सऊदी अरब की दो ट्रिलियन डॉलर की समाप्ति क्या हज़्म कर जाना चाहता है अमरीका

आदिल अहमद

सऊदी अरब की सरकार की ओर से रविवार को जो बयान जारी किया गया और जिसमें इस देश पर आर्थिक और राजनैतिक प्रतिबंध लगाने की अमरीका की धमकी को ख़ारिज कर दिया गया है, उससे पता चलता है कि अमरीका की धमकियों में काफ़ी गंभीरता है और इन धमकियों से सऊदी अरब में गहरी चिंता पैदा हो गई है।

हालत यह है कि सऊदी अरब आत्मघाती कार्यवाही की पोज़ीशन लेने लगा है। पिछले 80 साल में यह पहला अवसर है कि दोनों पारम्परिक घटकों के बीच इस तरह खुले आम धमकियों का आदान प्रदान हो रहा है।

अमरका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प देश के शक्तिशाली संस्थानों के दबाव में आकर अपने पिछले स्टैंड से पीछे हटने पर विवश हुए हैं। उन्होंने पहले तो इस्तांबूल में वरिष्ठ सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी के लापता हो जाने के मामले का महत्व कम करने की कोशिश करते हुए इशारा दिया था कि इस प्रकरण में वह कोई कार्यवाही नहीं करेंगे क्योंकि ख़ाशुक़जी अमरीकी नागरिक नहीं हैं और न ही यह अपराध अमरीका की धरती पर हुआ है दूसरी बात यह है कि सऊदी अरब और अमरीका के बीच 110 अरब डालर का हथियार सौदा हुआ है और इस सौदे को गंवाया नहीं जा सकता क्योंकि इस सौदे के हाथ से जाने का मतलब है नौकरियों और आर्थिक विकास का अमरीका के हाथ से बाहर निकलना।

ट्रम्प ने यह स्वर फ़ाक्स न्यूज़ से अपनी बातचीत में अपनाया था लेकिन रविवार को उनका जो नया इंटरव्यू प्रसारित हुआ उसमें उनका स्वर पूरी तरह बदल गया और उन्होंने कह कि यदि इस्तांबूल में सऊदी वाणिज्य दूतावास के भीतर जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या का मामला साबित हो जाता है तो सऊदी अरब को कठोर दंड दिया जाएगा। ट्रम्प ने यह नहीं बताया कि दंड किस प्रकार का होगा अलबत्ता उन्होंने अपनी बातचीत में यह संकेत दे दिया कि हत्या हुई है क्योंकि पुराने तुर्क घटकों ने इस संदर्भ में बड़े ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य पेश कर दिए हैं।

यह तो तय है कि ट्रम्प, जिन्होंने दो सप्ताह से भी कम समय में सऊदी अरब को अपमानित करने वाले चार से अधिक बयान दिए हैं और उन्होंने सऊदी अरब की संपत्ति का उल्लेख किया और कहा कि अमरीका सऊदी अरब को बचाए हुए है वरना ईरान 12 मिनट के भीतर उस पर क़ब्ज़ा कर लेता, अब यह अच्छी तरह समझ गए हैं कि मिट टर्म इलेक्शन से तीन सप्ताह पहले स्थिति यह है कि जमाल ख़ाशुक़जी के मामले में अमरीकी जनमत बुरी तरह आहत है क्योंकि अमरीकी मीडिया में ख़ाशुक़जी के अपहरण और संभावित रूप से हत्या और उनके टुकड़े टुकड़े कर दिए जाने की ख़बरें आ रही हैं। ट्रम्प इस जनाक्रोश का चुनावी फ़ायदा उठाना चाहते हैं इसीलिए उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह अपराध पर बड़े से बड़े अधिकारियों को भी दंडित करने में नहीं हिचकिचाते।

ट्रम्प को सऊदी अरब से कोई लगाव नहीं है वह अरबों और मुसलमानों से नफ़रत करते हैं मगर साथ ही सऊदी अरब तथा फ़ार्स खाड़ी के अन्य देशों की संपत्ति पर उनकी गहरी नज़र है। उनका मानना है कि उनका देश पिछले अस्सी साल से सऊदी अरब की रक्षा करता आ रहा है अतः सऊदी अरब की संपत्ति में उसका बड़ा हिस्सा है। यही कारण है कि वह यह संपत्ति हथियानों में तनिक भी नहीं हिचकिचाते। यह संभावना है कि वर्तमान संकट को भी वह अपने इसी लक्ष्य के लिए प्रयोग करें।

वाइट हाउस के आर्थिक मामलों के सलाहकार लैरी कोडियो ने जो मुसलमानों और अरबों से नफ़रत के लिए जाने जाते हैं, चेतावनी दी है कि राष्ट्रपति अपनी इन धमकियों में बहुत अधिक गंभीर हैं। इसका मतलब यह है कि अपराध में सऊदी अरब के लिप्त होने की स्थिति में उसके ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्यवाही पर सहमति बन चुकी है और यह संभावना है कि इस दंडात्मक कार्यवाही में अमरीका में सऊदी अरब के दो ट्रिलियन डालर के निवेश को हड़प करना भी शामिल हो जिस तरह अमरीका ने अमरीकी बैंकों में रखे ईरान की रक़म इसलिए हड़प कर ली कि वर्ष 1979 में ईरान में इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में इस्लामी क्रांति आ गई थी।

सऊदी अरब के ट्वीटर उपभोक्ताओं ने सऊदी अरब की जवाबी कार्यवाही के बारे में कुछ अटकलें लगाई हैं। उनका मानना है कि सऊदी अरब अपनी दौलत को हथियार के रूप में प्रयोग कर सकता है और वह हथियार ख़रीदने के लिए चीन और रूस का रुख़ कर सकता है बल्कि शायद सऊदी अरब इससे भी कुछ क़दम आगे बढ़ जाए और अमरीका तथा पश्चिम के मुक़ाबले में ईरान के साथ गठजोड़ कर ले।

सऊदी अरब ने राजकुमार ख़ालिद फ़ैसल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल तुर्की भेजा है अतः वह तुर्की से कोई टकराव नहीं चाहता बल्कि इस संकट से बाहर निकलने के लिए तुर्की की मदद मांग रहा है। राजकुमार ख़ालिद फ़ैसल सऊदी नरेश सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ के सलाहकार हैं और तुर्क राष्ट्रपति से उनके अच्छे संबंध बताए जाते हैं, ख़ाशुक़जी से भी उनके अच्छे संबंध रहे हैं।

सऊदी अरब इस समय जिस संकट में फंसा है एसा संकट उसके सामने कभी नहीं आया। ख़ाशुक़जी के साथ अरब जगत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गहरी सहानुभूति जताई जा रही है। सऊदी अरब पर जो आरोप लगा है उसका वह किसी भी तरह बचाव नहीं कर पा रहा है। उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल तुर्की भेजने से भी एसा नहीं लगता कि स्थिति में कोई बदलाव हो पाएगा।

तुर्की ने कहा है कि उसके पास वीडियो और आडियो है जिससे साबित होता है कि ख़ाशुक़जी की सऊदी वाणिज्य दूतावास के भीतर हत्या की गई तुर्की चाहता है कि सऊदी प्रतिनिधिमंडल ख़ाशुक़जी की लाश हवाले कर दे। इस मामले में सऊदी अरब के शेयर बाज़ार को एक दिन के भीतर 33 अरब डालर का नुक़सान हो गया। बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने अगले हफ़्ते सऊदी अरब में होने वाली बड़ी आर्थिक बैठक से अपना नाम वापस ले लिया है। ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के विदेश मंत्रियों ने साफ़ शब्दों में कहा है कि सऊदी ख़ाशुक़जी के प्रकरण की ठीक से जांच करवाए, जो अधिकारी इस प्रकरण में लिप्त हैं उनका नाम घोषित करे और उनके खिलाफ़ कार्यवाही करे। इस तरह सऊदी अरब के लिए पश्चिमी देशों से हथियार ख़रीदना काफ़ी मुशकिल हो जाएगा।

जमाल ख़ाशुक़जी का प्रकरण सऊदी अधिकारियों के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बन गया है और इससे वह महीनों बल्कि वर्षों तक अपनी जान नहीं छुड़ा जाएंगे। यह प्रकरण सऊदी अरब के भीतर गहरे बदलाव की शुरुआत भी साबित हो सकता है और इस बदलाव के बाद शायद सऊदी अरब की सूरत ही बदल जाए।

अब्दुल बारी अतवान

अरब जगत के विख्यात लेखक व टीकाकार

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