तारिक़ आज़मी
डेस्क: बिहार में भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद आरजेडी और जदयू के गठबंधन में बनी सरकार के लिए यह उपचुनाव प्रतिष्ठा का विषय था। मोकामा और गोपालगंज में हुवे उपचुनाव में आरजेडी के दोनों ही जगह से उम्मीदवार थे। यह चुनाव कही न कही भाजपा और सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ था। चुनावी नतीजे आये और आरजेडी ने मुकामा विधानसभा चुनाव तो जीत लिया। मगर गोपालगंज की सीट पर भाजपा का कब्ज़ा बरक़रार रहा। गोपालगंज की सीट पर भाजपा ने 2 हज़ार मतो से कड़ी टक्कर में जीत हासिल किया।
दरसलल मोकामा की सीट पर आरजेडी आसानी जीत गई। चुनाव इस सीट पर लगभग एकतरफा हो गया और भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। मगर गोपालगंज में धड़कने बढा देने वाले चुनाव ने भाजपा को जीत का सेहरा पहना दिया। यहाँ भाजपा ने 2 हज़ार के करीब मतो से अपनी जीत कांटे की टक्कर में दर्ज किया। मगर पुरे परिणामो पर अगर नज़र डाले तो इस जीत में ओवैसी की पार्टी एआईएम्आईएम् की बड़ी भूमिका रही है।
ओवैसी की पार्टी ने यहाँ 12000 वोट पाए। ये तो हकीकी ज़मींन पर पुख्ता है कि ओवैसी को मुस्लिम समुदाय का मत मिला है। अब अगर यहाँ से ओवैसी के प्रत्याशी को हटा दिया जाए तो यह 12 हजार मत शायद अधिकतर आरजेडी के पाले में जाते जो भाजपा की राह को मुश्किलों से भर देते। यहाँ बसपा ने भी 8 हज़ार वोट पाए और उसने भी मुस्लिम मत कुछ अपने तरफ किया। मगर इसको इतनी गंभीरता से नही देखा जा सकता है। ये ज़रूर है कि ओवैसी की पार्टी को मिलने वाला वोट अगर उधर न जाता तो दूसरा आप्शन उसके पास सिर्फ आरजेडी थी।
इस मामले में कई जानकारों का कहना है कि जिस तरह तेजस्वी ने ओवैसी की पार्टी का आरजेडी में विलय किया था उसका बदला ओवैसी ने ले लिया। यह पहली बार नहीं है कि ओवैसी ने तेजस्वी यादव को नुकसान किया हो। बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त भी सीमांचल, यानी पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज जैसे इलाकों में ओवैसी ने अच्छी पकड़ बना ली थी और पांच सीटें जीत ली थीं। इसके अलावा करीब 10 से ज़्यादा सीटों पर विपक्ष को नुक्सान भी पहुचाया था। यानी कुल मिला कर सिमांचल में ओवैसी की पार्टी ने 10 सीट पर भाजपा को फायदा पहुचाया था। हाल ही में तेजस्वी ने ओवैसी की पार्टी के सभी विधायकों को अपनी पार्टी में मिलाकर बिहार में ओवैसी की पार्टी ही खत्म कर दी थी। बिहार की राजनीति के जानकार मानते हैं कि इसी का बदला ओवैसी ने तेजस्वी से लिया है।
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