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अपने ज़िन्दगी का एक-एक लम्हा सिरते मुस्तफा में ढालो : साबेरुल कादरी

प्रदीप दुबे विक्की

भदोही। मर्कज़ी तबलीग सीरत कमेटी द्वारा दो रोजा अज़ीमुशान जश्ने ईद मिलादुन्नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अज़ीमुल्लाह चौराहा ईदगाह में बीती रात सम्पन्न हुआ। जल्से का आगाज़ हाफ़िज़ तबरेज ने अल्लाह की मुक़द्दस किताब क़ुरआने हकीम की तिलावत से की। उसके बाद हज़रते हस्सान रज़ि.की सुन्नत अदा करते हुए शायर इस्लाम ग़ाज़ीपुरी ने मुस्तफा जाने रहमत सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की शाने अक़्दस में अशआर पेश करते हुए पढ़ा की फरिश्ते टूट पड़ें जिस्मे हाज़री के लिए।

कुछ ऐसे बज़्म सजाओ हुजूर आते है। पढ़ा तो सुब्हानल्लाह की सदायें बलन्द होने लगी। उसके बाद शायर फ़ैयाज़ भदोहवी, नेहाल हबीबी, हाजी आज़ाद खां, जावेद आसिम ने शहंशाहे बतहां सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की शान में अपने अशआर के ज़रिये सामेइन तक पहुंचा कर नजरान-ए-अक़ीदत पेश किया। मेंबर नूर पे नायबे रसूल हज़रते अल्लामा मौलाना साबेरुल कादरी ने प्यारे मुस्तफा जाने रहमत स.की सिरते तैयबा पर रौशनी डालते हुए कहा मुस्तफा जाने रहमत स.की एक-एक अदा दुनिया वालो के लिए दर्स है। मौलाना ने कहा की आक़ा अलैहिस्सलाम ने अपने किरदार से अपने अख़लाक़ से ज़मान-ए-जाहिलियत को मजहबे इस्लाम के साँचे में ढाला। क़ुर्बान जाएं प्यारे मुस्तफा जाने रहमत स.पे ज़माना कुफ्रो ज़लालत और शिर्क के अंधेरो में गोता लगा रहा था चारो तरफ बेहयाई आम थी गरीबो मिस्कीनों यतिमो बेवाओ की ज़िंदगियाँ सिसक रही थी ऐसे में अल्लाह ने अपने महबूब को दुनिया में रहमतल्लिलआलमीन बना कर भेजा।

आक़ा ने अपने अखलाके हसना से ज़र्रों को आफ्ताबो माहताब बना दिया किसी को सिद्दिके अकबर बना दिया किसी को फारुके आज़म बना दिया तो किसी को उस्माने गनी बना दिया तो किसी को हैदरे कर्रार बना कर परचमे इस्लाम को बलन्दो बाला कर दिया। तो ये है प्यारे मुस्तफा जाने रहमत स.का अखलाके हसना। नबी ने हमें यही दर्स दिया की अपने अख़लाक़ को बलंदोबाल कर लो तुम्हे कामियाबी अता कर दी जायेगी तुम्हे इज्ज़तों एकराम से नवाज़ दिया जाएगा। कहा आज पूरी दुनिया मजहबे इस्लाम को मिटाने पर तुली है इसलिए कि हम अल्लाह और उसके रसूल की बातों को छोड़ कर दुनिया की बातों पर अमल करने लगे है। जब तक हम मुस्तफा जाने रहमत स. की सीरत पर अमल करते रहे ज़माना हमें सादिक और अमीन के नाम से पुकारती थी आज दुनिया की तमाम बुराइयों को हमने अपना लिया।

हमने कुरआन की तिलावत को छोड़ दिया हमने नमाज़ पढ़ना छोड़ दिया हमारे घर की औरते बेपर्दा हो कर बाज़ारो में घूमती हुई नजर आ रही है। नबी स. की लाडली बेटी सैयदा फातमा रज़ि. की ज़िंदगी को देखो तुम्हारा घर संवरता हुआ नजर आएगा। अपने ज़िन्दगी का एक-एक लम्हा सिरते मुस्तफा में ढालो कामियाबी कदम चूमेगी।

जल्से की सदारत मौलाना फैसल अशरफी ज़ेरे नेज़ामत कारी मुहम्मद आलम ने की। मेंबरे नूर पे जलवागर हाफिज तबरेज़  तथा कमेटी के सद्र हाजी इम्तियाज़ अहमद मौलवी अलाउद्दीन मो.वकील हाजी, मो.इस्माइल महमूद अकबर, जावेद अहमद, महबूब अली, बदरे आलम, शोएब अली, सज्जाद अली आदि लोग रहे

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