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वाराणसी – जमकर गरजा वीडीए का बुलडोज़र, अधूरे सवालो के बीच अर्धनिर्मित मकान हो रहा है ज़मिदोज़

तारिक़ आज़मी

वाराणसी। वाराणसी के आदमपुर थाना क्षेत्र के कोयाला बाज़र स्थित एक विवादित मकान पर वाराणसी विकास प्राधिकरण का जमकर बुलडोज़र गरजा। भवन स्वामी सुरेश गुप्ता उर्फ़ टुनटुन के इस भवन संख्या A24/67 पर इसके पूर्व में भी वाराणसी विकास प्राधिकरण ने 7 जनवरी को कार्यवाही करते हुवे भवन के कुछ निर्मित हिस्सों को तोडा था। आज इस कड़ी में पुरे भवन को ज़मिदोज़ करने के लिए ही सुबह से वाराणसी विकास प्राधिकरण की टीम आदमपुर की जोनल हेड के साथ मौके पर मय बुलडोज़र पहुची और तोड़फोड़ शुरू कर दिया। इलाके में शांति व्यवस्था इस दरमियान बनाये रखने के लिए थाना प्रभारी आदमपुर सिद्धार्थ मिश्रा अपने दल बल के साथ उपस्थित रहे।

बताते चले कि इसी भवन पर विकास प्राधिकरण के द्वारा बिना नक्शा पास करवाये निर्माण के विरुद्ध 7 जनवरी को भी कार्यवाही किया गया था और भवन के निर्मित खंड को आंशिक रूप से तोडा गया था। उस तोड़फोड़ के दरमियान भवन स्वामी सुरेश गुप्ता उर्फ़ टुनटुन अस्पताल में भर्ती थे। परिजनों के आरोपों को माने तो इस कार्यवाही का उनको सदमा लगा था। जिसके 2 दिनों ही सुरेश गुप्ता की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद मामला ठन्डे बस्ते में था और प्रकरण में न कोई निर्माण हो रहा था और न ही तोडा जा रहा था।

इसी बीच प्राधिकरण ने आज अपनी कार्यवाही आगे बढाते हुवे अर्धनिर्मित इस भवन पर सुबह से ही बुलडोज़र चलवाना शुरू कर दिया। विकास प्राधिकरण की इस कार्यवाही के दरमियान भले शांति व्यवस्था बरक़रार रखने के लिए स्थानीय थाना प्रभारी सिद्धार्थ मिश्रा अपने दल बल के साथ उपस्थित रहे, मगर भवन स्वामी के परिवार से कोई भी मौके पर नही आया और शांति पूर्वक माहोल में विकास प्राधिकरण कार्यवाही कर रहा है। इस दरमियान भले विकास प्राधिकरण का बुलडोज़र जमकर गरज रहा है मगर सवाल काफी अनसुलझे है।

विकास प्राधिकरण के दावो को अगर आधार माने तो उसके अनुसार A24/67 के स्वामी सुरेश गुप्ता उर्फ़ टुनटुन द्वारा बिना नक्शा पास करवाए अथवा वीडीए की अनुमति के बगैर ही इस भवन का निर्माण करवाया था। प्राधिकरण को इस सम्बन्ध में कई शिकायते मिल रही थी। इस क्रम में प्राधिकरण द्वारा कई बार नोटिस जारी करके भवन स्वामी को उसका पक्ष रखने की सुचना दिया। अंततः भवन स्वामी द्वारा उपस्थित न होने की स्थिति में विकास प्राधिकरण ने अवैध रूप से बने भवन को तोड़ने का निर्देश जारी कर दिया। इस निर्देश के क्रम में पहले 7 जनवरी को ध्वस्तीकरण की कार्यवाही किया गया था। इसके बाद आज दुबारा फिर से कार्यवाही हुई है।

अनसुलझे सवाल

विकास प्राधिकरण की इस कार्यवाही पर कई सवाल अनसुलझे अभी तक है। सर्वप्रथम सवाल तो खुद प्राधिकरण को अपने से ही पूछना चाहिए था कि माना बिना नक़्शे के निर्माण कार्य हुआ था। ये निर्माण कोयाला बाजार-मछोदरी के मुख्य मार्ग पर स्थित है। कोई छोटी सी सकरी सी गली नही है जिसमे निर्माण हो रहा हो। निर्माण महीने नहीं बल्कि महीनो चला है। इसको आप साल से अधिक कह सकते है। फिर स्थानीय विकास प्राधिकरण के कर्मचारियों के आँखों पर कौन सी पट्टी बंधी थी कि तीन फ्लोर का निर्माण होता रहा और विकास प्राधिकरण के कर्मचारियों को तब तक नही दिखाई दिया जब तक क्षेत्र के ही निवासी कुछ पट्टीदारो के द्वारा निर्माण पर आपत्ति नही दर्ज करवाई गई।

एक बारगी पहले विकास प्राधिकरण को अपने कर्मचारियों की इस लापरवाही पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है। यदि कोई निर्माण अवैध रूप से हो रहा था तो क्षेत्र के जेई से लेकर भवन निरीक्षक तक की पूरी फ़ौज क्या कर रही थी ? आखिर उसके आँखों पर कौन सी ऐसी पट्टी बंधी थी जिसके ज़रिये उसको ये निर्माण दिखाई नही दिया। अगर समय से ये निर्माण उसको दिखाई दे गया होता तो शायद विकास प्राधिकरण को आज पसीने न बहाने पड़े होते। साथ ही साथ अगर निर्माण उस समय अवैध था तो शायद भवन स्वामी के जानकारी में आने के बाद भवन स्वामी द्वारा नक्शा पास करवाने के नियमो का पालन किया गया होता।

नक्शा क्या पास नही होगा मान्यवर

दौरान समाचार कवरेज हमारी बातचीत मृतक भवन स्वामी के बेटे से हुई। उसने हमसे बातचीत में बताया कि कुल संपत्ति 645 वर्ग फिट है जिसका नक्शा हम लोगो ने जमा किया हुआ है। साथ ही प्रकरण से सम्बन्धित मुकदमा कमिश्नरी में विचाराधीन है। सम्बन्धित न्यायालय में इस सम्बन्ध में वाद पर सुनवाई की तारिख भी मुक़र्रर है। इस दरमियान न तो हमारा नक्शा पास किया गया और नक़्शे के सम्बन्ध में हमको नोटिस द्वारा सूचित किया गया कि वांछित नक्शा आवश्यक भूखंड से काफी कम है। इस प्रकरण से जब नक्शा 1000 वर्गफिट से कम संपत्ति पर पास नही होता है तो फिर आखिर विकास प्राधिकरण कौन से नक़्शे की बात कर रहा है।

जब हमने नक्शा जमा की रसीद देखा तो वह वर्ष 2019 में ही जमा हुआ था। इस नक़्शे के एवज में संपत्ति अर्थात भूखंड कम होने के कारण नक्शा पास नही हुआ है। फिर सवाल ये उठता है कि भवन स्वामी का आरोप सत्य है ? केवल टेबल के नीचे से दिलने वाले कागज़ को न देने के कारण ही भवन का ध्वस्तीकरण किया गया है। यदि ऐसा है तो इसका सवाल विकास प्राधिकरण को स्वयं तलाशना होगा।

बहरहाल, इस प्रकरण में हमारे पास उम्मीद है कि जल्द ही कुछ बड़े साक्ष्य हाथ लगेगे। जिसके बाद इस प्रकरण में और भी बड़े बड़े खुलासे हो सकते है। प्रकरण में विकास प्राधिकरण के कर्मियों की भूमिका भी काफी संदिग्ध है। इस संदिग्ध भूमिका की भी जाँच अवश्य होनी चाहिए। विकास प्राधिकरण को खुद के ऊपर लग रहे आरोपों को भी देखना चाहिए कि कही आरोप निराधार नही बल्कि सत्य न हो। पिक्चर अभी बाकी है के तर्ज पर कहा जा सकता है कि क्लाईमेक्स ही पूरा बाकी है।

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