इमरान खान की जीत से क्यों चिंतित हो उठे हैं अमेरिका, सऊदी अरब और इमारत क्या सऊदी राजकुमार की बात सही है कि खान ईरान के करीबी घटक है

आफ़ताब फारुकी

पाकिस्तान के आम चुनावों में सऊदी अरब की घटक समझी जाने वाली पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की पार्टी की हार और उनके कट्टर प्रतिस्पर्धी इमरान ख़ान की विजय से रियाज़ सरकार की चिंता बढ़ गई है।

इमरान ख़ान को सऊदी अरब से कोई हमदर्दी नहीं है और वह यमन युद्ध में पाकिस्तान की किसी भी भूमिका के विरोधी हैं जबकि ईरान से मज़बूत संबंधों और सहयोग के पक्षधर हैं।

नवाज़ शरीफ़ भ्रष्टाचार के आरोप में इस समय जेल में हैं उनकी भी वही हालत है जो हालत मलेशिया के प्रधानमंत्री नजीब अब्दुर्रज़्ज़ाक़ की है जो सऊदी अरब के क़रीबी घटक थे। जिस तरह मलेशिया के नए प्रधानमंत्री महातीर मुहम्मद ने चार्ज संभालते ही अपने देश के सैनिकों को यमन के ख़िलाफ़ युद्ध कर रहे सऊदी गठबंधन से बाहर निकालने का आदेश जारी किया उसी तरह यह संभावना है कि इमरान ख़ान भी इस्लामी सैन्य गठजोड़ से पाकिस्तान के सैनिकों को बाहर निकाल लें जिसका गठन सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान ने वर्ष 2015 में किया था और जिसमें 30 से अधिक देश शामिल बताए जाते हैं।

इमरान ख़ान को अपने एजेंडे की वजह से जनता का समर्थन प्राप्त है। पाकिस्तान भी उन देशों  में गिना जाता है जहां सेना को विशेष अधिकार हासिल हैं। पाकिस्तानी सेना कई बार देश का सत्ता अपने हाथ में ले चुकी है और पाकिस्तानी विशेषज्ञों का कहना है कि इस बात की संभावना अधिक है कि इमरान ख़ान को सेना का समर्थन हासिल रहेगा।

यदि सऊदी अब और इमारात को इमरान ख़ान के सत्ता में पहुंचने पर गहरी चिंता है तो अमरीका, ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों की चिंता भी कम नहीं है। क्योंकि मध्यपूर्व के क्षेत्र में अमरीका की नीतियों का कई बार इमरान ख़ान ने खुल कर विरोध किया है। इमरान ख़ान फ़िलिस्तीन के समर्थक हैं। जब वह आक्सफ़ोर्ड में पढ़ते थे तब भी उन्होंने फ़िलिस्तीन के समर्थन में और इस्राईल के विरोध में कई कार्यक्रमों में भाग लिया था। यहां तक कि जब इमरान ख़ान ने जमाइमा से विवाह किया और उन्होंने इस्लाम स्वीकार किया तो जमाइमा ने भी इस्राईल के खिलाफ़ कई लेख लिखे और फ़िलिस्तीनियों पर इस्राईल के हमलों की खुलकर आलोचना की। उनके लेख गार्डियन अख़बार में छपे।

कुछ महीने पहले जब ट्रम्प ने ट्वीट किया कि पाकिस्तान ने 15 साल में 33 अरब डालर अमरीका से वसूल किए और उसने इसके बदले में अमरीका को धोखे, झूठ और आतंकवाद में वृद्धि के अलावा कुछ  नहीं दिया था तो इसके जवाब में इमरान ख़ान ने कहा कि तुम मूर्ख, अज्ञानी और एहसान फ़रामोश हो। इमरान ख़ान ने कहा कि अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए ने 1980 के दशक में चरमपंथी संगठनों की स्थापना करवाकर पाकिस्तानी समाज को चरमपंथ की ओर ढकेला और फिर 11 सितम्बर के बाद इन्हीं संगठनों को ध्वस्त कर देने की ज़िम्मेदारी पाकिस्तान को सौंपी।

सऊदी राजकुमार ख़ालिद बिन अब्दुल्लाह आले सऊद ने इमरान ख़ान की विजय पर खुल कर दुख जताया और ट्वीट किया कि इमरान ख़ान ईरान के आदमी और इस्लामाबाद में कुम के प्रतिनिधि हैं। बाद में उन्होंने अपना यह ट्वीट डिलीट कर दिया।

इमरान ख़ान जो सरकार गठन के प्रयासों में व्यस्त हैं यदि हालात उनकी मार्ज़ी के अनुरूप रहे तो पाकिस्तान की नीतियों में वह गहरा बदलाव करेंगे। वह भारत के साथ संबंधों के मामले में भी अलग सोच रखते हैं, अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी से सहयोग में उन्हें रूचि है ताकि अफ़ग़ानिस्तान में शांति आए तथा तेहरान से सहयोग में विस्तार हो साथ ही आतंकवाद से लड़ने के लिए अमरीका ने जो तथाकथित गठबंधन बनाया है उससे पाकिस्तान बाहर निकल जाए।

अच्छा ही है कि सऊदी अरब, इमारात और अमरीका चिंता में रहें। पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री अपने पूर्ववर्ती नवाज़ शरीफ़ के रास्ते पर नहीं चलेंगे। शायद वह पाकिस्तान को एक क्षेत्रीय ताक़त के रूप में पुनः स्थापित करने में कामयाब हो जाएं। हमारा काम यह है कि हम प्रतीक्षा करें।

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