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सुप्रीम कोर्ट से सरकार को मिला बड़ा झटका: प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई मिलकर करेगे अब मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन

शाहीन बनारसी

डेस्क: सुप्रीम कोर्ट में आज केंद्र सरकार के लिए झटको का बृहस्पतिवार रहा है। पहले अडानी मामले में केंद्र सरकार के जाँच कमेटी को नकारते हुवे सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में 6 सदस्यों की जाँच समिति का गठन किया और साथ ही सेबी की जाँच को समय सीमा में बांधते हुवे दो माह के अन्दर जाँच रिपोर्ट पेश करने के लिए हुक्म दिया। वही मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के समबन्ध में उपजे विवाद पर भी अदालत ने केंद्र सरकार को झटका दिया है।

देश की सबसे बड़ी अदालत ने आज इस मसले पर एतिहासिक फैसला देते हुवे कहा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति एक कमेटी करेगी जिसमे प्रधानमन्त्री, लोकसभा के नेता परिपक्ष और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश होंगे। इस मामले में जस्टिस के0 एम0 जोसेफ ने कहा कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता बनाए रखी जानी चाहिए अन्यथा इसके विनाशकारी परिणाम होंगे। यह फैसला निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओ पर आज अदालत ने सुनाया है। पांच जजों के संविधान पीठ ने यह फैसला दिया है जिसमे जस्टिस के0एम0 जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सी0टी0 रविकुमार शामिल हैं।

जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि मैं जस्टिस के एम जोसेफ के फैसले से सहमत हूं। मुख्य चुनाव आयुक्तों और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया रद्द होगी। नियुक्ति के लिए समिति होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका हस्तक्षेप से चुनाव आयोग के कामकाज को अलग करने की आवश्यकता है। यह भी कि चुनाव आयुक्तों को सीईसी के समान सुरक्षा दी जानी चाहिए। उन्हें सरकार द्वारा हटाया भी नहीं जा सकता है। संविधान निर्माताओं ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयोग की नियुक्ति के लिए कानून बनाने का काम संसद पर छोड़ दिया था, लेकिन राजनीतिक व्यवस्थाओं ने उनके विश्वास को धोखा दिया और पिछले सात दशकों में कानून नहीं बनाया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग को स्वतंत्र होना चाहिए। यह स्वतंत्र होने का दावा नहीं कर सकता है तो अनुचित होगा। राज्य के प्रति दायित्व की स्थिति में एक व्यक्ति के मन की एक स्वतंत्र रूपरेखा नहीं हो सकती। एक स्वतंत्र व्यक्ति सत्ता में रहने वालों के लिए दास नहीं होगा। एक ईमानदार व्यक्ति आमतौर पर बड़े और शक्तिशाली लोगों से बेधड़क टक्कर लेता है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक आम आदमी उनकी ओर देखता है। लिंकन ने लोकतंत्र को लोगों के द्वारा, लोगों के लिए और लोगों के लिए घोषित किया था। सरकार को कानून के मुताबिक चलना चाहिए। लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है, जब सभी हितधारक चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता बनाए रखने के लिए इस पर काम करें। कानून का शासन,  शासन के लोकतांत्रिक स्वरूप का बुनियादी आधार हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह भाई-भतीजावाद, निरंकुशता आदि के दोषों से बचने का वादा है। चुनाव आयोग जो कानून के शासन की गारंटी नहीं देता है, वह लोकतंत्र के खिलाफ है। शक्तियों के व्यापक स्पेक्ट्रम में, यदि इसे अवैध रूप से या असंवैधानिक रूप से प्रयोग किया जाता है, तो राजनीतिक दलों के परिणामों पर इसका प्रभाव पड़ता है। हमारे पास नोटा का विकल्प है, जो उम्मीदवारों के प्रति मतदाताओं के असंतोष को दर्शाता है।

उम्मीदवारों की जानकारी मांगने और प्राप्त करने के नागरिक के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है। योग्यता के गुणों को स्वतंत्रता द्वारा पूरक होना चाहिए। पीएम, CJI और विपक्ष के नेता की कमेटी द्वारा सीईसी और ईसी की नियुक्ति हो। सीईसी और ईसी को समान संरक्षण और हटाने की सामान्य प्रक्रिया हो। सुप्रीम कोर्ट, लोकसभा और राज्यसभा जैसे ईसीआई के लिए स्वतंत्र सचिवालय हो।  सुप्रीम कोर्ट, लोकसभा और राज्यसभा जैसे ईसीआई के लिए स्वतंत्र बजट हो। इस प्रथा को तब तक लागू किया जाएगा, जब तक कि संसद द्वारा इस संबंध में एक कानून नहीं बनाया जाता है।

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