वर्ष 2017 से ‘टास्क फ़ोर्स’ कायम है और उसके बाद भी केंद्र के पास कोई आकडे नही कि ‘भारतीयों की आफश्योर शेल कम्पनियाँ कितनी है’, राज्यसभा में दिए इस जवाब के बाद सरकार एक बार फिर विपक्ष के निशाने पर

शाहीन बनारसी

डेस्क: अपनी प्रेस विज्ञप्ति में कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने कहा था, ‘कंपनी अधिनियम में ‘शेल कंपनी’ शब्द की कोई परिभाषा नहीं है और सामान्य तौर पर इसका संबंध उस कंपनी से है, जो सक्रिय व्यवसाय संचालन में नहीं है या जिसके पास पर्याप्त संपत्ति नहीं है, जिनका इस्तेमाल कुछ मामलों में कर चोरी, मनी लॉन्ड्रिंग, अस्पष्ट स्वामित्व, बेनामी संपत्ति आदि जैसे अवैध उद्देश्यों में किया जाता है।’

यहा ध्यान देने वाली बात ये है कि जून 2018 में वित्त मंत्रालय ने कहा था कि यह टास्क फोर्स आठ बार मिल चुकी है और ‘शेल कंपनियों के खतरे की जांच के लिए सक्रिय और समन्वित कदम उठाए हैं।’ इसके बाद अब मोदी सरकार राज्यसभा में ‘शेल कंपनियों’ के बारे में कोई जानकारी साझा नहीं करने के लिए निशाने पर है, क्योंकि यह कहने के बावजूद कि उनके पास कोई जानकारी नहीं है, सरकार ने 2018-2021 के बीच 2,38,223 कंपनियों को शेल कंपनियों के रूप में चिह्नित किया था। सांसद महुआ मित्रा ने इसे इंगित किया और कहा कि यह अजीब है कि ‘सरकार ने 2018 और 2021 के बीच 2,38,223 शेल कंपनियों की पहचान की, वो भी कानून में किसी विशिष्ट परिभाषा के बिना।’

https://pib.gov.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=179863

केंद्र सरकार ने अब संसद को बताया है कि भारतीयों के ऑफशोर एकाउंट का इसके पास कोई डेटा नहीं है। माकपा सांसद जॉन ब्रिटास के एक सवाल के जवाब में किया गया यह रहस्योद्घाटन राहुल गांधी के उस दावे के ठीक बाद हुआ है, जिसमें कहा गया था कि अडानी की ‘शेल कंपनियों’ में 20,000 करोड़ रुपये ‘अचानक आ गए’ थे। द टेलीग्राफ के मुताबिक, एक लिखित जवाब में 21 मार्च को सरकार ने कहा कि ‘भारतीय नागरिकों के ‘अंतिम लाभकारी स्वामित्व’ वाली ऑफशोर शेल कंपनियों के बारे में डेटा/विवरण उपलब्ध नहीं है।’ अखबार ने लिखा है, ‘यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार ने भारतीय नागरिकों के स्वामित्व वाली ऑफशोर शेल कंपनियों का विवरण एकत्र करने का काम किया, इस पर सरकार ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई का ‘सवाल ही नहीं उठता’ है, क्योंकि ‘एक ऑफशोर शेल कंपनी वित्त मंत्रालय के अधिनियमों में परिभाषित नहीं है’।’

अपने सवाल में ब्रिटास ने पूछा था:

  • ऑफशोर शेल कंपनियों का विवरण जिनका अंतिम लाभकारी स्वामित्व (यूबीओ) भारतीय नागरिकों के पास है।
  • टैक्स-हेवन देशों में शामिल ऑफशोर कंपनियों में भारतीय नागरिकों के यूबीओ के विवरण एकत्र करने के लिए सरकार द्वारा अब तक की गई कार्रवाई का विवरण
  • उन भारतीय नागरिकों के खिलाफ की गई कार्रवाई की स्थिति जिनके नाम पनामा पेपर, पेंडोरा पेपर, पैराडाइज पेपर और इस तरह के अन्य लीक के माध्यम से सामने आए थे।
  • उन विदेशी सरकारों का विवरण, जिन्होंने केंद्र सरकार के साथ भारतीय नागरिकों के ऑफशोर लेनदेन साझा करने की पेशकश की है।
  • उसके विवरण और उस पर की गई कार्रवाई।

सरकार ने कहा कि इस सवाल पर कोई डेटा नहीं है और यह भी नहीं बताया कि पनामा पेपर्स, पैराडाइज पेपर्स, पेंडोरा पेपर्स और अन्य लीक हुए दस्तावेजों में कितने भारतीयों का नाम था। इसके बजाय अस्पष्ट शब्दों में बोलते हुए वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि 31 दिसंबर, 2022 तक पनामा और पैराडाइज पेपर लीक मामलों में ‘13,800 करोड़ रुपये से अधिक की अघोषित आय को कर के दायरे में लाया गया है’ और ‘पेंडोरा पेपर लीक में 250 से अधिक भारत से जुड़ी संस्थाओं की पहचान की गई है।’

उन्होंने यह भी कहा कि ‘एचएसबीसी मामलों में बिना रिपोर्ट किए गए विदेशी बैंक खातों में किए गए जमा’ के कारण ‘8,468 करोड़ रुपये से अधिक की अघोषित आय को कर के दायरे में लाया गया है और 1,294 करोड़ रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया गया है’, लेकिन यह उल्लेख नहीं किया कि दंडित किसे किया गया। जवाब में आगे लिखा, 31 दिसंबर 2022 तक ‘काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) एवं कर अधिरोपण अधिनियम-2015 के तहत कर निर्धारण पूरा हो चुका है, जिससे 15,664 करोड़ रुपये से अधिक की कर मांग बढ़ गई है।’

बहरहाल, सरकार ने अब कहा है कि उसके पास भारतीय नागरिकों के स्वामित्व वाली ऑफशोर शेल कंपनियों का विवरण नहीं है, लेकिन फरवरी 2017 में इसने एक टास्क फोर्स का गठन किया था, जिसे कर चोरी समेत अवैध गतिविधियों में शामिल कंपनियों जिन्हें आम तौर पर ‘शेल कंपनियों’ के तौर पर संदर्भित किया जाता है, की जांच करनी थी।

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