सोसाइटी रजिस्ट्रार दफ्तर में कालातीत संस्था “बनारस व्यापार मंडल” की फाइल बनी झूठ का पिटारा, ऐसा जमा किये गये दस्तावेज़ पर उठे बड़े सवाल

शाहीन बनारसी

वाराणसी: वाराणसी के सबसे बड़ी मार्किट सराय हडहा, दालमंडी आदि इलाकों के दुकानदारों के हितो की रक्षार्थ मरहूम जियाउद्दीन खान साहब ने एक संस्था बनारस व्यापर मंडल का गठन किया था। इस संस्था के गठन के समय अगर मरहूम जियाउद्दीन साहब को पता होता कि उनकी आँखे बंद होने के बाद इस संस्था की फाइल में झूठ का आडम्बर लगाते हुवे दस्तावेज़ जमा होना शुरू हो जायेगे तो इतनी बात तो पक्की है कि वह इस संस्था का निर्माण ही नही करते।

दरअसल संस्था वर्ष 2004 में गठित हुई थी और वर्ष 2009 में संस्था कालातीत हो गई। संस्था के पत्रावली का इसके पूर्व भी हमारे द्वारा अवलोकन नियमानुसार अधिवक्ता के माध्यम से करवाया गया था और संस्था की पत्रावली में किसी प्रकार का कोई भी दस्तावेज़ अथवा किसी प्रकार के चुनावी प्रक्रिया का ज़िक्र अथवा कोई भी बैठक से सम्बन्धित कागजात नही जमा थे। मामला तो तब उछला जब इस संस्था के हुवे कथित चुनाव को लेकर सवाल खड़े हुवे और हमारे द्वारा खबर का प्रकाशन किया गया। फिर क्या था एक भागदौड़ सोसाइटी रजिस्ट्रार के दफ्तर में शुरू हो जाती है। बात आई और गई हमारे लिए हो जाती है और हम अपने कार्यो में व्यस्त हो जाते है बकिया अपने कार्यो में व्यस्त रहते है।

कैसे खुला मामला ?

मामला तो दुबारा तब सामने आया जब आरटीआई से एक सुचना सामने आई कि इस संस्था के कालातीत होते हुवे भी एक रजिस्ट्रार दफ्तर में वर्ष 2009 वर्ष 2014 और वर्ष 2019 के चुनाव और कार्यकारिणी की सुचना उपलब्ध है। हमारी कौतुहल बढ़ जाती है और हमने अपने एक सहयोगी के साथ नियमानुसार पत्रावली के अवलोकन हेतु रसीद संख्या 037882 कटवा कर 50 रुपया फीस जमा किया और पत्रावली का अवलोकन किया। इसके बाद जो जानकारी निकल कर सामने आई वह वाकई चौकाने वाली ही थी। सबसे बड़ा सवाल तो रजिस्ट्रार दफ्तर पर उठ रहा है।

क्या है बड़े सवाल जिसका नही मिल सका जवाब ?

पत्रावली के अवलोकन से ज्ञात हुआ कि दिनांक 5/11/2022 को प्राप्ति संख्या 9813 माध्यम से कुछ दस्तावेज़ दफ्तर को उपलब्ध करवाया गया। जिसमे सभी दस्तावेज़ पर महज़ 4 लोगो के हस्ताक्षर है। जिसमे दो हस्ताक्षर स्पष्ट है पहला वारिस खा और दूसरा समर खा। बकिया दो हस्ताक्षर किसके है यह स्पष्ट तो नही है। मगर दस्तावेज़ के अनुसार खुद को स्वयंभू अध्यक्ष और महामंत्री घोषित करने वालो के हो सकते है। कार्यकारिणी का जो विवरण प्रस्तुत किया गया है उसके वर्ष 2009, वर्ष 2014, वर्ष 2019 में चुनाव दिखाया गया। कार्यकारिणी की लिस्ट भी है और तीनो चुनाव में अध्यक्ष जियाउद्दीन खान है तथा महामंत्री मो0 असलम है।

सबसे बड़ा सवाल ये था कि इन तीनो चुनावो में जो घोषणा और बैठक का विवरण प्रदान किया गया है वह सभी विवरण इन चार हताक्षर से प्रदान किया गया है। अब सवाल ये उठता है कि जब इन तीनो चुनाव में अध्यक्ष जियाउद्दीन खान और महामंत्री मो0 असलम चुने गए और प्रस्तुत दस्तावेज़ में उनके हस्ताक्षर क्यों नही है। वर्ष 2019 तक जियाउद्दीन खान साहब हयात में थे, उनके हस्ताक्षर क्यों नही है।

बहरहाल, अभी रुके कहानी में असली ट्वीस्ट तो अभी बाकी है। कहानी में असली ट्वीट इस संस्था के एक बैठक दिखा कर दाखिल पत्र में दिया गया है। पत्र के अनुसार 14 जून 2022 को संस्था की साधारण सभा की बैठक 12 बजे दोपहर में उपाध्यक्ष वारिस बबलू के आवास पर होती है जिसमे वर्त्तमान में स्वयंभू घोषित सज्जन अपने को अध्यक्ष बनाये जाने की संस्तुति मिलने का दावा करते है। इस पत्र पर भी वही चार हस्ताक्षर है। जिसमे दो तो स्पष्ट नही है और दो है समर खान और वारिस खान। अब सवाल ये उठता है कि जो महामत्री मोहम्मद असलम वर्ष 2009 से लेकर अब तक किसी बैठक में हस्ताक्षर करने को उपलब्ध नही था ऐसे महामंत्री को संस्था ने हटाया क्यों नही?

इसके बाद 29 जून 2022 को एक अन्य बैठक इन्ही 4 लोगो के हस्ताक्षर से दिखाया गया है और वर्त्तमान में खुद को कथित चुनाव में जीता घोषित करने वाले महामंत्री को विशिष्ठ सदस्यता दिलाये जाने की बात कही गई है। अब बात ये है कि जो विशिष्ठ सदस्य 29 जून को हुवे और जो जून 2022 में ही अध्यक्ष नियुक्त हो चुके है तो फिर ये जो हो हल्ला करने के बाद चुनाव अगस्त माह में हुआ और भारी पुलिस बल की मौजूदगी थी, वह चुनाव किस संस्था का था और जब इस संस्था का चुनाव नही था तो फिर पुलिस बल उपलब्ध करवाने का निवेदन किसने किया और कौन जवाबदेह होगा कि इतने पुलिस फ़ोर्स का एक दिन का वेतन और अन्य खर्च का। किसकी जवाबदेही है आखिर। क्या कानूनी सलाहकार ने यह नही बताया था कि गलत भी ऐसे किया जाता है जो पहली ही नज़र में न दिखाई दे जाये कि यह गलत है।

जमा आय व्यय कहता है दाल में कुछ काला है

अब बात संस्था के आय व्यय कि करते है तो आय-व्यय का हिसाब वर्ष 2004 से लेकर अब तक का जमा है। कोई सीए वेरिफाइड नही है तो फिर उसके लिए सवाल उठाना गैर ज़रूरी है कि सीए से क्यों नही प्रमाणित है। क्योकि 50 हज़ार से कम आये के लिए सीए के प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नही होती है। ये नियम कहता है। मगर नियम के साथ ही यह भी है कि आय-व्यय का लेखा-जोखा अध्यक्ष, महामंत्री और कोषाध्यक्ष के संयुक्त हस्ताक्षर से जमा होता है। जिन तीन की जवाबदेही बनती है। अब बात ये है कि वर्ष 2004 से लेकर अब तक के आय-व्यय का लेखा जोखा यही चार हस्ताक्षर जिनमे वारिस, समर खान और दो अस्पष्ट है के हस्ताक्षर से जमा है।

इसमें न तो महामंत्री का हस्ताक्षर है और न तत्कालीन अध्यक्ष का हस्ताक्षर है। क्योकि अध्यक्ष जियाउद्दीन खान साहब का इन्तेकाल तो वर्ष 2021 में हुआ है। ऐसे में उनके हस्ताक्षर तो तब तक रहने चाहिए थे। हस्ताक्षर के तौर पर तत्कालीन कार्यालय मंत्री, उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष के हस्ताक्षर है। चौथा अस्पष्ट हस्ताक्षर जिसके होने के प्रतीत हो रहे होंगे वह सज्जन उस समय तो नाबालिग रहे होंगे। फिर फिर 19 साल पहले के दस्तावेज़ वह कैसे वर्त्तमान में प्रमाणित कर सकते है ? जबकि यह और कोई नही बल्कि आय-व्यय का विवरण है जिसकी जवाबदेही आयकर विभाग तक मांग सकता है।

आखिर ऐसी जल्दी क्यों ?

दरअसल संस्था के महामंत्री मो0 असलम ने रजिस्ट्रार से शक ज़ाहिर करते हुवे पत्र लिखकर प्रत्यावेदन किया कि उनकी संस्था कालातीत हो चुकी है और संस्था पर कतिपय लोग कब्ज़ा करना चाहते है। इसलिए संस्था को डिजाल्व कर दिया जाए। यह पत्र 3 नवम्बर को लिखा गया था और 9 नवम्बर को रजिस्ट्रार दफ्तर इसकी प्राप्ति दिखा रहा है। वही साथ ही कई अन्य संस्थापक सदस्यों ने इसी आशय का पत्र लिखा था। जिसके बाद जल्दबाजी में काफी कुछ दस्तावेज़ एक साथ हस्ताक्षर हो गये होंगे।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *