एक क्रियाशील और स्वस्थ लोकतंत्र को पत्रकारिता के विकास को एक ऐसी संस्था के रूप में प्रोत्साहित करना चाहिए, जो सत्ता से कठिन सवाल पूछ सके: मुख्य न्यायाधीश डी0वाई0 चंद्रचूड़  

तारिक़ खान

डेस्क: ‘प्रेस राज्य की अवधारणा में चौथा स्तंभ है, एक स्वस्थ लोकतंत्र को पत्रकारिता को एक ऐसी संस्था के रूप में प्रोत्साहित करना चाहिए, जो सत्ता से कठिन सवाल पूछ सके। जब प्रेस को ऐसा करने से रोका जाता है तो किसी भी लोकतंत्र की जीवंतता से समझौता किया जाता है।’ 16वें रामनाथ गोयनका पुरस्कार समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए वक्त वक्तव्य भारत के मुख्य न्यायाधीश डी0वाई0 चंद्रचूड़ ने एक कार्यक्रम के दौरान कहे।

उन्होंने आगे कहा कि मीडिया ट्रायल के दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि इससे ऐसी धारणा पनपती है, जो किसी व्यक्ति को अदालती फैसला आने से पहले ही जनता की नजर में गुनहगार बना देती है। इंडियन एक्सप्रेस ने अपने खबर में लिखा है कि लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र प्रेस के महत्व पर प्रकाश डालते हुए सीजेआई ने कहा, ‘प्रेस राज्य की अवधारणा में चौथा स्तंभ है और इस प्रकार लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है। एक क्रियाशील और स्वस्थ लोकतंत्र को पत्रकारिता के विकास को एक ऐसी संस्था के रूप में प्रोत्साहित करना चाहिए, जो सत्ता से कठिन सवाल पूछ सके या जैसा कि यह आमतौर पर जाना जाता है, सत्ता के सामने सच बोलो।’

उन्होंने आगे कहा कि ‘जब प्रेस को ऐसा करने से रोका जाता है तो किसी भी लोकतंत्र की जीवंतता से समझौता किया जाता है। अगर किसी देश को लोकतांत्रिक बने रहना है तो प्रेस को स्वतंत्र रहना चाहिए।’ जिम्मेदार पत्रकारिता के संदर्भ में उन्होंने कहा, ‘यह वह इंजन है जो सत्य, न्याय और समानता की खोज के आधार पर लोकतंत्र को आगे ले जाता है। जब हम डिजिटल समय की चुनौतियों से गुजर रहे हैं तो यह और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि पत्रकार अपनी रिपोर्टिंग में सटीकता, निष्पक्षता एवं जिम्मेदारी के मानकों को बनाकर रखें।’

वहीं, मीडिया ट्रायल से उत्पन्न खतरों को चिह्नित करते हुए उन्होंने कहा, ‘एक प्रमुख मुद्दा जिसने हमारे सिस्टम को प्रभावित किया है, मीडिया ट्रायल है। निर्दोष होने की धारणा यह मानती है कि किसी व्यक्ति को कानून की अदालत द्वारा दोषी पाए जाने तक निर्दोष माना जाता है। यह कानून और कानूनी प्रक्रियाओं का एक अहम पहलू है।’ उन्होंने कहा, ‘हालांकि, इस तरह के वाकये भी सामने आए हैं, जब मीडिया ने एक विमर्श गढ़ा, जिसके चलते व्यक्ति अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने से पहले ही जनता की नजरों में दोषी हो गया। इसके प्रभावित लोगों के जीवन पर और उचित प्रक्रिया पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं।’

न्यूजरूम में विविध प्रतिनिधित्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि मीडिया संस्थानों में विविधतापूर्ण और प्रतिनिधित्व वाला न्यूजरूम होना आवश्यक है, जहां विभिन्न दृष्टिकोणों और आवाजों के साथ पूरी तरह अनुसंधान वाली खबरें हों। किसी भी मीडिया प्लेटफॉर्म के लंबे समय तक चलते रहने के लिए कार्यबल में विविधता अनिवार्य है।  उन्होंने कहा, ‘यह केवल अलग-अलग दृष्टिकोण और विचार प्रदान करने के बारे में नहीं है। मीडिया संस्थानों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उनके न्यूजरूम की संस्कृति उनके द्वारा उत्पादित विविध समाचार सामग्री को दर्शाती है। अन्यथा लोग उनकी प्रमाणिकता पर सवाल उठा सकते हैं। पत्रकारिता को संभ्रांतवादी और बहिष्कार करने वाली नहीं होना चाहिए।’

विधिक पत्रकारों के संबंध में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वे कानून की जटिलताओं पर प्रकाश डालते हुए न्याय प्रणाली की कहानी बयां करते हैं। उन्होंने कहा, ‘हालांकि, भारत में पत्रकारों द्वारा न्यायाधीशों के भाषणों और निर्णयों का चुनिंदा अंश उठाना चिंता का विषय बन गया है। इस तौर-तरीके में महत्वपूर्ण कानूनी विषयों पर जनता की समझ को विकृत करने की प्रवृत्ति है।’ उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों के फैसले अक्सर जटिल और बारीकियां लिए होते हैं और उनका चुनिंदा अंश उठाने से कुछ अलग ही प्रभाव जाता है, जो वास्तव में जज के इरादों से अलग होता है। इस प्रकार पत्रकारों के लिए यह आवश्यक है कि वे एकतरफा दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के बजाय घटनाओं की पूरी तस्वीर प्रदान करें। पत्रकारों का कर्तव्य सही और निष्पक्ष रिपोर्टिंग करना है।

सोशल मीडिया को लेकर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हाल के दिनों में यह पत्रकारों के लिए बड़ा बदलाव लाने वाला रहा है और ऑनलाइन मंचों ने व्यक्तियों को अपने स्वयं के ऑनलाइन मीडिया चैनल शुरू करने का अवसर प्रदान किया है। ऑनलाइन मंचों ने मीडिया के लोकतंत्रीकरण का नेतृत्व किया है। उन्होंने कहा कि यूट्यूब या इंस्टाग्राम रील पर समाचारों को छोटा कर दिया गया है। सोशल मीडिया के आगमन के साथ ही हमारी किसी चीज पर ध्यान देने की अवधि में गिरावट आई है। अब सूचना को 280 शब्दों या कुछ सेकंड में देने का मानक है। हालांकि, यह लंबी विधा या खोजी पत्रकारिता की जगह लेने वाला एक असंतोषजनक बदलाव है।

सीजेआई ने कहा, ‘नागरिकों के रूप में शायद हम उस दृष्टिकोण से सहमत नहीं हो सकते, जो एक पत्रकार ने अपनाया हो या जिस निष्कर्ष पर वे पहुंचे हों। मैं भी कई पत्रकारों से खुद को असहमत पाता हूं। आखिरकार हममें से कौन दूसरे सभी लोगों से सहमत होता है? लेकिन असहमति को नफरत में नहीं बदलना चाहिए और नफरत को हिंसा में बदलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।’

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