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विश्व जल दिवस पर तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ – न आबशार, न सहरा लगा सके क़ीमत;हम अपनी “प्यास” को ले कर, दहन में लौट आए…!

तारिक़ आज़मी

आज विश्व जल दिवस ख़त्म हो चला है. इस मौके पर हर शहरों में ही मंच सजे होंगे. मंचो से भाषण हुआ होगा. खूब तालियों की गडगडाहट के बीच मंच पर पानी की बोतले रख दिया गया होगा. जिसको प्यास लगी होगी वो एक लीटर की बोतल से चंद घूंट पीकर बोतल रख दिया होगा. फिर कार्यक्रम खत्म हुआ होगा और लोग वैसे ही बोतलों में पानी बचा हुआ छोड़ कर चले गए होगे. ये अमूमन आपको रोज़मर्रा दिखाई देता होगा.पानी के महत्व को दुनिया समझने को तैयार ही नही है. उनको लगता है कि इतना बड़ा समंदर उनकी तिश्नगी को नही बुझा सकता है क्या ? शायद उनको ये नही मालूम कि पूरा समंदर मिलकर भी एक बूंद पानी की तिश्नगी को बुझाने में नाकाम है.

दुनिया में जितने पानी है उनमे सिर्फ और सिर्फ 1% ही पीने लायक है. मगर हम उसका ख्याल भी कितना रख रहे है. पानी की क्या वसत है सोच कर हम पानी को बेतहाशा बहा रहे है. शावर के नीचे खड़े होकर हम अपनी टेंशन को मिटाने के लिए उतना पाने बहा देते है जितने में एक छोटे गाव की तमाम तिश्नागियाँ बुझ जाए. मगर हमको तो टेंशन मिटानी है तो थोडा पानी सर पर पड़ेगा और टेंशन हमारी पानी से धुल कर नाले में बह जाएगी.

क्या है विश्व जल दिवस का इतिहास

पानी की बर्बादी को रोकने, इसकी अहमियत को समझाने और लोगों को साफ़ पानी मुहैया कराने के लिए हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाता है. 1992 में रियो डि जेनेरियो में आयोजित पर्यावरण तथा विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान विश्व जल दिवस की पहल की गई थी. इसके बाद पहली बार 22 मार्च 1993 को विश्व जल दिवस मनाया गया. इसके बाद पूरी दुनिया में यह 22 मार्च को मनाया जाता है. भाषण, कविताओं और कहानियों के माध्यम से लोगों को जल संरक्षण और इसका महत्व समझाने की कोशिश की जाती है. तमाम तरह की तस्वीरें और पोस्टर साझा किए जाते हैं जिनका लक्ष्य लोगों को पानी की अहमियत को समझाना होता है.

दुनिया में पानी की किल्लत देखते हुए करीब 32 साल पहले ही ये भविष्यवाणी कर दी गई थी कि अगर वक्त रहते इंसानों ने पानी की अहमियत को नहीं समझा तो अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा. बताया जाता है कि ये भविष्यवाणी संयुक्त राष्ट्र के छठे महासचिव बुतरस घाली ने की थी. उनके अलावा 1995 में वर्ल्ड बैंक के इस्माइल सेराग्लेडिन ने भी विश्व में पानी के संकट की भयावहता को देखते हुए कहा था कि इस शताब्दी में तेल के लिए युद्ध हुआ लेकिन अगली शताब्दी की लड़ाई पानी के लिए होगी. वहीं एक बार संबोधन के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोगों को चेताते हुए कहा था कि ध्यान रहे कि आग पानी में भी लगती है और कहीं ऐसा न हो कि अगला विश्वयुद्ध पानी के मसले पर हो.

शायरों के लिए पानी हमेशा से रहा है अशआर के लिए एक खुबसूरत लफ्ज़

शायरों के लिए अशआर में पानी हमेशा से उनको अपने तरफ मुतास्सिर करता रहा है. कई शायरों ने पानी को अलग अलग अंदाज़ में पेश किया. इस सभी के साथ सबसे खुबसूरत शेर मशहूर शायर अमीर इमाम ने क्या खूब पानी पर एक शेर कहा है “कि जैसे कोई मुसाफ़िर वतन में लौट आए. हुई जो शाम तो फिर से थकन में लौट आएन आबशार न सहरा लगा सके क़ीमतहम अपनी प्यास को ले कर दहन में लौट आए.एक और शायर ने पानी की एक बूंद को समंदर की मिसल देते हुवे कहा है कि “कतरा न हो तो बहर न आये वजूद में,पानी की एक बूंद समंदर से कम नही.” वही आरजू लखनवी ने अपने कलाम में पानी के लफ्ज़ को हुस्न से जोड़ कर देखा है.

उन्होंने कहा कि “किस ने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी, झूम के आई घटा टूट के बरसा पानी. इस सबके बीच एक बेहद खुबसूरत शेर बशीर बद्र साहब का है. उन्होंने बहुत दूर तक की बात उन्होंने चंद लफ्जों में कहते हुवे लिखा है कि “अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना, हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है.”मॉडर्न जमाने के शायर कहे जाने वाले मरहूम राहत साहब ने कहा कि “मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया, इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए.” इस पर आनिस मुइन ने भी खुबसूरत शेर लिखा था और कहा था कि “वो जो प्यासा लगता था सैलाब-ज़दा था, पानी-पानी कहते-कहते डूब गया है.” मशहूर शायर नुह नारवी ने लिखा है कि “हम इंतिज़ार करें हमको इतनी ताब नहीं, पिला दो तुम हमें पानी अगर शराब नहीं.”

 ध्यान रखियेगा कि हम आने वाले वक्त में पानी की किल्लत देने जा रहे है. हमको पानी का संरक्षण करना चाहिए और उसको व्यर्थ नही बहाना चाहिए. कभी उन इलाको में भी जाकर देखे जहा पानी के लिए लोग कोसो दूर तक जाते है तब कही उनके गले में उमड़े सहरा में पानी के चंद कतरे उनकी तिश्नगी कम कर पाते है. ख्याल रखे और पानी के अहमियत को समझे. उसे व्यर्थ न बहाये. सफ़र तवील बहुत था किसी की आँखों तक, तो उस के बाद हम अपने बदन में लौट आए. कभी गए थे हवाओं का सामना करने, सभी चराग़ उसी अंजुमन में लौट आए. अब बाते आपको हमारी खुबसूरत लगे तो कमेन्ट बाक्स का इस्तेमाल करे और अगर खुबसूरत न हो तो पडोसी के कमेन्ट बाक्स में जाकर उनसे कमेन्ट कर डाले. भले ही “पान खाकर थूकना मना है लिखे, मगर पानी को संरक्षित करे. शुक्रिया.

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  • Great
    पानी का संरक्षण की पहल अगर इस युग मे न कि गई तो आने वाली पीढ़ी को एक बूंद पानी एक रुपया में मिलेगा लोग अपनी प्यास को एक बूंद पीकर ही संतुष्ट कर लेंगे,हो सकता आने वाले युग मे एक कीमती हीरे की जगह एक पानी की बूंद ले ले....

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