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मदरसा जामिया हमीदिया रजविया, मदनपुरा के फतवाबाज़ मौलाना मोईउद्दीन को अधिवक्ता शिशिर सिंह ने कदीमी उर्दू का इस्तेमाल कर बताया शरियत, लीगल नोटिस पाकर मौलाना के फाख्ता हुवे है होश – सूत्र

तारिक़ आज़मी

वाराणसी। मदरसा जामिया हमीदिया मदनपुरा के मौलाना मोईउद्दीन इस समय शहर के मुस्लिम इलाको में चर्चा का सबब बने हुवे है। इसका कारण उनके द्वारा किया गया समाज के हित का कोई कार्य नही बल्कि एक अजीब-ओ-गरीब फतवा है जिसमे उन्होंने शरियत की ठेकेदारी लेते हुवे दालमंडी के एक युवक को धर्म निकाला दे दिया और यहाँ तक कह दिया कि वह दुबारा अपना निकाह करे और जब तक वह ऐसा नही करता तब तक कोई भी मुसलमान उससे बातचीत न करे और कोई रिश्ता न रखे। फ़तवा दालमंडी की पेचीदा दलीलों जैसे गलियों में परचा बना कर तकसीम ऐसे किया गया जैसे मौलाना मोईनुद्दीन द्वारा दिया गया कोई तबर्रुक है।

फतवाबाज़ मौलाना मोईउद्दीन और एक कथित शांति पाठ सामग्री के पर्चे पर फतवा देते है। मौलाना ऐसा लगता है कि जैसे इंतज़ार में रहते हो और तुरंत फतवा जारी कर दे। असल में मौलाना मोईउद्दीन खुद को शायद शरियत का ठेकेदार समझते है और उन्होंने बिना किसी जांच पड़ताल और बिना किसी बात की तस्दीक किया फ़तवा दे डाला। मौलाना का हस्ताक्षरित फतवे की प्रति हमारे पास सुरक्षित है। मौलाना जो शायद जन्नत और जहन्नम तथा शरियत की पूरी ज़िम्मेदारी अपने कंधे पर उठाने को बेताब है ने एक बार भी नही सोचा कि उनके इस तरीके के उल जलूल फतवे का असर किसी की ज़िन्दगी पर पड़ेगा।

क्या है उस कथित शांति पाठ का मामला

असल में एक परचा बिल के तरह है। हमने फतवे की तस्दीक के लिए अपने सूत्रों के माध्यम से फतवे की एक कापी निकलवाया और साथ में उस पर्चे की भी कापी निकलवा लिया जिसके आधार पर मौलाना मोईउद्दीन ने फतवा दे डाला था। दोनों ही हमारे पास सुरक्षित है। हम उस पर्चे की बात करते है जिसके आधार पर मौलाना मोईउद्दीन ने फतवा दे डाला है। परचा “कष्ट मुक्त शिविर एवं जन कल्याण मिशन” नाम से बना हुआ था। जिसके ऊपर नाम की जगह पर अब्दुल साजिद खान उर्फ़ शरीफ लिखा था। वजह में शांति पाठ हेतु लिखा है और साथ में कुछ सामग्री लिखी है जिसको पढ़ कर हंसी भी छुट सकती है। हमको नही मालूम ये सामग्री हवन में इस्तेमाल होती है अथवा नही, क्योकि हमने ऐसे सामग्री से हवन होते पूर्व में कभी नही देखा है। सामग्री में मछली की हड्डी, कुत्ते की हड्डी, गदहा की हड्डी जैसे कई सामग्री लिखी थी और साथ में उसका दाम भी लिखा था।

पर्चे पर कही भी “कष्ट मुक्त शिविर एवं जन कल्याण मिशन” का पता नही लिखा है। सबसे बड़ी बात इस पर्चे पर अब्दुल शाहिद खान उर्फ़ अनीस का नाम एक कोने में महज़ शाहिद लिखा है और उसके ऊपर मोबाइल नम्बर शाहिद की पत्नी का लिखा हुआ है। अब ये परचा कही से भी ये साबित नही करता है कि परचा किसने बनवाया और किसके लिए बनवाया। अगर नाम, पता का जिस तरीके से कालम बना हुआ है उसको देखे तो फिर ये परचा तो अब्दुल साजिद खान उर्फ़ शरीफ द्वारा बनवाया हुआ प्रतीत हो रहा है। बहरहाल, हम इस बहस में नही पड़ते है। मगर ये बात तो पक्की है कि फतवे के लिए ये दलील बेहद ही बचकाना है। शायद मौलाना मोईउद्दीन को चिरागी थोडा ज्यादा मिल गई होगी तो उन्होंने मसले पर गौर करने के बजाये अब्दुल शाहिद खान के खिलाफ फतवा ही दे डाला कि वह अब दुबारा ईमान कबूल करे और अपनी पत्नी से दुबारा निकाह करे।

इधर फतवाबाज़ मौलाना से पीड़ित अब्दुल शाहिद खान उर्फ़ अनीस ने भी कानून का सहारा लिया और अपने अधिवक्ता के माध्यम से एक किता लीगल नोटिस मौलाना सहित साजिद खान, दोनों गवाहों और साथ में प्रबंधक मदरसा जामिया हमीदिया रिजविया को भेज दिया है। नोटिस देते हुवे पीड़ित के अधिवक्ता शिशिर सिंह ने मौलाना को शरियत के मुताल्लिक कई सवाल दाग दिए है। अधिवक्ता शिशिर सिंह द्वारा भेजी गई नोटिस हमने पढ़ी। मैं बार बार अधिवक्ता का नाम लिख रहा हु, इसका कारण है कि लोग नाम में मज़हब तलाश लेते है। फिर इस तलाश के बाद ये भी बता दू कि युवा अधिवक्ता शिशिर सिंह ने इस नोटिस में जिस कदीमी उर्दू का इस्तेमाल किया है वह शायद मौलाना को आईना तो ज़रूर दिखा देगी।

मौलाना मोईनुद्दीन साहब, क्या अब्दुल साजिद खान वाकई में शरीफ है

हम शरियत के ठेकेदार बने मौलाना मोईउद्दीन के फतवे को तलाश रहे थे कि इसी दरमियान क्षेत्र के एक सूत्र ने हमको एक पुराना फतवा थमा दिया जिसको देख कर हम खुद असमंजस में थे कि आखिर मौलाना मोईउद्दीन ऐसे किसी शख्स को फतवा कैसे दे सकते है जिसका खुद का किरदार मरम्मत मांग रहा हो। ये फतवा वर्ष 2005 का है जिसे शहर के कई आलिम-ए-दीन से लिया गया था। असल में अब्दुल साजिद खान उर्फ़ शरीफ ने वर्ष 2005 में अपनी पत्नी को शराब और भांग के नशे में तलाक दे दिया था। ये बात हम नही कह रहे है बल्कि अब्दुल साजिद खान उर्फ़ शरीफ की माँ सैरूननिशा ने अपने तहरीर में लिख कर आलिमो से फतवा लिया था कि उसके बेटे अब्दुल साजिद खान ने तीन तलाक अपनी पत्नी को दे दिया है और कहता है कि वह शराब और भांग के नशे में ऐसा कर गया। साजिद खान की माँ ने आलिमो से जानना चाहां था कि क्या तलाक हो गया या नही। जिसके ऊपर आलिमो ने जवाब दिया था कि बेशक तलाक हो गया है।

अब सवाल ये उठता है कि ऐसे नशेबाज़ व्यक्ति के बात पर खुद को शरियत के बड़े वाले ज़िम्मेदार समझने वाले मौलाना मोईउद्दीन क्या भरोसा कर सकते थे कि वह सही बयान कर रहा है। क्या साजिद के शरीफ होने की वह गवाही दे सकते थे। शायद एकदम नही। मगर मौलाना कहेगे कि हम उसके किरदार को जानते नही थे। तो सवाल ये उठता है कि फिर वो क्या किसी इल्म-ए-गैब से शाहिद के किरदार को जान गए थे कि उसके खिलाफ आरोप लगाने वाला शख्स सही आरोप लगा रहा है। रही गवाही की बात तो पहले ही हम बता चुके है कि गवाह ऐसे गवाही देने से साफ़ साफ़ मना कर चुके है। वैसे बताते चले कि इन गवाहों में एक गवाह सजायाफ्ता गुनाहगार भी है, शायद जिसने अदालत में खुद की सजा से बचने के सब कुछ किया होगा। क्या शरियत ऐसी गवाही की इजाज़त देता है ?

सब मिलाकर मौलाना के साथ साथ फतवा लेने वाले साजिद, दोनों गवाहों और मदरसे के प्रबंधक की मुश्किलें बढती हुई दिखाई दे रही है। क्योकि शाहिद खान ने मुख्यमंत्री को पत्र भेज कर खुद के लिए ऐसे फतवेबाजों से इन्साफ माँगा है। वही पीड़ित अब्दुल शाहिद खाना का आरोप है कि फतवे के आड़ में ये शातिर लोग उसकी पत्नी से “हलाला” के नाम पर दुष्कर्म की साजिश रच रहे है। पीड़ित ने मुख्यमंत्री को शिकायत दर्ज करते हुवे इन्साफ की गुहार लगाई है। वही दूसरी तरफ नोटिस पहुचने के बाद से मौलाना और मदरसे में हडकंप की स्थिति है।

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