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शबाब खान की कलम से – कही यह बड़े खतरे की चेतावनी तो नहीं

शबाब ख़ान

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में आए भूकंप से हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट (एचएफटी) ने आने वाले समय के संकेत देने शुरू कर दिए हैं। इंडियन प्लेट यूरेशियन प्लेट के जितने नीचे धंसती जाएगी हिमालयी क्षेत्र में भूकंप के झटके तेज होते जाएंगे। यहां भूगर्भ में भर रही ऊर्जा नए भूकंप जोन भी सक्रिय कर सकती है और इसकी संवेदनशीलता भी बढ़ सकती है। स्थिति को भांपकर वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान ने हिमालयी क्षेत्र में भूकंप की तरंगे मापने वाले 10 ब्रॉड बैंड सीइसमोग्राफ संयंत्र लगा दिए हैं।
इंडियन और यूरेशियन प्लेट में चल रही टकराहट से हिमालयी पट्टी (एचएफटी) में बड़े पैमाने पर ऊर्जा भर रही है। यह दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। नीचे ऊर्जा का दबाव बढ़ने पर हजारों सालों से हिमालयी क्षेत्र में सुसुप्तावस्था में पड़ी भूकंप पट्टियां सक्रिय हो गई हैं। ये कभी ऊर्जा के बाहर निकलने का रास्ता बन सकती हैं जिसकी वजह से लोगों को और तेज झटके लगेंगे।
इसके साथ ही बड़े भूकंप की शक्ल में ऊर्जा बाहर निकल सकती है। 16 दिसंबर को सेंस फ्रांसिस्को अमेरिका में हुई जियो फिजिकल यूनियन की कॉंफ्रेंस में कहा गया कि हिमालयी क्षेत्र में रिक्टर स्केल पर 9 की तीव्रता वाला भूकंप आ सकता है। वर्ष 1950 में असम के बाद रिक्टर स्केल पर 8 से अधिक तीव्रता वाला कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है। विज्ञानियों का मानना है कि चूंकि हिमालयी भूगर्भ में ऊर्जा भरने का सिलसिला लगातार जारी है। इससे भूकंप के खतरे अप्रत्याशित रूप से और बढ़ सकते हैं। इससे नए संवेदनशील जोन बनेंगे।
अमूमन भूकंप आने के बाद भूकंप की संवेदनशीलता तय की जाती है। अभी उत्तराखंड चार और पांच सीइसमिक जोन में आता है, लेकिन हालात इसमें बदलाव कर सकते हैं। पूरे हिमालयी क्षेत्र में लगभग चार हजार भूकंप पट्टियां चिन्हित की गई हैं। हर झटका इन्हें और सक्रिय करता जाएगा। वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान के विज्ञानी रुद्र प्रयाग के भूकंप के केंद्र का पता करके अन्य संवेदनशील स्थानों की भी जांच कर रहे हैं। संस्थान की सीइसमिक स्टडी में हिमालय पट्टी (एचएफटी) का पूरा क्षेत्र भूगर्भीय ऊर्जा से लॉक है।
विज्ञानी अंदाज नहीं लगा पा रहे हैं कि यह ऊर्जा कहां से निकलेगी। उसी लिहाज से नए जोन चिन्हित होंगे। उत्तराखंड सहकारिता आपदा पुनर्वास प्रबंधन के पदाधिकारी एसए अंसारी का कहना है कि हिमालयी क्षेत्र में जिस तरह ऊर्जा लॉक है, उससे बड़े भूकंप की आशंका बनी हुई है।
भूकंप एक नजर: उत्तरकाशी में 1803 में बड़ा भूकंप आया जिससे बड़े पैमाने पर नुकसान मापा नहीं गया, 1905 में कांगड़ा में 7.8 तीव्रता का भूकंप, 1950 में असम में रिक्टर स्केल पर 8 की तीव्रता वाला भूकंप आया, 1975 में किन्नौर में 6.8 तीव्रता का भूकंप, 1991 में फिर उत्तरकाशी में औसत तीव्रता का भूकंप आया, 1950 से अब तक हिमालयी क्षेत्र में 430 भूकंप के झटके लगे।
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