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लोकसभा चुनाव में बसपा ने बदला अपना प्रत्याशी: क्या यह वरिष्ठ नेता अतहर जमाल लारी के ‘पोलिटिकल करियर का The End’ है? जाने कौन है बसपा के नए प्रत्याशी नियाज़ अली मंजू और क्या है मतो का समीकरण

तारिक़ आज़मी

लोकसभा चुनाव 2024 में बहुजन समाज पार्टी ने बनारस से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक सप्ताह पहले ही समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता अतहर जमाल लारी को टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा था। अतहर जमाल लारी ने चुनावी भाग दौड़ भी शुरू कर दिया था। कई मीडिया हाउस को बयान देते हुवे प्रधानमंत्री को हार का मुह दिखाने के दावे भी करना शुरू कर दिया था।

मगर इसी दरमियान अचानक सियासी ऊंट ने अपनी करवट ले लिया। टिकट मिला और टिकट कटा की तर्ज पर बसपा ने प्रत्याशियों की 6वीं लिस्ट में वाराणसी के प्रत्याशी को बदल डाला। इस लिस्ट में पार्टी ने 11 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है साथ ही वाराणसी सीट पर पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपना प्रत्याशी भी बदल दिया।

पार्टी ने अतहर जमाल लारी की जगह सैयद नियाज अली (मंजू) को वाराणसी से मैदान में उतारा डाला। इस लिस्ट में बसपा ने एमएलसी भीमराव अंबेडकर को हरदोई से उम्मीदवार बनाया है। वहीं, संत कबीर नगर से मोहम्मद आलम, फतेहपुर से मनीष सचान, फिरोजाबाद से चौधरी बशीर, सीतापुर से महेंद्र यादव, महाराजगंज से मौसमे आलम, मिश्रिख से बीआर अहिरवार, वाराणसी से उम्मीदवार बदलकर नेयाज अली को टिकट दिया। इसके अलावा मछली शहर से कृपा शंकर सरोज, भदोही से अतहर अंसारी और फूलपुर से जगन्नाथ पाल को उम्मीदवार घोषित किया गया।

कौन है नियाज़ अली मंजू…?

नियाज़ अली मंजू पूर्व पार्षद रह चुके है। वाराणसी के भदऊ चुंगी इलाके के निवासी नियाज़ अली मंजू पुराने समाजवादी नेता था। मगर मुलायम सिंह की नीतियों के मुखालिफ जाकर सपा से उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद नियाज़ अली मंजू अफजाल अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के साथ भी जुड़े रहे। ज़मीनी स्तर की सियासत से आये नियाज़ अली मंजू एक तेज़ तर्रार नेता और प्रखर वक्ता भी माने जाते है। मगर सियासत में विगत काफी समय से कोई सरगर्मी नही दिखा रहे थे। अब वह मुस्लिम मतदाताओं को कैसे रिझा पाते है यह आने वाला वक्त ही बताएगा।

कौन है अतहर जमाल लारी जिनका टिकट कटा

अतहर जमाल लारी चंद्रशेखर सिंह के साथी नेताओं में सुमार होते है। लगभग 4 दशक के सियासी अपने सफ़र में कई पार्टी में रहे अतहर जमाल लारी कई बार चुनाव मैदान में उतरे, उनके अच्छे प्रदर्शन के बावजूद भी उन्हें सफलता हाथ नही लगी। जिस समय कौमी एकता दल का निर्माण हुआ था उस समय वह उस पार्टी के साथ जुड़े और पार्टी में उनको बड़ी ज़िम्मेदारी भी दिया।

वाराणसी दक्षिणी से वह चुनाव भी लड़े मगर सफलता हाथ नही लगी। कौमी एकता दल के बाद अतहर जमाल लारी ने सपा का दामन पकड़ा और उनको स्वामी प्रसाद मौर्या का करीबी भी सियासत में माना जाता है। सपा के दामन को थामने के बाद उन्हें एक प्रखर और बेबाक नेता के रूप में बयान देते हुवे देखा गया। सियासत एक बार फिर से अतहर जमाल लारी की उभार पर थी कि इसी दरमियाना लोकसभा चुनावो की घोषणा हो गई। चुनाव की घोषणा के बाद अतहर जमाल लारी न जाने कब बसपा में शामिल हुवे और बसपा ने इनको अपना प्रत्याशी भी घोषित कर दिया। जिसके बाद इनकी चुनावी बयानबाजी भी जारी हो गई थो। वह जितना हमलावर उतना ही वह कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय पर भी थे।

इस बार बसपा के टिकट पर ताल ठोकने को तैयार अतहर जमाल लारी का टिकट काट दिए जाने के बाद उनकी सोशल मीडिया पोस्ट कई क्षेत्रीय दलों से उनको टिकट के आफर को ज़ाहिर करती है। इस क्रम में ओवैसी की पार्टी AIMIM का भी नाम आने के दावे है। मगर इन सबके बीच कही न कही से अतहर जमाल लारी का ये टिकट काटना उनके सियासी करियर को ‘द एंड’ भी कर सकता है। सियासी सुझबुझ रखने वाले मानते है कि अगर अतहर जमाल लारी ने जल्दबाजी न दिखाई होती तो शायद सपा के वह विधानसभा चुनावो में टिकट के प्रबल दावेदार होते। मगर शायद सियासी महत्वाकांक्षा ने थोड़ी जल्दबाजी भी करवा दिया।

क्या कहता है मतदाताओं का अंक गणित  

अगर चुनावी अंक गणित को देखे तो कई बड़े सवाल बसपा के टिकट को लेकर उभरते हुवे दिखाई दे रहे है। वर्ष 2019 के आकडे बताते है कि वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को 674,664 मत मिले थे। जबकि दुसरे स्थान पर सपा बसपा की संयुक्त प्रत्याशी शालिनी यादव को 195,159 वोट मिले थे। वही कांग्रेस ने अजय राय को टिकट दिया था और अजय राय के खाते में कुल 1,52,548 मत आये थे। इस प्रकार देखे तो पीएम मोदी को 63 फीसद से अधिक मत मिले थे।

अब इसी आकडे को पकड़ लेते है तो पिछले लोकसभा चुनावो में वाराणसी के मुस्लिम मतदाताओ का रुझान दो तरफ था और वह कांग्रेस और सपा दोनों को गया था। जबकि इस बार कांग्रेस और सपा एक साथ है और बसपा मुखालिफ खड़ी है। ऐसे में एक नज़र 2022 मेयर चुनावो पर डाले तो बसपा को यहाँ से 36 हज़ार से अधिक मत मिले थे जबकि सपा के खाते में 1 लाख 58 हज़ार तथा कांग्रेस के खाते में 94 हज़ार से अधिक मत मिले थे। अब दूसरी नज़र 2014 लोकसभा चुनावो पर भी डालते है।

2014 लोकसभा चुनावो में मुस्लिम मतदाताओं का रुझान पूरी तरह आम आदमी पार्टी मुखिया अरविन्द केजरीवाल के तरफ था। इस चुनाव में भाजपा से नरेन्द्र मोदी को 581,022 वोट मिले थे। जबकि आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल को 209,238 और कांग्रेस के अजय राय को 75,614 तथा बसपा के विजय जायसवाल को 60,579 मत मिले थे। इसमें विशेषतः विजय जायसवाल को जायसवाल समाज का भी वोट मिला था जो बसपा का कोर वोटर तो नही है। ऐसे में बसपा जो अपने कोर वोटर में अपनी ज़मीन तलाश रही है को मुस्लिम प्रत्याशी का सहारा आवश्यक था ताकि चुनाव खड़ा हो सके।

अगर बसपा ने दलित प्रत्याशी पर दांव खेला होता तो कोर वोटर्स तक ही बसपा को सिमित रहना होता। अब अगर मुस्लिम मतदाताओं की बात करे तो ऐसे में अगर बसपा को कांग्रेस के दो खेमो में मतदान मुस्लिम समाज का हुआ तो मुकाबला एकतरफा हो जायेगा। यहाँ मुख्य मुद्दा लगभग 5 लाख वोट का है फाइट की स्थिति में। अब सवाल ये है कि अगर बसपा के कोर वोटर्स इस बार भी उसके साथ नही आये तो फिर ऐसे स्थिति में भाजपा की राह में फुल ही बिछे दिखाई दे रहे है। वही अगर मुस्लिम वोटर्स के साथ सपा के कोर वोट और कांग्रेस के वोट एक साथ आते है तो थोड़ी टक्कर हो सकती है।

दरअसल बसपा को उस चुनावी गणित पर ध्यान है जब मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ मुख़्तार अंसारी ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में कांटे की टक्कर में भले मुरली मनोहर जोशी ने चुनाव जीता था और उनको कुल 203,122 मत मिले थे। मगर मुख़्तार अंसारी ने भी जमकर फाइट किया था और 185,911 मत हासिल किये थे। जबकि सपा के टिकट से उतरे अजय राय को 123,874 और तत्कालीन सेटिंग सांसद रहे राजेश मिश्रा को 66,386 मत मिले थे।

मुरली मनोहर जोशी भले चुनाव जीत गए थे मगर ये जीत हार का अंतर काफी कम था। यह वह स्थिति थी कि मुस्लिम मतदाताओं ने एकतरफा मुख़्तार अंसारी को वोट दिया था, जबकि बसपा के कोर वोटर्स पार्टी के साथ नही आये थे। अगर उस चुनाव में महज़ राजेश मिश्र के मतों को आज़ादी मिलती तो शायद नतीजे कुछ अलग ही होते अथवा अजय राय के साथ गए मुस्लिम और कुछ यादव वोटर्स अगर पलटे होते तब भी नतीजे कुछ अलग होते।

बहरहाल, यदि 2019 जैसी स्थिति का कोई आंकलन इस बार 2024 में करता है तो बेशक इसको खयाली पुलाव ही कहा जा सकता है। मगर सब मिला कर भाजपा की राह वाराणसी में आसान होती दिखाई दे रही है। बेशक अगर बसपा से कोई ब्राह्मण प्रत्याशी अथवा दलित प्रत्याशी होता तो थोडा कठिन राह हो सकती थी। फिलहाल वाराणसी में आखरी चरण में चुनाव है। नतीजे 4 जून को आयेगे।

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