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तारिक आज़मी की मोरबतियाँ: दो हिन्दू बहनों द्वारा ईदगाह विस्तार हेतु दी गई करोडो की ज़मीन सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल नहीं, बल्कि बेटियों की बाप से मुहब्बत की मिसाल है, बेशक बेटियाँ अल्लाह की रहमत है

तारिक़ आज़मी

उत्तराखंड की दो बहनों सरोज और अनीता ने अपने पिता बृजनंदन दास रस्तोगी की आखरी इच्छा के मुताबिक ईदगाह को करोडो की संपत्ति दान कर देने की खबर इस समय चर्चा में है। नाम में मज़हब तलाशने वालो ने बेटियों सरोज और अनीता के नाम में हिन्दू मज़हब की तलाश कर डाला। ईदगाह की बात है तो बेशक ईदगाह को मुस्लिम समुदाय से जोड़ा गया। बेशक ये खबर पुरे मुल्क में अमन को पसंद करने वालो के लिए एक सुकून की खबर है। मगर इसमें बेटियों की अपने पिता से मुहब्बत को ज़ाहिर करने वाली बात लोगो के नज़र से शायद दूर है। बेटियों की अपने पिता से ये मुहब्बत देखे आप कि पिता बृजनंदन दास रस्तोगी की आखरी इच्छा बेटियों सरोज और अनीता के सामने नही आई थी। मगर जब सामने आई तो बेटियों ने करोडो की संपत्ति को पिता की आखरी इच्छा के सामने कुछ ही समझा।। करोडो की सपत्ति को अपने पिता के आखरी इच्छा पर कुर्बान कर देने के लिए बड़ा दिल चाहिए होता है।

उत्तराखंड में एक अनोखी मिसाल देखने को मिली है। यहां अपने दिवंगत पिता बृजनंदन दास रस्तोगी की आखिरी ख्वाहिश को पूरा करने की खातिर दो हिंदु बहनों सरोज और अनीता ने डेढ़ करोड रुपयों से ज्यादा कीमत की ज़मीन ईदगाह के लिए नाम कर दी। ताकि ईदगाह का विस्तार हो सके। यह ज़मीन ईदगाह के नाम पर करने के इस फैसले का सबब दोनों बहनों के पिता द्वारा उनकी अंतिम इच्छा के मद्देनज़र किया गे। यह ज़मीन तकरीबन चार बीघा थी। दोनों बहनों ने यह फैसला ईद के त्योहार से पहले लिया। बेशक उन बहनों सरोज और अनीता की सोच को सलाम पूरा मुल्क कर रहा है। अमन के पैरोकारो द्वारा बेटियों के उठाये इस कदम को सांप्रदायिक मुहब्बत की निशानी बताई है। मगर हकीकत के रूबरू ये अपने पिता से बेटियों की मुहब्बत है। बेशक बेटियाँ अल्लाह की रहमत है हर एक इन्सान के लिए। बेटियों ने अपने स्वर्गवासी पिता की वह इच्छा पूरी किया जो उन्होने दो दशक पहले अपने मृत्यु के पूर्व अपने एक रिश्तेदार से ज़ाहिर किया था। इसकी जानकारी बेटियों को 2003 के बाद अब मिली है।

इन बहनों के दान ने मुसलमानों के दिल को छू लिया। इसके बाद सभी मुसलमानों ने मंगलवार के दिन उनके दिवंगत पिता की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना किया। ईदगाह में ईद की नमाज़ के बाद दुआख्वानी ख़ास तौर पर किया गया और देश के अलग-अलग हिस्सों से आ रही संप्रादिक तनाव की खबरों के बीच यह एक मिसाल कायम करते हुवे मुस्लिम समुदाय ने सामूहिक रूप से उन बेटियों के पिता की आत्मा के शांति हेतु दुआ किया गया। दोनों बहने उधमसिंह नगर जिले के छोटे से शहर काशीपुर की रहने वाली हैं। दोनों के इस फैसले के बाद वह अब चर्चा का मुद्दा बनी हुई हैं।

जानकारी के मुताबिक बीस साल पहले लड़कियों के पिता ब्रजनंदन प्रसाद रस्तोगी ने अपने करीबी रिश्तेदारों को कहा था कि वह अपनी चार बीघा ज़मीन नजदीक में बने ईदगाह के विस्तार के लिए दान देना चाहते हैं। हालांकि, अपने बच्चों को अपनी आखिरी ख्वाहिश बताने से पहले उनका 2003 में स्वर्गवास हो गया था। दिल्ली और मेरठ में अपने परिवारों के साथ रह रहीं उनकी पुत्रियों सरोज और अनीता को जब उनकी पिता की आखिरी ख्वाहिश के बारे में पता चला तो उन्होंने सहमति के लिए काशीपुर में रह रहे भाई से संपर्क किया। राकेश भी उनके वालिद की आखिरी ख्वाहिश सुन दोनों के इस फैसले से राजी हो गया। संपर्क किए जाने पर राकेश रस्तोगी ने कहा, पिता की आखिरी ख्वाहिश की इज्जत करना हमारा दायित्व है। मेरी बहनों ने ऐसा काम किया है जिससे दिवंगत पिता की आत्मा को शांति मिलेगी।

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