साफ़ इसका वर्णन है कि विशिष्ठ सदस्य जो चुनावी प्रक्रिया में मतदान करने के अधिकारी है उनकी संख्या अधिकतम 151 होगी। बकिया साधारण सदस्य चुनावी प्रक्रिया में भाग नही ले सकते है। विशिष्ठ सदस्यों के लिए शुल्क 100 रुपया निर्धारित है। सवाल ये है कि संगठन का बाइलाज ही जब कहता है कि चुनाव में केवल 151 लोग ही मतदान कर सकते है तो फिर क्या यह सियासी और प्रशासनिक “भौकाल” दिखाने के लिए चुनाव समिति ने 2500 मतदाताओं से चुनाव करवाया जिसमे पूरा प्रशासन परेशान रहा और सुरक्षा व्यवस्था के लिए चिंतित था? बाइलाज के विपरीत आखिर चुनाव क्यों हुआ और करवाया किसने?

 आखिर इस संगठन में हुवे इस गडबड झाले की पोल खुलना शुरू हो गई। हो हल्ला कर चुनाव करवाने वालो ने संस्था का नवीनीकरण करवाना ज़रूरी नही समझा और चुनाव करवने की जल्दी थी। जल्दी होती भी क्यों नही सामने एक तरफ जहा नगर निगम चुनाव है जिसमे सियासी भौकाल दिखाना है कि हम है असली 25 हज़ार के करीब मतो के आका और दुसरे तरफ थी दिवाली। दिवाली पर पटाखा मार्किट लगवायेगे और ज़बरदस्त इनकम कमायेगे। हड़बड़ी में भूल गये कि नियमो से समाज और देश चलता है यहाँ तालिबानी हुकूमत नही है बल्कि देश हमारा संविधान से चलता है। दिवाली की तमन्ना दीवारों में कैद हो गई। अब सियासी चाहत भी धाराशाही होने के कगार पर आ गई है।

इलाके के कई दुकानदारों ने संयुक्त हस्ताक्षर से एक पत्र मुख्यमंत्री को लिखा है। पत्र की प्रति सहायक निबंधक और जिलाधिकारी को भी प्रेषित कर दुकानदारों ने इस कथित चुनाव की असली जाँच करवाने की मांग किया है। साथ ही दुकानदारों ने सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ से शिकायत करते हुवे कहा है कि यह चुनाव के नाम पर केवल व्यापारी वर्ग का दोहन हुआ है। व्यापारी के साथ एक छल हुआ है। प्रशासन से मेहनत करवा कर ऐसा कथित चुनाव करवाया गया है जिसकी निष्पक्ष जाँच करवा कर दोषियों पर कड़ी कानूनी कार्यवाही करे। इस शिकायती पत्र के साथ यह चुनाव करवाने वालो की लिस्ट भी लगाई गई है।

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