आखिर कहा गया कुख्यात अपराधी अज़ीम, आसमान खा गया या ज़मीन निगल गई, जाने अज़ीम की अनटोल्ड स्टोरी Part-2

तारिक़ आज़मी

वाराणसी। वाराणसी पुलिस के लिए सरदर्द बन चूका अज़ीम आज भी एक अबूझ पहेली की तरह है। अज़ीम के नाम पर पुलिस के पास लगभग एक पंद्रह साल करीब पुराना फोटो है। कुछ कही सुनी बाते है। कुछ मुक़दमे है जिनकी फाइल धुल खा रही है। मगर अज़ीम के सम्बन्ध में जो जानकारी पुलिस को होनी चाहिए शायद वो जानकारी पुलिस को नही है वरना अज़ीम कब का सलाखों के पीछे होता।

दिल्ली एनसीआर के खोड़ा कालोनी में हुई छापेमारी की सुचना अज़ीम को आखिर कैसे मिली इसकी जानकारी आज तक पुलिस नही इकठ्ठा कर पाई थी। जबकि उस छापे में सूत्र बताते है कि अज़ीम के वहा होने के सबूत पुलिस के हाथ लगे थे। फिर उसके बाद कोई बड़ी कार्यवाही अज़ीम के ऊपर नही हुई और अज़ीम आज भी वाराणसी पुलिस के लिए एक बिना हल हुवे सवाल के तरह है। शायद पुलिस को उस कालोनी के छापेमारी में जो सबूत हाथ लगे थे वह सबूत लेने के बाद पुलिस टीम ने काफी नजदीकियों से गहनता के साथ विचार किया होता तो अज़ीम शायद सलाखों के पीछे ही रह गया।

कहा गया अज़ीम

खोड़ा कालोनी कालोनी की लोकेशन के बाद पुलिस को अज़ीम की कोई लोकेशन सही नही सही नही मिल सकी, ये कहना गलत होगा, अज़ीम की नेक्स्ट लोकेशन लखनऊ की मिलने के बाद पुलिस ने इलाका छावनी में तब्दील कर दिया था। मगर मुखतार के गैंग में शामिल अज़ीम पुलिस को चकमा देकर आंखो के सामने से ओझल हो गया। ये आत हम नही बल्कि पुलिस सूत्र दबी जुबां से कहते है। मुख़्तार गैंग में शामिल होने के बाद अज़ीम का कद अपराध जगत में ऊँचा हो गया। सूत्र बताते है कि अज़ीम बड़ी घटनाओं पर ही फोकस करने लगा। इसी दरमियान मुख्तार गैग से कुछ दुरी बना कर अज़ीम नेपाल निकल गया।

नकली नोटों का बना सौदागर

सूत्र बताते है कि अज़ीम ने इसके बाद अपने साथी विश्वास नेपाली के साथ मिलकर नेपाल के रास्ते भारत में नकली नोट का कारोबार भी शुरू कर दिया। सूत्रों की माने तो इसके बाद कोंटेक्ट में एक बिल्डर आया और उसके माध्यम से अज़ीम ने अपने साथी विश्वास नेपाली के साथ सेटिंग करके भारत से काफी तय्दात में पुराने करेंसी को नेपाल में मोटे कमीशन पर बदलवाया। यही नहीं इसके संपर्क पर शक की सुई पुलिस को जिसके ऊपर थी उसकी लाइफ स्टाइल देख कर उसकी आमदनी और खर्च के बीच बड़ी खाई का अनुमान आम इंसान लगा सकता है। मगर अगर पुलिसिया भाषा की बात बात करे तो ये कांटेक्ट कभी भी पुलिस के बड़े टारगेट के तौर पर नही सामने आया।

पुराना इश्क अभी तक सलामत है

सूत्र बताते है कि अज़ीम को एक युवती से मुहब्बत हो गई थी। जब युवती के परिजनों को पता लगा तो उन्होंने उसकी शादी कही और तय कर दिया जो अज़ीम को काफी बुरा लगा और सूत्रों के अनुसार उसने ये शादी ही तुडवा दिया। सूत्रों की माने तो अज़ीम की माशूका आज भी उसके कांटेक्ट में है और फेसबुक काल के माध्यम से संपर्क में रहती है। सूत्र बताते है कि अज़ीम उससे अक्सर मिलता भी है। अज़ीम के ऊपर काम तो सीरियस तौर पर कभी पुलिस ने नहीं किया। अतिगोपनीय सूत्र से मिली जानकारी के अनुसार इसकी माशूका लोहता क्षेत्र में कही रह रही है। सूत्र तो यहाँ ये भी कहते है कि ये अपनी मशूका से मिलने आता रहता है।

लॉक डाउन में पुलिस ने बिछाया था जाल, मगर हुआ फुर्र

पुलिस सूत्र की माने तो लॉकडाउन के दरमियान अज़ीम के बनारस में फंसे होने की जानकारी पुलिस को लगी थी। इस दरमियान तत्कालीन एसपी (सिटी) दिनेश सिंह के नेतृत्व में एक टीम का गठन भी हुआ। शहर के तेज़ तर्रार दरोगाओ की टीम बनी। छापेमारी का दौर जारी हुआ। लगभग एक पूरी रात अज़ीम की सुराग लगाती पुलिस को आखरी जानकारी अज़ीम के लोहता क्षेत्र में होने की लगी। वही हमारे सूत्र बताते है कि अज़ीम लोहता क्षेत्र में उस दरमियान फंस गया था और निकल नही पा रहा था।

पुलिस सूत्रों के अनुसार अज़ीम की लास्ट लोकेशन लोहता की मिलने के बाद तत्कालीन लोहता थाना प्रभारी के नेतृत्व में एक मकान पर छापेमारी की कार्यवाही हुई थी। वही सूत्र बताते है कि तत्कालीन लोहता थाना प्रभारी की थोड़ी चुक हुई अथवा सही पुलिस टीम को लोकेशन नही थी। छापेमारी गलत जगह हो गई और इस दरमियान अज़ीम दुबारा पुलिस के हाथो से निकल गया।

कैसा दिखता है अब अज़ीम

सूत्रों की माने तो अज़ीम की जो फोटो पुलिस के पास है वह अब उसके काफी बदला हुआ दिखाई देता है। अज़ीम को अपनी माशूका से जितना इश्क होगा उससे अधिक इश्क उसको अब अपनी ऐठन वाली मुछो से हो चूका है। हाथ पैर से मजबूत कद काठी का दिखाई देता है। एक चालाक अपराधी की तरह कैमरों से बचता रहता है।

किसके रहता है संपर्क में

अति गोपनीय सूत्रों की माने तो अज़ीम के वाराणसी में दो शरणदाता है। एक नई सड़क क्षेत्र का रहने वाला है वही दूसरा नदेसर क्षेत्र का रहने वाला है। कैंट थाना प्रभारी पद पर रहे विपिन राय के टॉप टारगेट में रहा अज़ीम उनके स्थानांतरण के बाद से रडार से धुंधला हो चूका है। सूत्र बताते है कि सफेदपोश शरणदाताओं के कारण पुलिस की निगाह उनके ऊपर नही पड़ पाती है। अज़ीम अपना नेटवर्क चलाता रहता है।

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