तारिक़ खान
डेस्क। उनका जो पैगाम है वह अहल-ए-सियासत जाने। अपना तो पैगाम-ए-मुहब्बत है जहा तक पहुचे। बेशक नफरतो के सौदागर जितनी भी नफरते तकसीम करे, मगर इंसानियत आज भी हमारी रगों में लहू बनकर बह रही है। यहाँ असलम की मिठाई से दीपावली मनाई जाती है, तो वही लाल जी की सिवई से ईद मनाई जाती है। ऐसे ही हमारे मुल्क का ताना बाना है। एक फुल कोई लाता है तो दूसरा कोई और लेकर आता है। इससे तैयार गुलदस्ता हसीन खुश्बू देता है। इसका एक जीता जागता उदहारण सामने आया छतरपुर में जहा अनवरी खातून ने पूरनलाल की अर्थी को कंधा देकर इंसानियत और गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल कायम किया।
इससे बड़ी बात तो ये रही कि अनवरी खातून का पूरनलाल से सिर्फ इंसानियत का रिश्ता था। वही सपना चौरसिया का पूरनलाल से दूर का रिश्ता था। जिसके कारण सामाजिक कार्यकर्ता सपना चौरासिया ने अंतिम संस्कार, अस्थि विसर्जन के लिए इलाहाबाद जाने से लेकर तेरहवीं और श्राद्ध सहित अन्य सारे क्रियाकर्मों का बीड़ा और खर्च उठाने की बात कही है। वही आशियाना वृद्धआश्रम संचालिका अनवरी खातून ने कहा कि हम पहले इंसान हैं। बाद में हिन्दू और मुस्लिम है। हमने जाति-धर्म, हिन्दू-मुस्लिम और महिला-पुरुष की बंदिशों को तोड़ते हुए इंसानियत का फर्ज अदा किया है। जो मेरी नजर में इन सबसे बड़ा है।
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