तारिक आज़मी
बेल्थरारोड (बलिया)। स्वच्छ भारत अभियान के तहत देश में हर तरफ सफाई पर जोर दिया जा रहा है। मगर उत्तर प्रदेश के बेल्थरारोड रेलवे स्टेशन पर सफाई के नाम पर लगता है कुछ और ही चल रहा है। ठेका प्रथा के तहत स्टेशन पर होने वाली सफाई में ठेकेदार सहित कार्यदाई संस्था खुद सवालिया घेरे में खडी दिखाई दे रही है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिस तरह से हाथी के दांत खाने के और तथा दिखाने के और होते है, उसी तरह ठेकेदार द्वारा सफाई कर रहे कर्मियों के उपस्थिति रजिस्टर भी दिखाने और असल में काम करने वालो के अलग अलग है। सूत्रों की माने तो जो उपस्थिति पंजिका विभाग में तथा अधिकारियो को दिखाने के लिए है वह अलग है तथा वास्तव में काम करने वाले सफाई मजदूरों की अलग है। गोपनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जो पंजिका विभाग में जमा होती है उसके ऊपर नाम ठेकेदारों के हीत मित्र और रिश्तेदारों के नाम है। जिन्हें नियमो के मुताबिक सुविधाए देने की बात होती है। वही वास्तव में स्टेशन पर काम करने वाले सफाई मजदूरों के नाम अलग है।
बताया जाता है कि जिनके नाम रेलवे विभाग के पास है वह कभी सफाई को नही आये। वही दूसरी तरफ जो सफाई करते है उनके नाम विभाग को मालूम ही नहीं है। दूर से देखने में तो अमूमन यह आम सी बात लगती है मगर अन्दर खाते एक बड़े घोटाले का भी इशारा करती है। रेलवे स्टेशन परिसर में वास्तव में सफाई करने वालो को मात्र 3 हज़ार से लेकर 4 हज़ार रुपया प्रतिमाह ठेकेदार द्वारा दिया जाता है, तथा किसी अन्य प्रकार की सुविधा उनको उपलब्ध नही है।
जबकि नियम कहता है कि इस प्रकार के जोखिम भरे कार्यो हेतु श्रम विभाग के नियमावली का स्पष्टता पालन होना चाहिए। इस नियमो में कर्मचारियों के लिए उचित न्यूनतम मजदूरी से लेकर उनके बीमा हेतु भी प्रावधान है। इसका उल्लेख ठेका देते समय ठेके के टेंडर फार्म पर साफ़ साफ़ किया गया है। अब यहाँ ठेकेदार के इस खेल का अलग ही फायदा होगा। नियमो के अनुसार शिकायतकर्ता तो वही होगा जिसको ठेकेदार ने काम पर रखा हुआ है, और यहाँ काम पर जो व्यक्ति कागजों और विभाग की जानकारी में है वह तो कभी काम ही नही करता है तो शिकायत करने का सवाल ही उपलब्ध नही होता है। जो काम कर रहे है वह शिकायतकर्ता हो नही सकते है क्योकि वह विभाग की जानकारी में काम ही नही कर रहे है।
इस सम्बन्ध में जब हमने ठेकेदार से प्रश्न पूछना चाहा तो उन्होंने किसी कार्यक्रम में व्यस्तता की बात कहकर फोन काट दिया। प्रकरण में जब हमने स्टेशन मास्टर से सवाल पूछना चाहा तो उनका कहना था कि मेरे कार्य क्षेत्र के बाहर का मामला है। हम कोई बयान नही दे सकते है। अब सवाल उठता है कि सफाई के दौरान किसी घटना दुर्घटना होने पर स्टेशन मास्टर कैसे खुद की ज़िम्मेदारी से इनकार कर सकते है। वही ठेकेदार तो अपना मुनाफा और खुद के लिए मलाई की व्यवस्था कर ले रहा है। हाई रिस्क के तहत काम करने के लिए रेलवे ट्रैक की भी सफाई होती है। ट्रैक पर सफाई कर रहे कर्मियों की सुरक्षा का आखिर ज़िम्मेदार कौन होगा ? किसी घटना दुर्घटना के मामले में आखिर घटना दुर्घटना का शिकार हुआ व्यक्ति खुद की पहचान कैसे स्पष्ट करेगा ? क्योकि विभाग को प्राप्त सूचनाओं के आधार पर तो वह सफाई के लिए लगा ही नही है।
सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर स्टेशन परिसर में साफ़ सफाई में लगे इन लोगो की खुद की पहचान क्या होगी ? क्या इनके द्वारा कारित किसी घटना पर उनकी शिनाख्त सफाई मजदूर के तौर पर होगी। शायद मुश्किल होगा इन सवालो का जवाब तलाशना, मानननीय उच्च न्यायालय को भले ही रेलवे और सभी नगर इकाइयों ने लिखित दिया हो कि उनके यहाँ मैनुअल स्पेंजर नही है। मगर हकीकत तो ये भी है कि ठेकेदार द्वारा इन सफाई मजदूरों से मैनुअल स्पेंजर के तौर पर भी सफाई करवाया जाता है। फिर इसकी जवाबदेही किसकी होगी।
अब देखना होगा कि खुद की आँखों पर पट्टी बाँध कर बैठे विभाग के ज़िम्मेदार आखिर कब आँखे खोलते है और सफाई ठेकेदार से उसके रजिस्टर के अनुसार कर्मियों से काम करवाने अथवा काम कर रहे कर्मियों के सही नाम विभाग को उपलब्ध करवाने सख्त आदेश देते हुवे वर्तमान में काम कर रहे सफाई मजदूरों को उनका बकाया वेतन उचित दर से दिलवाने का प्रयास विभाग करता है। या फिर करता भी है या नही, अथवा होता है, चलता है के तर्ज पर एक प्रकार का यह शोषण और अंधेर नगरी जारी रहती है।
हम वह नही जो किसी दरोगा के पीछे पीछे घूम कर उसको तेज तर्रार दारोग का लकब देते हुवे हर छोटी बड़ी गतिविधि में अतिश्योक्ति अलंकारो का प्रयोग करते हुवे आपको समाचार बताये, हम सत्य का आईना समाज को दिखाना चाहते है। हमको पता है कि हमारे इस प्रयास से हमारे दोस्तों से अधिक दुश्मन बनते फिरते है। मगर हम इस मामले में अभी और भी बड़े खुलासे करेगे। हमारी मामले में तफ्तीश जारी है। जुड़े रहे हमारे साथ क्योकि कही न कही पिक्चर अभी पूरी ही बाकी है।
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