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कोविड-19 वैक्सीन के गंभीर साइड इफेक्ट को कंपनी ने ब्रिटेन की अदालत में स्वीकार किया, यूके हाई कोर्ट में कंपनी के खिलाफ 51 केस दर्ज, भारत में उठ रहे बड़े सवाल

तारिक़ खान

डेस्क: ब्रिटिश की अदालत में दाखिल कोरोना वक्सीन के साइड इफ्फेक्ट से सम्बन्धित मामले में सुनवाई के दरमियान ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने पहली बार अदालत में स्वीकार किया है कि उसकी कोविड-19 वैक्सीन से गंभीर साइड इफेक्ट हो सकते हैं। इसी वैक्सीन को भारत में हम कोविशील्ड के नाम से जानते हैं। लगभग 80 फीसद लोगो को यह वैक्सीन लगी है। अब इसको लेकर भारत में भी चर्चाये तेज़ हो गई है।

ब्रिटेन की कंपनी एस्ट्राजेनेका ने इस वैक्सीन को यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के साथ मिलकर तैयार किया था। वैक्सीन लेने के बाद मौत, ब्लड क्लॉटिंग और दूसरी गंभीर दिक्कतों के कारण एस्ट्राजेनेका कानूनी कार्रवाई का सामना कर रही है। कई परिवारों ने आरोप लगाया कि वैक्सीन के कारण गंभीर साइड इफेक्ट हुए हैं। इस सम्बन्ध में ब्रिटेन की अदालतो में कुल 51 मामलो की सुनवाई चल रही है।

ब्रिटिश अखबार द टेलीग्राफ ने कोर्ट के दस्तावेजों के हवाले से एक रिपोर्ट तैयार की है। इसके मुताबिक, एस्ट्राजेनेका के खिलाफ पहला केस जेमी स्कॉट नाम के व्यक्ति ने दर्ज करवाया था। अप्रैल 2021 में एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लेने के बाद वे स्थायी रूप से ब्रेन इंजरी का शिकार हो गए। वैक्सीन लेने के बाद वो काम नहीं कर पाए। जेमी की हालत ऐसी थी कि अस्पताल ने उस दौरान उनकी पत्नी को तीन बार कॉल करके बताया कि उनके पति मरने वाले हैं।

जेमी को TTS (थ्रोम्बोसिस विथ थ्रोम्बोसायटोपीनिया सिन्ड्रोम) नाम का गंभीर साइड इफेक्ट हुआ। इससे लोगों के दिमाग में खून के थक्के (Blood clots) बन जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है। रिपोर्ट के मुताबिक, एस्ट्राजेनेका ने इस साल फरवरी में ही कोर्ट में डॉक्यूमेंट जमा किया। इसी में बताया कि इसकी कोविड वैक्सीन से कुछ मामलों में TTS हो सकता है। यूके हाई कोर्ट में कंपनी के खिलाफ 51 केस दर्ज हैं। पीड़ित परिवार वाले कंपनी से करीब 1000 करोड़ रुपये (100 मिलियन पाउंड) मुआवजे की मांग कर रहे हैं।

इससे पहले, मई 2023 में एस्ट्राजेनेका ने कहा था कि वैक्सीन के कारण सामान्य तौर पर TTS होने की बात को वो नहीं स्वीकारता है। हालांकि अब कंपनी कह रही है कि कुछ दुर्लभ मामलों में ऐसा हो सकता है। और उसे नहीं पता कि ऐसा क्यों हुआ। कंपनी का ये भी कहना है कि वैक्सीन के बिना भी TTS हो सकता है। पीड़ित परिवारों के वकील ने कोर्ट में दावा किया कि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन ‘खराब’ है और इसके प्रभाव को ‘काफी बढ़ा-चढ़ाकर’ दिखाया गया है। हालांकि एस्ट्राजेनेका ने इसे सिरे से खारिज कर दिया।

जब एस्ट्राजेनेका की कोविड-19 वैक्सीन लगनी शुरू हुई थी, तब भी इसके साइड इफेक्ट्स को लेकर खूब विवाद हुआ था। हालांकि तब कंपनी ने कहा था कि ट्रायल के दौरान वैक्सीन के कोई गंभीर साइड इफेक्ट्स देखने को नहीं मिले थे। कहा गया था कि वैक्सीन लगने के बाद थकान, गले में दर्द और हल्का बुखार जैसे लक्षण दिखे। लेकिन किसी की मौत या गंभीर बीमारी का कोई मामला सामने नहीं आया। भारत में इस वैक्सीन का निर्माण सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ने किया था। मार्केट में वैक्सीन आने से पहले ही SII ने एस्ट्राजेनेका के साथ समझौता किया था। सीरम इंस्टीट्यूट दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी है। भारत में करीब 80 फीसदी वैक्सीन डोज कोविशील्ड की ही लगाई गई है। इसी साल जनवरी में द टेलीग्राफ ने एक और रिपोर्ट छापी थी। ये रिपोर्ट बताती है कि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के कारण जिन लोगों को गंभीर साइड इफेक्ट्स झेलने पड़े, उन पीड़ितों ने शिकायत किया कि उन्हें सोशल मीडिया पर अपने लक्षणों के बारे में बात करने पर सेंसरशिप का सामना करना पड़ा है।

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