अब जो कार्यकर्ता वर्षो से पार्टी की सेवा में लगे है उनको टिकट न देकर किसी इम्पोर्टेड कैंडिडेट को टिकट दिया जाए तो हताशा होना स्वाभाविक है. चर्चाओ और राजनैतिक समीकरणों को आधार माने तो दोनों जिलों की 15 सीटों मे से केवल इलाहाबाद पश्चिमी से नंदी को जो टिकट दिया गया है, वही लड़ाई मे है। लेकिन इस क्षेत्र के ब्राह्मण मतदाता नन्दी से बहुत बुरी तरह चिढ़े हुये हैं। ब्राहमण मतदाताओ की एक सोच यह है की इलाहाबाद मे ब्राह्मणो की राजनीति को समाप्त करने का श्रेय इन्ही को जाता है, इस कारण घोर भाजपाई ब्राहमण भी नंदी के विरोधी न सही मगर समर्थक भी नहीं है. इस तरह से देखा जाये, तो इन दोनों जिलों मे भाजपा की जो तस्वीर बनती है, उसमे भाजपा एक ही सीट पर लड़ाई मे है, पर वह भी 100% जीतने की स्थिति मे नही है। इसका एक कारण और है कि इन दोनों जिलों के ब्राह्मणों की कुछ मुद्दों को छोड़ कर सपा से उनकी नजदीकी बढ़ी है। यदि सपा से किसी ब्राहमण को टिकट मिला है, भाजपा समर्थक ब्राहमण भी सपा से खड़े ब्राहमण उम्मीदवार के समर्थन में आ सकता है।
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