ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण: परिसर में मुस्लिम प्रवेश रोकने सम्बन्धी याचिका पर सुनवाई पूरी, 27 को आ सकता है फैसला, बोले मस्जिद कमेटी के अधिवक्ता “कहानी से अदालत नही चलती”
ईदुल अमीन
वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में सिविल जज (सी0डी0) फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में दाखिल याचिका जिसमे परिसर में मुस्लिम प्रवेश प्रतिबंधित करने और परिसर को हिन्दुओ को सौपने की मांग किया गया है पर आज सुनवाई पूरी हो गई है। अदालत ने सभी पक्षों को 18 अक्टूबर तक अपनी लिखित बहस दाखिल करने का हुक्म जारी किया है। वही अगली तारीख 27 अक्टूबर मुक़र्रर किया है। आशा किया जा रहा है कि इस दिन इस मामले में यह फैसला आ सकता है कि वाद सुनवाई योग्य है कि नही है।
आज शनिवार को अदालत में लॉर्ड आदि विश्वेश्वर के नेक्स्ट फ्रेंड किरन सिंह की तरफ से अधिवक्ता मान बहादुर सिंह, शिवम गौड़ और अनुपम द्विवेदी ने दलीलें पेश की। वरिष्ठ अधिवक्ता मानबहादुर सिंह ने कहा कि वाद सुनवाई योग्य है या नहीं, इस मुद्दे पर अंजुमन इंतजामिया की तरफ से जो भी मुद्दा उठाया गया है वह साक्ष्य व ट्रायल का विषय है। जब तक ट्रायल चालु नही होगा तब तक इस मामले का निस्तारण नही निकल सकता है। अदालत में सुप्रीम कोर्ट की 6 रूलिंग दाखिल करते हुवे अधिवक्ताओं ने दलील दिया कि भगवान की प्रॉपर्टी है तब माइनर मानते हुए वाद मित्र के जरिये क्लेम किया जा सकता है। स्वीकृति से मालिकाना हक नहीं हासिल होता है। यह बताना पड़ेगा कि संपत्ति कहां से और कैसे मिली। अदालत में वाद के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट की 6 रूलिंग और संविधान का हवाला भी दिया गया।
मस्जिद कमेटी की जानिब से अदालत में पेश हुवे अधिवक्ता मुमताज अहमद, तौहीद खान, रईस अहमद, मिराजुद्दीन सिद्दीकी और एखलाक खान ने अदालत में दलील पेश करते हुवे कहा कि जब देवता की तरफ से मुकदमा किया गया तब वादी पक्ष की तरफ से पक्षकार 4 और 5 विकास शाह और विद्याचन्द्र कैसे वाद दाखिल कर सकते हैं। मस्जिद कमेटी के अधिवक्ताओं ने दलील पेश करते हुवे कहा कि वादी पक्ष आराजी संख्या 9130 के एक बीघा, 9 विस्वा 6 धूर के खसरा को गलत बता रहा है। तब यह वाद कैसे विश्वसनीय माना जाए।
मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ताओ ने दलील पेश करते हुवे कहा कि एक तरफ कहा जा रहा है कि वाद देवता की तरफ से दाखिल है वहीं दूसरी तरफ पब्लिक से जुड़े लोग भी इस वाद में शामिल हैं। यह वाद किस बात पर आधारित है इसका कोई पेपर दाखिल नहीं किया गया है और कोई सबूत नहीं है। कहानी से अदालत नहीं चलती है, कहानी और इतिहास में फर्क होता है। मुस्लिम पक्ष के अधिवाक्ताओ द्वारा कानूनी नजीरे पेश करते हुवे दलील दिया गया कि जो इतिहास है वही लिखा जाएगा। वाद सुनवाई योग्य नहीं है और इसे खारिज कर दिया जाए।