Morbatiyan

तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – महंगाई डायन खाए जात है…………..!

तारिक आज़मी

वाराणसी। आज सुबह सुबह आंखे खुली तो देखा किचेन का माहोल चूल्हे से कही ज्यादा गर्म था। सुबह की खैर मनाते हुवे ब्रश करना शुरू किया था कि धम्म से चाय के कप ने तन्द्रा को तानाधिन धा कर डाला। हाल चल देखने से खतरनाक वाला ही लग रहा था। मन में सिर्फ सोच रहा था कि क्या छूटा जो आया नही। तब तक पानी के गिलास में ठंडा पानी रखे जाने की रफ़्तार से खौफज़दा होकर उछल पड़ा। भाई इस तूफ़ान का नियंत्रण शांति में ही समाहित है तो तूफ़ान के थमने का इंतज़ार खामोश रहकर करना चाहिए। अभी चाय पी ही रहा था कि काका आ धमके। जोर से बोले “का रे बबुबा, चल राशन का दूकान से कुच्छो सामान खरीद ले तब फिर आकर चाय पिया जाहिए।”

काका की आवाज़ ने तूफ़ान का रुख मोड़ा और थोडा रफ़्तार धीरी हुई। तूफ़ान ने भी एक लिस्ट जो पहले से बना कर रखा हुआ था काका को देते हुवे कहा “काका जी, ये भी सामान “इनसे” कहियेगा कि ले लेंगे, “इनसे” कहना ही बेकार है। भूल जाते है सुनते ही नहीं है।” इसके बाद मुझको तूफ़ान के इस रफ़्तार का कारण समझ आया कि कल बनिया के दूकान की लिस्ट किचेन के फ्रिज में ही भूल गया था। मगर काका को भी आग में घी डालने में शायद मज़ा आता है। काका ने तपाक से कहा “अरे मुझे कह दिया करो, बबुआ तो लापरवाह हो गया है, ई सब ध्यान से याद रखा जाता है।” काका का घी काम कर गया और तूफ़ान थोडा जो रुख मोड़ कर थमने की कोशिश कर रहा था वापस रफ़्तार में आते हुवे पहली बार मुझसे मुखातिब होकर बोला, “सीखिए काका से कुछ।”

गुरु चुपाये निकल लेने के अलावा हमारे पास कोई रास्ता नही था। वैसे भी एक गुरु मंत्र देता हु कि तूफ़ान से टकराना नही चाहिए, उसकी रफ़्तार के सामने शांति होकर निकल लेना चाहिए। वरना किचेन से अधिक टेम्प्रेचर फिर आपके रूम का होगा। काका के साथ थैला पकडे घर से निकल पड़ा। इस समय खाली थैला कुछ ऐसा आभास करवा रहा था कि जैसे जवानी में ही रिटायर हो गया हु। कदम चंद मिनटों में ही अख़लाक़ मिया की दूकान पर पहच गए थे तभी पीछे से शक्ल देख कर सिराज मिया टोक पड़े कि लगता है आज दौड़ा लिए गए हो। अब सुबह सुबह सेराज मिया को का जवाब देते तो सीधे सीधे एखलाक मिया को परचा थमाते हुवे कहा कि निकालो मिया सामान।

मद्धिम मुस्कान के साथ एखलाक मिया सामान तौल रहे थे। दुसरे तरफ सिराज मिया का थमाया हुआ रजनीगंधा मेरे मुह में जा चूका था। काका तो पान मुह में घुलाये बैठे थे। तभी एखलाक मिया ने बड़ी मुलायमियत से पूछा “भाई कडुआ तेल पैकेट का दे दे, या हमेशा की तरफ खुला वाला लेंगे।” वैसे तो अमूमन एखलाक मिया से मैं दाम सामान का नही पूछता हु क्योकि मुझको मालूम है कि उनका दाम हमेशा वाजिब ही रहता है। उनके दूकान का कडुआ तेल भी काफी अच्छी क्वालिटी का होता है खुद की सरसों देकर तेल पेरवाते है। बस ऐसे ही दोनों के दामों में फर्क जानने के लिए पूछ बैठा “क्या भाव है दोनों का। ?”

इस सवाल पर एखलाक मिया बड़ी मद्धिम मुस्कान से बोले “खुला वाला 180 और पैकेट सलोनी का कच्ची घानी 170।” गुरु कसम से मुह का रजनीगंधा कबड्डी खेलते हुवे बाहर निकलने को तड़प गया था। वो तो कहो ज़बान ने उसको धोबिया पछाड़ देकर वापस मुह में ही रहने दिया वरना आज काका की कुर्ती फ्री में डाई हो गई होती। अमा भाई कितने दिन हुआ ही है कि सरसों का तेल 110 रुपया लीटर था। आज 170 रुपया लीटर हो गया। खुला वाला हमेशा 10 रुपया महंगा होता है क्योकि वह लीटर नही एक किलो वजन से होता है। 100 ग्राम पैकेट के वज़न से ज्यादा। तो हिसाब मिला कर बराबर ही रहता है। आखिर मुह का रजनीगंधा थूका और कुछ बोलने की कोशिश करता तभी सिराज मिया ने मौके पर चौका जड़ दिया। बोल पड़े “अमा 170-180 के चक्कर में दस रुपया के रजनीगंधा का नुक्सान कर बैठे।

एक तरफ तेल का दाम सुनकर कान धुआ फेक रहा था वही दूसरी तरफ सिराज मिया के याद करवाए गए रजनीगंधा के ज़रिये दस रुपया का नुक्सान दिखाई दे रहा था। तभी अचानक एखलाक मिया बोल पड़े रीफाइंड 165 रूपये का है। गुरु बोलना मुनासिब नही था तो धीरे से एक रजनीगंधा और मुह के हवाले किया और कहा तीन-तीन किलो दोनों कर डालो भाई। पर्चे पर अमूमन की तरह ही 5-5 किलो लिखा था। एखलाक मिया ने भी मद्धिम मुस्कान के साथ सामान पैक करने की कवायद तेज़ कर दिया। समझ नही आ रहा था कि अब क्या कडुआ तेल से छौका लगा कर काम चलाया जाए या फिर सिर्फ तसव्वुर कर लिया जाए कि सरसों का तेल है और पानी से बघार लगवाए इंसान।

कल ही की तो बात है बाइक में तेल खत्म हो गया था। हमेशा 500 का एक साथ डलवाने के बाद “फिल इट, शट इट एंड फॉरगेट इट” समझ कर भूल जाने वाला कल परेशान था कि तेल कैसे खत्म हो गया। वो तो कहो शुक्र है कि पेट्रोल टंकी के सामने ही हुआ था जो धक्का नही देना पड़ा वरना धक्का देने की पारी रहती। तब ख्याल आया था कि पेट्रोल भी तो सेंचुरी मारने के लिए बनारस में बेताब है और 97 पार कर चूका है। ऐसे मौके पर उनकी याद मुझको ज़बरदस्त आई थी जो कहते थे कि पेट्रोल 100 रुपया लीटर भरवा लेंगे, बस विरोध नही होगा।

हकीकत में तमन्ना उनकी पूरी होने के कगार पर है। कई शहरों में तो पूरी भी हो चुकी है। इन समर्थकों को लोगों ने हल्के में लिया था, आज उन्होंने वाकई साबित कर दिया है कि ऐसे ही बकलोली करते हुए व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में मैसेज नहीं भेज रहे थे। कुछ शहरों में पेट्रोल का 106 रुपये लीटर के पार चले जाना तीनों प्रकार से अहम है। ऐतिहासिक भी है, अकल्पनीय भी है और अभूतपूर्व भी है। मई से लेकर अभी तक पेट्रोल डीज़ल के दाम 23 बार बढ़े हैं तब जाकर पेट्रोल सौ रुपया हुआ है। बड़ी मेहनत और मशक्कत के बाद ये वक्त आया है तो उनको बधाई तो बनती ही है।

एखलाक मिया सामान पैक कर चुके थे। बटुआ निकाल कर उनको सामान का पैसा देने के बाद बटुआ भी अपने दिवालिया होने का अप्लिकेशन लेकर खड़ा हो चूका था। घर को बढ़ते कदम मन में एक गाना गुनगुना रहे थे, “ये जो थोड़े से है पैसे, खर्च तुम पर करू कैसे ?” कदम घर को पहुच चुके थे। तूफ़ान खामोश ही नही हो चूका था बल्कि तुफान के हुस्न-ए-मुबारक पर मुस्कान थी। किचेन में गाना जो बज रहा था वो पूर्वांचल का फोक सोंग है मगर लग रहा था कि गायिका ने मेरे लिए ही गया होगा, “सखी सय्य तो खुबे कमात है, महंगाई डायन खाए जात है।” एकदम भरा बैठा था तो काका भी छेड़ने के मूड में नही थे, काकी भी आ चुकी थी। अपने हाथो से चाय की कप थमाई। धीरे धीरे गाना जैसे जैसे आगे बढ़ रहा था चाय खत्म हो रही थी। और सिर्फ एक ख़ामोशी थी। किचेन में, तूफ़ान में, और मेरे मन में भी।

अब मेरी कहानी खुद की देखी सुनी से लग रही है तो नीचे कमेन्ट बाक्स में अपने विचार व्यक्त कर सकते है। अगर विचार शुन्य हो तो कमेन्ट बाक्स में पान खाकर थूकना मना है भी लिख कर काम चलाया जा सकता है। मगर सच बता रहा हु कि कडुआ तेल सबसे अधिक कम्पटीशन में आगे है। आप भी इस बात को समझ रहे है। इसीलिए तेल का इस्तेमाल तसव्वुर में कर सकते है।

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