लानती पूत: दो वक्त की रोटी और खुली हवा में सांस भी मयस्सर नही करवा पा रहे थे अपनी माँ को छविनाथ और चंद्रशेखर, 6 महीने कैद में रही बुज़ुर्ग माँ की दास्तान पढ़कर आपके भी आंसू छलक जायेगे

तारिक़ आज़मी

डेस्क: “पूत सपूत तो क्यों धन संचय और पूत कपूत तो क्यों धन संचय” ये युक्ति आपने कई बार सुनी होगी। मगर हम और आप इसको नज़रअंदाज़ करते रहते है। मैनपुरी के ग्राम पंचायत आलीपुर खेडा के रहने वाले मेघ सिंह भी अपने पुरे जीवन भर इसका ध्यान नही दिए होंगे। उनको नही मालूम होगा कि उनके इस दुनिया से रुखसत होने का इंतज़ार उनके दो बेटे देख रहे है, और दोनों बेटे मिलकर भी अपनी बुज़ुर्ग माँ को दो वक्त की रोटी न खिला पायेगे। एक कोठारी में कैद करके रख देंगे। एक वक्त सुखी रोटी देंगे।

मगर हुआ ऐसा ही। मेघ नाथ के मरते ही उसके दोनों बेटो छविनाथ और चंद्रशेखर ने अपनी माँ को एक कोठारी में बंधक बना दिया जहा वह रहे, बाहर न निकले। मल मूत्र भी उसी कोठारी में करे। जिंदा रहने के लिए एक थाली में दो सुखी रोटी ऐसे दे देते थे जैसे किसी जानवर को दे रहे हो। उस माँ के साथ ऐसा व्यवहार जिसने 9 माह अपने गर्भ में रखकर दोनों को अपना लहू पिला कर बड़ा किया। पाल पोस कर जवान कर दिया। चंद्रशेखर तो फिर भी पास में झोपड़ी बनाकर रहता है। मगर छविनाथ गाँव के अन्दर पक्का मकान में परिवार के साथ आराम की ज़िन्दगी बसर करता है। इन दोनों के पास अपनी माँ के लिए तन ढकने के लिए कपडे और भर पेट खाना नही था। मगर खुद आराम की ज़िन्दगी बसर कर रहे थे।

6 माह से अधिक वक्त तक एक बुज़ुर्ग महिला शरीर पर दो चिथड़े थे। एक ही कोठारी में वह रहती थी। मल मूत्र के लिए भी बाहर निकलने की अनुमति नही थी क्योकि कोठारी बाहर से बंद थी। ताज़ी हवा और सूरज की रोशनी देखे उस बुज़ुर्ग माँ को 6 माह से अधिक समय बीत चूका था। कमरे में ही उसको दो सुखी रोटी मिल जाती थी। उसी को खाकर और पहले से कई कई दिनों का रखा पानी पीकर वह ज़िन्दगी की सांसे शायद इस लिए गिन रही होगी कि कम यमराज आये और उसको इस मौत से बदत्तर ज़िन्दगी से निजात दिलवाए। लानत भेजने का अगर आपको इन बेटो पर मन कर रहा है तो आप लानत न भेजे। समाज को न कोसे क्योकि समाज को अगर पता होता कि ऐसी हालात है तो समाज ही उस बुज़ुर्ग महिला की परवरिश कर लेता।

मैनपुरी में भोगांव थाना क्षेत्र की ग्राम पंचायत आलीपुर खेड़ा के गांव नगला इतवारी की इस घटना की जानकारी आखिर किसी ने ग्राम प्रधान को दे दिया। जिसको सुनकर कल बृहस्पतिवार को ग्राम पंचायत आलीपुर खेड़ा के ग्राम प्रधान संत प्रकाश स्वर्णकार मौके पर पहुचे और ग्रामीणों के साथ उन्होंने इस कोठरी को खुलवाया तथा छह माह से अधिक समय से बंद 70 वर्षीय बुज़ुर्ग सोमवती को मुक्त कराया। अंधेरी कोठरी में गंदगी और मल बिखरा पड़ा था। एक थाली में सूखा खाना रखा था। छह माह से यह यह बुज़ुर्ग माँ इसी तरह का खाना खाकर जी रही थी। बुज़ुर्ग ने जब अपनी इस हालत के जिम्मेदार लोगों के बारे में बताया तो हर किसी की आंखे नम हो गईं। ग्राम प्रधान ने वृद्धा को कैद से मुक्त कराया। कमरे से बाहर आकर महिला फफक-फफक कर रो पड़ी।

ग्राम प्रधान के अनुसार वृद्धा के पति मेघ सिंह की एक वर्ष पूर्व मौत हो चुकी है। एक बेटा चंद्रशेखर कुछ दूरी पर ही झोपड़ी डालकर रह रहा है। दूसरा बेटा छविनाथ गांव के अंदर मकान बनाकर परिवार के साथ रहता है। दोनों बेटों ने जन्म देने वाली मां की ये दुर्गति की है। प्रधान के साथ ग्रामीणों ने जब बुज़ुर्ग महिला की हालत देखी तो अपने आंसू नहीं रोक सके। उसको रुखा सूखा खाने को दिया जाता था। अंधेरी कोठरी में ही वह शौच क्रिया करती थी। ग्राम प्रधान के अनुसार उनके द्वारा पुलिस को भी पूरी घटना से अवगत कराया गया है। ग्राम प्रधान जब अंधेरी कोठरी में दाखिल हुए तो दुर्गंध की वजह से उनको मुंह ढकना पड़ा। बुज़ुर्ग और भूख से जर्जर हो चुकी सोमवती को जब बाहर लेकर आए तो तेज धूप के कारण काफी देर तक उसकी आंखें नहीं खुलीं। आंखें खोली तो अंजान लोगों को सामने देख दर्द छलक पड़ा। रोते हुवे उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि उसे इस कैद से बाहर निकालो। छह माह तक सूखी रोटी खाने की वजह से उसका शरीर कंकाल बन चुका था। उस पर ठीक ढंग से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था।

प्रधान ने बेटों से सवाल किया तो उन्होंने मां को मानसिक रूप से बीमार बताया। प्रधान के अनुसार बेटे चंद्रशेखर ने बताया कि मां मानसिक रूप से बीमार हैं और घर से चली जाती हैं। कुछ समय पहले वह एक बोरिंग में गिर गई थीं। सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें कमरे में रखा जा रहा था। वह खेतीबाड़ी करते हैं ऐसे में मां की हर समय निगरानी नहीं कर सकते। प्रभारी निरीक्षक थाना भोगांव रविंद्र बहादुर ने बताया कि घटना के संबंध में अभी कोई सूचना व शिकायत प्राप्त नहीं हुई है। जानकारी के लिए एक टीम को भेजा गया है। यदि ऐसा कुछ हुआ है तो शिकायत दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी।

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