शाहीन बनारसी
शेरो-सुख़न की दुनिया में ‘जलील’ मानिकपुरी का नाम काफी अहमियत रखता है। उनका पूरा नाम जलील हसन था। वह मशहूर शायर ‘अमीर’ मीनाई के शिष्य थे। उनकी दो प्रमुख कृतियां ‘जाने-सुख़न’ और ‘सरताजे-सुख़न’ हैं। जलील हसन 1862 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ स्थित क़स्बा मानकपुर में पैदा हुए। उनके दादा का नाम अब्दुर्रहीम और वालिद का नाम अब्दुल करीम था। ये न मालूम हो सका कि उनके पूर्वज मानकपुर में कब और कहाँ से आकर आबाद हुए थे। मानकपुर के मुहल्ला सुलतानपुर में उनका पैतृक मकान था जिससे लगे एक मस्जिद में हाफ़िज़ अब्दुल करीम मानकपुर के रईसों और ज़मीनदारों के बच्चों को क़ुरआन शरीफ़ और दीनियात की शिक्षा देते थे।
शे’र-ओ-शायरी का शौक़ शुरू उम्र से था जिसको लखनऊ के अदबी माहौल ने और उभार दिया। ख़ुद मानकपुर में भी अह्ल-ए-ज़ौक़ हज़रात की अच्छी ख़ासी तादाद मौजूद थी। जलील के बड़े भाई हाफ़िज़ ख़लील हसन ख़लील भी अच्छे शायर थे। उनकी संगत में रह कर जलील ने भी ग़ज़ल कहना शुरू कर दी। माँ-बाप और परिवार वालों ने कभी उनकी शे’री सरगर्मीयों पर एतराज़ नहीं किया। ये दोनों भाई मानकपुर के राजा ताय्युश हुसैन के मुशायरों में भी शिरकत करने लगे और आसपास के मुशायरों में आमंत्रित किए जाने लगे क्योंकि उनका कलाम पसंद किया जाता था। लखनऊ प्रवास के दौरान जलील का परिचय अमीर अहमद मीनाई से हुआ। जलील और ख़लील ने संयुक्त अरज़ी अमीर मीनाई को लिखी कि वो उनकी शागिर्दी में आना चाहते हैं। अमीर मीनाई ने ये अर्ज़ क़बूल कर ली।। पेश है उनके कुछ उम्दा अ’शआर:
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