सोशल मीडिया पर कश्मीर में ज़मीन खरीदने वालो, इन राज्यों में भी ज़मीन नही खरीद सकते हो, जाने और कितने राज्यों को मिला है आर्टिकल 371 के तहत विशेष राज्य का दर्जा

तारिक आज़मी

सोमवार को गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में दो संकल्प और दो बिल पेश किए। संकल्प आर्टिकल 370 से जुड़ा था और बिल जम्मू कश्मीर को दो भागों में बांटने वाला। दोनों बिल राज्यसभा से शाम तक पास हो गए और फिर मंगलवार को लोकसभा में भी पास हो गया। बिल के पास होने के बाद जम्मू-कश्मीर में कई बदलाव होंगे। जिसमें सबसे बड़ा बदलाव ये होगा कि बाहरी लोग इस राज्य में अब जमीन खरीद सकते हैं।

वैसे लोग ज़मीन जब खरीदेगे तब खरीदेगे मगर अमित शाह के ऐलान के बाद सोशल मीडिया पर ज़मीन और प्लाट खरीदने बेचने वालो की अचानक बाढ़ आ गई। खलिहर बैठे लोग भले उधार की चाय की चुस्की लेते हुवे ही सही मगर कश्मीर में ज़मीन खरीदने लगे और कुछ तो शादीवाला की तरह शादियों का मैरेज ब्यूरो खोल कर सबकी शादी कश्मीर में करवाने लगे। हर तरफ लोग खुशियां मनाने लगे कि इस फैसले के बाद आराम से जम्मू कश्मीर में ज़मीन खरीद सकते हैं।

ऐसे लोगो को जानकारी हेतु आज ये लेख लिखना पड़ गया। क्योकि इनकी खुशियों और शेखचिल्ली के सपनो के पीछे देशभक्ति और जम्मू कश्मीर के हित से कही ज्यादा इनकी अंधभक्ति और नफरत के चश्मे नज़र आ रहे है। बताते चले कि जम्मू कश्मीर अकेला ऐसा राज्य नहीं था जिसे विशेष दर्जा दिए गया था। भारतीय संविधान में अन्य राज्यों के लिए भी इस तरह के प्रावधान हैं। कई राज्यों को अभी भी भारतीय संविधान के अनुसार विशेष दर्जा प्राप्त हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371 जिसको आर्टिकल 371 भी कहते है, के तहत पूर्वोत्तर में कई राज्यों तो विशेष दर्जा प्राप्त है।

ये आर्टिकल 371 में A से लेकर J तक 11 खंड हैं जो देश के 11 राज्यों में लागू है। ये आर्टिकल इन राज्यों को विशेष प्रावधान देता है। आर्टिकल 370 के दो खंड हटने के बाद सोशल मीडिया पर आर्टिकल 371 को लेकर भी खूब बातें होने लगीं। जिस पर गृहमंत्री ने लोकसभा में जवाब भी दिया। अमित शाह ने कहा कि आर्टिकल 371 नॉर्थ ईस्ट के अलावा दूसरे राज्यों के विशेष अधिकार देता है। मैं संसद में इस बात पर सभी को आश्वस्त करना चाहता हूं कि हमारी सरकार किसी तरह से 371 को हाथ नहीं लगाने जा रही है वैसे राजनितिक सुझबुझ भी काम आती है। शायद राजनितिक सुझबुझ ही काम आई अन्यथा इस अनुच्छेद 371 को हाथ लगाने का मतलब था कि कुल 11 राज्यों में अपनी स्थिति को ख़राब करना।

कई राज्य ऐसे और भी है जहा अन्य प्रदेश का नागरिक ज़मीन नही खरीद सकता

ऐसे कई राज्य हैं जहां बाकि भारतीय जमीन नहीं खरीद सकते हैं। नार्थ ईस्ट में कई ऐसे राज्य हैं, जहां बाहरी लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं। अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम, मेघालय, सिक्किम और मणिपुर ऐसे ही राज्य हैं। यहां तक कि नार्थ ईस्ट के निवासी भी एक-दूसरे के राज्‍य में जमीन नहीं खरीद सकते हैं। वही कश्मीर से सटा हुआ राज्य हिमाचल प्रदेश है। इस राज्य में कोई भी बाहरी ज़मीन नहीं खरीद सकता। यहां तक कि जो हिमाचल का निवासी है, और अगर वो किसान नहीं है, तो वो खुद भी हिमाचल में ज़मीन नहीं खरीद सकता। चाहे उसके पास हिमाचल का राशन कार्ड से लेकर सारे ज़रूरी कागज़ात मौजूद ही क्यों न हो। 1972 में भूमि मुजारा कानून की धारा 118 के तहत राज्य में ज़मीन खरीदने पर रोक लगाई गई थी। जिसके बाद हिमाचल प्रदेश में ज़मीन खरीदने के लिए खास नियम तैयार कर दिए गए।

संविधान का अनुच्छेद 371  गुजरात, नागालैंड और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों को विशेष प्रावधान प्रदान करता है। इसमें कल गुलाम नबी आज़ाद ने अपने भाषण में गुजरात का नाम लिया भी था जिस पर सत्ता पक्ष के तरफ से शोर शराबा हुआ, इसके अलावा और भी कई राज्यों को विशेष प्रावधान प्राप्त हैं। आइये जानते हैं किन राज्यों के पास विशेष प्रावधान हैं।

अनुच्छेद 371A – नागालैंड

नागालैंड को भी कश्मीर जैसा विशेष प्रावधान मिला हुआ है। 1963 में राज्य बनने के साथ ही विशेष अधिकार के रूप में आर्टिकल 371 (A) का प्रावधान मिला था। इसमें ऐसे कई मामले है जिसमे दखल नहीं दिया जा सकता है। संविधान के इस प्रावधान के तहत नागालैंड का नागरिक ही वहां जमीन खरीद सकता है। देश के अन्य राज्यों के व्यक्ति को नागालैंड में जमीन खरीदने का अधिकार नहीं है। 371A के तहत नगालैंड के मामले में नगाओं की धार्मिक या सामाजिक परंपराओं, इसके पारंपरिक कानून और प्रक्रिया, नागा परंपरा कानून के अनुसार फैसलों से जुड़े दीवानी और फौजदारी न्याय प्रशासन और भूमि तथा संसाधनों के स्वामित्व और हस्तांतरण के संदर्भ में संसद की कोई भी कार्यवाही लागू नहीं होगी।

अनुच्छेद 371F – सिक्किम 

सिक्किम में केवल सिक्किम के निवासियों को ही जमीन खरीदने की अनुमति है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 371एफ, जो सिक्किम को विशेष प्रावधान प्रदान करता है, बाहरी लोगों को शामिल भूमि या संपत्ति की बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगाता है। इसके अतिरिक्त राज्य के जनजातीय क्षेत्रों में केवल आदिवासी ही भूमि और संपत्ति खरीद सकते हैं। यहां किसी भी तरह के जमीन विवाद में देश के सुप्रीम कोर्ट या संसद को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। इसी प्रावधान के तहत सिक्किम की विधानसभा का कार्यकाल चार साल का है।

अनुच्छेद 371G – मिज़ोरम 

इस आर्टिकल के तहत मिज़ोरम में ज़मीन का मालिकाना हक सिर्फ वहां बसने वाले आदिवासियों का है। मगर साथ ही यहां प्राइवेट सेक्टर के उद्योग खोलने के लिए राज्य सरकार मिजोरम (भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन और पुनर्स्थापन) ऐक्ट 2016 के तहत भूमि अधिग्रहण कर सकती है।

अनुच्छेद 371 I (आई)
इस आर्टिकल में गोवा राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है। जिसके तहत गोवा राज्य की विधानसभा में 30 से कम सदस्य नहीं होने चाहिए।

अनुच्छेद 371- हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश को भी लेकर यही स्थिति है। आर्टिकल 371 के तहत कोई भी व्यक्ति जो हिमाचल प्रदेश से बाहर का है वह राज्य में एग्रीकल्चरल लैंड (खेती के लिए जमीन) नहीं खरीद सकता हैं

अनुच्छेद 371H – अरुणाचल प्रदेश
राज्यपाल के पास राज्य की कानून और व्यवस्था की स्थिति पर विशेष अधिकार हैं और इसके आधार पर मुख्यमंत्री के फैसले को रद्द किया जा सकता है। संविधान के इस अनुच्छेद के ज़रिए अरुणाचल के कानून और सुरक्षा को लेकर राज्यपाल को विशेष अधिकार मिले हैं। वे मंत्रियों के परिषद से चर्चा करके अपने फैसले को खुद लागू करा सकते हैं। यहां राज्यपाल का फैसला अंतिम फैसला होता है।

अनुच्छेद 371B – असम 
राष्ट्रपति राज्य के आदिवासी इलाकों से चुनकर आए विधानसभा के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बना सकता हैं। इस कमेटी का काम राज्य के विकास संबंधी कार्यों की विवेचना करके राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौपेना होगा।

अनुच्छेद 371C – मणिपुर 
यह असम में लागू अनुछेद 371बी की तहर ही है। मणिपुर में राष्ट्रपति चाहे तो राज्य के राज्यपाल को विशेष जिम्मेदारी देकर चुने गए प्रतिनिधियों की कमेटी बनवा सकते हैं। ये कमेटी राज्य के विकास संबंधी कार्यों की निगरानी करेगी। राज्यपाल को हर साल राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपनी होगी।

अनुच्छेद 371J

अनुच्छेद 371 जे हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के छह पिछड़े जिलों को विशेष दर्जा देता है। विशेष प्रावधान के लिए आवश्यक है कि इन क्षेत्रों (महाराष्ट्र और गुजरात की तरह) के लिए एक अलग विकास बोर्ड स्थापित किया जाए और शिक्षा और सरकारी नौकरियों में स्थानीय आरक्षण सुनिश्चित किया जाए।

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