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मणिपुर हिंसा: सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हिंसा को बताया ‘मानवीय संकट’, अदालत ने कहा वह मौत और संपत्तियों को पहुचाई गई क्षति को लेकर बेहद चिंतित है

शाहीन बनारसी

डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हिंसा को ‘मानवीय संकट’ बताते हुए कहा कि अदालत लोगों की मौत और संपत्तियों को पहुंचाई गई क्षति को लेकर बेहद चिंतित हैं। आज सुप्रीम कोर्ट पूर्वोत्तर राज्य में भड़की हिंसा से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश देने की अपील वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई किया।

बताते चले कि मणिपुर में पिछले सप्ताह बुधवार को हिंसक झड़पें तब भड़कीं, जब नगा और कुकी जनजातियों ने बहुसंख्यक मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की सरकार की कोशिश का विरोध करने के लिए ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आयोजन किया था।

सुनवाई में चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक बेंच ने किया। बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि ‘यह एक मानवीय संकट है। सरकार कदम उठा रही है। हमारा लक्ष्य लोगों को सुरक्षा मुहैया कराना, हिंसाग्रस्त इलाकों से उन्हें सुरक्षित निकालना और उनका पुनर्वास है। हम जान-माल की क्षति से बेहद चिंतित हैं। ‘हम इस बात पर ज़ोर देते हैं कि विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए सभी ज़रूरी कदम उठाए जाएं। राहत शिविरों में इलाज की व्यवस्था हो।’

इस मामले में अब कोर्ट 17 मई को सुनवाई करेगी। याचिकाकर्ताओं में से एक ने अपील की थी कि वो केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दें कि इस हिंसा की वजह से सीआरपीएफ शिविरों में शरण लिए विभिन्न जनजातियों के लोगों को बाहर निकालें। वहीं, मणिपुर ट्राइबल फ़ोरम ने इस मामले में एसआईटी जांच की अपील की है। केंद्र और मणिपुर सरकार की तरफ़ से पेश होते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में आश्वासन दिया कि सभी ज़रूरी कदम उठाए जा रहे हैं और राज्य में दो दिन से हिंसा की घटना नहीं हुई है। हालात सामान्य हो रहे हैं। सॉलिसिटर जनरल ने बेंच से कहा कि आरक्षण का मुद्दा तभी लें जब राज्य में स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण में हो जाए।

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