आखिर किस आधार पर एनडीटीवी के प्रमोटरों के ठिकानों पर छापेमारी की कार्यवाई हो रही है

शबाब ख़ान की विशेष रिपोर्ट
नई दिल्ली: पिछले दिनों एनडीटीवी के प्रमोटर प्रणय रॉय और राधिका रॉय के साथ उक्त न्यूज चैनल के दूसरे बड़े स्टॉक होल्डरस् और प्रोमोटरस् के ठिकानों पर सीबीआई नें छापेमारी की कार्यवाई की। हम सब जानते हैं कि एनडीटीवी के न्यूज़ स्टोरी में सत्तारूड़ पार्टी की चमचागिरी नही दिखाई जाती। रविश कुमार जैसे दिलेर टीवी जर्नालिस्ट से सुसज्जित एनडीटीवी टीम बाकी बिके हु़ए एकतरफा खबरें चलाने वाले चैनलों की भीड़ से एकदम अलग चैनल है। सो, जब सीबीआई रेड हुई तो अधिकतर लोगो को यही लगा कि यह सब सत्तारूड़ दल की ओर कराई जाने वाली बदले की कार्यवाई हो सकती है।

लेकिन जब हमने इस मुद्दे पर जानकारी इक्कठ्ठा करना शुरू किया तो मामला दूसरा निकला। लेकिन यह जो भी मामला है इससे इंकार नही किया जा सकता कि एनडीटीवी के विरुद्ध मामलों की गहनता से खोज की जा रही है। कारण, बस एक ही, और वह है बिना किसी के दबाव में आये स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करना देश चलाने वालो और उनके साथी कॉरपोरेट घरानों को बर्दाशत नही। फिलहाल इस बार सरकार नें किस बहाने एनडीटीवी पर चाबुक चलाया है, आईये जानते है।

एनडीटीवी के प्रमोटर प्रणय रॉय और राधिका रॉय पर आरोप है कि उनकी कंपनी ने एक निजी बैंक आईसीआईसीआई बैंक को 48 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाया है। आईसीआईसीआई बैंक के कुछ अधिकारियों पर यह भी आरोप है कि उन्होंने एनडीटीवी के प्रमोटरों के साथ मिलकर एक ‘फर्जी’ कंपनी को एनडीटीवी के शेयरों के स्थानांतरण में मदद की है।
केंद्रीय जाँच ब्यूरो यानी सीबीआई ने दिल्ली की एक संस्था – ‘क्वांटम सिक्योरिटीज’ के संजय दत्त की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की है। हालाकि इस इस मामले में आईसीआईसीआई बैंक ने कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है। क्यों? जिस बैंक को नुकसान पहुँचाया गया, जैसा कि आरोप है, वह बैंक प्राईवेट सेक्टर का है, जब उस बैंक नें ही कोई शिकायत नही की तो केंद्र सरकार के आधीन काम करने वाली देश की सबसे बड़ी, लेकिन विश्वसनीय नही, संस्था यानि केंद्रीय जॉच ब्युरो नें इतनी बड़ी कार्यवाई किसके ईशारे पर दी। जवाब की जरूरत नही है, हम सब जानते हैं सीबीआई किसे रिपोर्ट करती है। उसे रिपोर्ट करती है जो एनडीटीवी के निशानें पर रहता है, जब भी एनडीटीवी उसके बारे में बोलता है, जहरीला ही बोलता है चाहे वो सत्य ही हो।
आखिर क्या है इस मामले की जड़?
इस मामले की जड़ में वो लोन हैं जो प्रणय रॉय ने वर्ष 2008 में लिए थे। उन्होंने एक नई कंपनी-आरआरपीआर होल्डिंग्ज़ प्राइवेट लिमिटेड बनाई और ‘इंडिया बुल्स’ नाम की कंपनी से 501 करोड़ रुपए का कर्ज़ लिया। आरोप हैं कि फिर इसी कंपनी के ज़रिये उन्होंने एनडीटीवी के बहुत सारे शेयरों को ख़रीदा।
शिकायतकर्ता के आरोपों के अनुसार ‘इंडियाबुल्स’ के कर्ज़ को चुकाने के लिए ‘आरआरपीआर होल्डिंग्ज़ प्राइवेट लिमिटेड’ ने आईसीआईसीआई बैंक से 375 करोड़ रुपए का ऋण लिया जिसकी ब्याज दर 19 प्रतिशत तय किया गया। यह बात अक्टूबर 2008 की है।
इसके बाद अगस्त 2009 में ‘आरआरपीआर होल्डिंग्ज़ प्राइवेट लिमिटेड’ को एक और कंपनी – विश्वप्रधान कमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड – मिल गई जिसने आईसीआईसीआई का लोन चुकाने के लिए सहमति भर ली।
संजय दत्त द्वारा दर्ज की गयी शिकायत सीबीआई की प्राथमिकी का आधार है। इसमें कहा गया है कि ‘आरआरपीआर होल्डिंग्ज़ प्राइवेट लिमिटेड’ की ‘बैलेंसशीट’ के अनुसार उसे आईसीआईसीआई बैंक को 396,42,58,871 रुपए चुकाने थे। लेकिन उसे 350 करोड़ रुपए ही चुकाए गए। संजय दत्त के अनुसार इसके साथ-साथ 2016 तक उस रक़म पर और 6 करोड़ रूपए बतौर ब्याज होते हैं। यानी बैंक को कुल मिलाकर 48 करोड़ रूपए का नुक़सान हुआ।
सीबीआई की एसीबी शाखा के एसपी किरण एस ने इस मामले की जाँच के लिए डीएसपी ललित फुलर को अनुसंधान अधिकारी नियुक्त किया है। प्रणय रॉय और राधिका रॉय के खिलाफ भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 120 बी (आपराधिक सांठगांठ) और धारा 420 (धोखाधड़ी) के साथ भ्रष्टाचार निरोधी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।
हास्यपद है, जिसका नुकसान हुआ वो वादी नही है। मतलब साफ है आईसीआईसीआई को सरकार तैयार नही कर पायी, क्योकि बैंक जानता है जब 350 करोड़ चुका दिया तो 48 करोड़ क्यो नही चुका पाएगे प्रणय और राधिका। समझाने की जरूरत नही सरकार एनडीटीवी को हर हाल में खत्म करना चाहती है। वह आजाद मीडिया किसी भी सूरत मे नही चाहती। या तो बिक जाओ, हमारे गुण गाओ, या खत्म हो जाओ, मीडिया को लेकर केंद्र सरकार की यह नीति शीशे की तरह साफ नजर आने लगी है।

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