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तारिक आज़मी की मोरबतिया – पत्थरदिल सम्भल पुलिस का एक और अमानवीय चेहरा, बिना तिरंगे के दिली शहीद सिपाहियों को सलामी

तारिक आज़मी

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और मुगलिया हुकूमत के आखरी चश्म-ओ-चराग बहादुर शाह ज़फर का आज एक शेर ज़ेहन में दौड़ रहा है। कितना मजूर है ज़फर अपने दफ़न के लिये, 2 गज़ ज़मी भी न मिली कुए यार में। यह शेर बहादुर शाह ज़फर ने अपनी ज़िन्दगी के आखरी मरहले में लिखा था। इस शेर के लिखने के कुछ दिनों बाद ही उनकी मौत हुई थी और ब्रिटिश हुकूमत ने उनको रंगून में ही सुपुर्द-ए-खाक कर दिया था। आज का मसला कुछ हद तक इससे मिलता जुलता है। मामला यहाँ अंतिम संस्कार से ही जुड़ा हुआ है। मगर विभागीय लापरवाही या फिर कह सकते है उदासीनता का एक बड़ा उदहारण भी इसको कहा जा सकता है।

कल शाम सम्भल में 2 पुलिस कर्मियों की हत्या कर 3 कैदी बंदी वाहन से फरार हो गये थे। उत्तर प्रदेश में अपराधियों द्वारा पुलिस को दिलती चुनौतियों में से एक चुनौती यह भी है। इस पुरे घटनाक्रम में उत्तर प्रदेश पुलिस के दो कांस्टेबल शहीद हो गए। आन ड्यूटी खुद का फ़र्ज़ निभाते हुवे बावर्दी अपनी आखरी सांसे लेने वाले बिजनौर निवासी हरेन्द्र और ब्रजपाल को जिस प्रकार से सम्मान मिलना चाहिये था वैसा सम्मान शायद उनको नही मिला और सम्भल पुलिस का एक अमानवीय ऐसा चेहरा अचानक उभर कर सामने आया जो खुद अपने विभाग के लोगो को सम्मान नही दे सका।

बिजनौर जिले के निवासी हरेन्द्र और ब्रजपाल पुलिस लाइन में पोस्टेड थे और उनकी ड्यूटी कैदियों को जेल से पेशी पर ले जाने और ले आने की थी। जब दोनों बहादुर सिपाहियों ने उत्तर प्रदेश पुलिस ज्वाइन किया होगा तो अन्य पुलिस कर्मियों के तरह उनकी भी आँखों में यही सपना रहा होगा कि अपनी कर्त्तव्य निष्ठां के साथ अपना कार्य करते रहे भले इसके लिए खुद की जान क्यों न चली जाये। विधि को शायद मंज़ूर भी यही रहा होगा और कल मामूर के हिसाब से कैदियों को लाते समय तीन कैदियों ने उन दो पुलिस कर्मियों के आँखों में पहले मिर्च झोकी और फिर उनको गोली मार कर हत्या कर फरार हो गये।

अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करते हुवे दोनों पुलिस कर्मीयो ने अपनी जान गवा दिया था। मगर विभाग के द्वारा उनकी मौत को जो सम्मान दिलना चाहिये था वह उनके नसीब में शायद नही था। पहला अमानवीय चेहरा विभाग का तब सामने आया जब कल उनके शव को अस्पताल लाने के लिए सम्भल पुलिस को शव वाहन अथवा एम्बुलेंस नही मिल सकी और एक लोडर टेम्पो से लाद कर शव को अस्पताल लाया गया। इसके बाद विभाग ने खुद का दिल पत्थर का है दिखाते हुवे साथी पुलिस कर्मियों ने एक स्ट्रेचर तक की व्यवस्था नही किया और शव को घसीट कर उतारा गया। इसका वीडियो वायरल होने के बाद सम्भल पुलिस की मीडिया ने जमकर इसको उछाला।

इस फजीहत के बाद भी सम्भल पुलिस है कि खुद को बदलने का नाम ही नहीं लिया उसने। आज दोनों शहीद सिपाहियों का अंतिम संस्कार ससम्मान करने के उच्चाधिकारियों के आदेश के बाद भी सम्भल पुलिस अपनी लापरवाह और पत्थर दिल होने का मुजाहिरा करने से बाज़ नही आई। दोनों शहीद सिपाहियों के शव को सलामी देते समय तिरंगा भी नहीं नसीब हुआ और इसी तरह शवो की अर्थी को रखकर उसके बगल में धुपबत्ती दिखा कर शव को सलामी दे दिया गया।

क्या कहता है नियम

शहीद पुलिसकर्मियों के शव सलामी देते समय नियमानुसार तिरंगा झंडा रखा जाता है। अगर नियमो को आधार माने तो सलामी तिरंगे झंडे को दिया जाता है। इन समस्त कार्यो के लिए हर जिले में एक विशेष पद सृजित किया गया है जिसे आरआई कहा जाता है। आरआई का अर्थ होता है रिज़र्व इन्स्पेक्टर। जवाबदेही भी आरआई की ही होती है।

इस सम्बन्ध मे हमने प्रदेश के कई आरआई से अपनी जानकारी को सुनिश्चित करने के उपरांत आरआई सम्भल जोशी जी से उनके सीयुजी नंबर पर संपर्क किया। बातचीत में जोशी जी एक अनुभवी इन्स्पेक्टर नज़र आ रहे थे। मगर जब हमने इस सम्बन्ध में सवाल किया तो जोशी जी ने इस प्रकार की जानकारी होने से ही मना कर दिया। उन्होंने हमसे फोन पर बातचीत में कहा कि “इस बात की जानकारी हमको नहीं है। मैं जानकारी प्राप्त कर लेता हु।” अब सवाल उठता है कि जानकारी अब प्राप्त करके जोशी जी कर क्या सकते है। मृतक दोनों सिपाही तो पंचतत्व में विलीन हो चुके है।

घटना के बाद से अपने पुलिस कर्मियों के शव के साथ इस प्रकार का अमानवीय व्यवहार सम्भल पुलिस के द्वारा किया जाना केवल सम्भल में ही नही बल्कि नेशनल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बना हुआ है। आखिर अपने ही साथी की मौत के बाद भी पुलिस कर्मियों द्वारा इस प्रकार का अमानवीय बर्ताव करके क्या साबित करना चाहती है सम्भल पुलिस ? क्या वह यह दिखाना चाहती है कि उसका दिल पत्थर का हो चूका है।

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