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इससे भी अधिक झेलनी होगी सूरज़ की तपिश

(इमरान सागर)

शाहजहाँपुर:-धरती से लगातार हरियाली को बरबाद कर उंची ऊंची इमारते तो जरूर बनाई जाती रही है लेकिन हरियाली की बरबादी के नाम पर कहीं भी वृक्षारोपड़ का नही हो पाना ही हमें सूरज की तपिश झेलने को मजबूर किए हुए है! मानव की पृवर्ति किसी बरबादी की कभी नही रही लेकिन हाल के दशको में उसके अन्दर लालची पृवर्ती को जन्म के साथ ही जनसंख्या अनियत्रण ने ले लिया!

बढ़ती जनसंख्या ने अपने निवास और आराम की तलाश में धरती से लगातार हरियाली को बरबाद किया! मानव ने अपने सुख लिए जंगलो की मे नही बल्कि रिहाईशी क्षेत्रो से भी हरे भरे और छायादार वृक्षो को लगातार धरती से उखाड़ कर इमारतो का निर्माण किया जो आज भी जारी है! मानव ने जिस सुख और लालच के चलते धरती के श्रंगार रूपी हरियाली को बरबाद किया लेकिन वह उस सुख को पा भी सका! लाखो मन में यह सबाल उठता जरूर उठता होगा कि तमाम दौलत एंव हर जरूरत और बेजरूरत की तमाम चीजे होने के बाद भी सुकून नाम की चीज़ आखिर कहाँ रह गई!

हर पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में पेड़ लगाने का व्यख्वान विभिन्न श्रीमुख से सुनने को मिलता जरूर है लेकिन मात्र प्रचार और प्रसार तक ही सीमित रहा है अबतक! मानव ने अपने अन्दर लाचली पृवर्ती के जन्म के बाद धरती की हरियाली खत्म करने के नाम करोड़ो समेट लिए तो वही हमारी सरकारो ने नये वृक्षारोपड़ के नाम पर खजानो से करोड़ निकाल कर गवाँ तो दिए लेकिन यह देखने की कोशिश तक नही कि जहाँ वृक्षारोपड़ होना था वही हुआ भी या नही और यदि हुआ है तो कितना! हर वर्ष वृक्षा रोपड़ होने के बाद भी धरती पर वृक्ष बढ़ने की बजाय लगातार घटते नज़र आ रहे हैं!
नाम मात्र की जागरूकता हमे सूरज़ की तपिश से बचाने में कामयाब नही हो सकती! बाग़ बग़ीचे सिमट कर ग़मलो में पंहुचते पंहुचते ग़ायब से होने लगे! बाग़ बग़ीचो की ज़मीनो पर मानवो का वास होता गया लेकिन उसने अपने हर सुख की लालसा में वृक्षो का ग़बन करके सबसे अमुल्य सुख़ खोकर अपने जीवन को लगातार बढ़ती सूरज़ की तपिश के हबाले कर दिया!
वर्तमान में सूरज की गर्मी पिछले वर्ष से अधिक है और यह कहना गलत न होगा कि अगले वर्ष हम इससे भी अधिक गर्मी को बरदास्त करने लिए मौजूद भी होगे या नही! भ्रस्टाचार के इस माहौल में हम वृक्षारोपड़ में भ्रस्ट नीति की मिलाबट कर खुद अपने ही जीवन से खिलबाड़ कर रहे हैं तो आने वाली नस्लो से क्या उम्मीद की जा सकती है यह चिंतन और मंथन का विषय है! धरती के श्रंगार को बरबाद कर हमने खुद के जीवन के साथ खिलबाड़ किया और अत्याचार किया और लगातार कर रहे हैं! धरती से पेड़ पौधे,वृक्षो के लगातार होते कटान एंव उनकी जगह बड़ी बड़ी ऊंची इमारतो का निर्माण तब किसके काम आएगा जब मौसम के बदने से बारिश और हवाएें तथा सर्दी के न होने से अन्न और फसले नही रहेगी तो क्या मानव जीवन होगा? हर वर्ष लगातार बढ़ती तपिश ने तालाबो और पोखरो का ही पानी नही सोखा बल्कि बारिश भी सूखती जा रही है! धरती के तल में पानी की कमी से आज त्राहि त्राहि मची हुई है तो कल इसका अन्जाम और भी बुरा होने बाला है!
मेरा तो बस इतना ही मानना और कहना है कि विभिन्न लालची पृवर्तियाँ हो परन्तु हमें वृक्षारोपड़ में अपनी लालची पृवर्ती को रोक कर ईमानदारी के साथ धरती के श्रंगार को बहाल करने में जी जान से वृक्षरोपड़ ही नही करना होगा बल्कि वृक्षीरोपड़ के बाद लगाएे गये पौधो को तब तक सीचना होगा जब वह अपने तने पर मजबूती से खड़े होकर हमे ताज़ी और ठंण्डी हवा के साथ पूर्ण छाया न देने लगे! जिस दिन हम एैसे वृक्षारोपड़ में कामयाब हो गये समझो कि खुद का जीवन बचाने के साथ ही धरती का श्रंगार करने में कामयाब होगे!
आईए शपथ ले कि विश्व पर्यावरण दिवस का सही अर्थ हम बिश्व पर्यावरण दिवस पर ही क्यूं! वृक्षारोपड़ के बाद वर्ष भर उनकी देखबाल कर उनकी ठंण्डी हवादार छाया के नीचे विश्व पर्यावरण दिवस मनाने के हक़दार बने!
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