अदालत का हुक्म: दरोगा युद्धिष्ठिर सिंह ने किया था 31 साल पहले बरेली में फेक एनकाउंटर, दरोगा को उम्र कैद की सुनाई अदालत ने सजा

एच0 भाटिया

बरेली: बरेली में 31 साल पहले हुए फर्जी एनकाउंटर मामले में अदालत ने दरोगा युद्धिष्ठिर सिंह को कसूरवार ठहराते हुवे उम्र कैद की सज़ा मुक़र्रर किया है। अदालत ने फेक एनकाउंटर करने वाले दरोगा युद्धिष्ठिर सिंह को इसके साथ ही 20 हजार का जुर्माना भी लगाया है। बता दें कि इस मामले में कोर्ट ने 28 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

प्रकरण वर्ष 1992 की 23 जुलाई का है। तब दरोगा युधिष्ठिर सिंह ने अपनी शिकायत में बताया था कि वह बड़ा बाजार से सामान खरीद कर वापस लौट रहा था। पिंक सिटी वाइन शॉप के सेल्समैन से कुछ लोग झगड़ा कर रहे थे। ये देख दरोगा ने बीच-बचाव की कोशिश किया तभी एक शख्स ने उस पर गोली चला दी। लेकिन निशाना चूक गया। इसके बाद दरोगा ने आत्मरक्षा में गोली चलाई। गोली साहूकारा के रहने वाले मुकेश जौहरी उर्फ लाली को लगी। जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया। अस्पताल पहुंचने से पहले लाली की मौत हो गई।

दरोगा की शिकायत पर कोतवाली में लाली समेत 2 अज्ञात लोगों के खिलाफ लूट और जानलेवा हमला करने का मुकदमा दर्ज किया गया था। इसके बाद लाली के परिजनों ने मामले को झूठा बताते हुए आरोपी दरोगा युधिष्ठिर सिंह के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग की थी। लेकिन मुकदमा दर्ज नहीं हुआ। मगर मृतक लाली के परिजनों ने हिम्मत नही हारी और लाली के मौत का इन्साफ लेने के लिए एक-दो नही बल्कि पुरे 5 साल कानूनी लड़ाई लड़ा जिसके बाद सीबीसीआईडी जाँच का हुक्म सुप्रीम कोर्ट से हुआ था। मुल्क की सबसे बड़ी अदालत के ज़रिये बेटे की मौत का इन्साफ पाने के लिए लाली की माँ ने कोई कोर कसर नही छोड़ी।

कैसे आया दरोगा युद्धिष्ठिर सिंह का झूठ सामने

मामले में जब सीबीसीआईडी ने जांच शुरू किया तो जाँच में निकल कर सामने आया कि जिस समय यह कथित एनकाउंटर हुआ था उस समय दरोगा आन ड्यूटी नही था। उसने अपने सरकारी रिवॉल्वर का दुरुपयोग किया था। जांच में यह बात सामने आने के बाद सीबीसीआईडी इंस्पेक्टर शीशपाल सिंह की शिकायत पर 20 नवंबर 1997 को दरोगा युधिष्ठिर सिंह के खिलाफ हत्या और षड्यंत्र रचने का मामला दर्ज हुआ जिसके बाद जांच आगे बढ़ी।

जाँच अधिकारी ने जब दरोगा युधिष्ठिर सिंह का बयान लिया और एनकाउंटर के बयान को भी देखा तो दरोगा युद्धिष्ठिर सिंह ने बयान में कहा था कि मुठभेड़ के दौरान उसने लाली को सामने से गोली मारी थी। लेकिन जब शव का पोस्टमार्टम कराया गया तो गोली लाली के पीठ में लगी पाई गई थी। जिससे पता चला कि दरोगा ने अपना बयान गलत दर्ज करवाया था। शासकीय अधिवक्ता ने इस मामले में 19 गवाहों को कोर्ट में पेश किया था। हत्या के मामले में जमानत के बाद से दरोगा फरार हो गया था। कोर्ट ने उसके विरुद्ध गैर जमानती वारंट और कुर्की की कार्रवाई के आदेश भी पुलिस को दिए थे जिसके बाद वह हाजिर हुआ था।

लाली के बड़े भाई अनिल जौहरी ने बताया कि इस इंसाफ के इंतजार में मां चंदा, उनके बड़े भाई अरविंद, पंकज और आशीष की मौत हो चुकी है। उन्होंने कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई है। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने सबूतों के आधार पर जो सजा आरोपी को दी है उससे परिवार संतुष्ट है। उन्हें 31 साल बाद इन्साफ मिला है।

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